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Jallikattu: क्यों खेला जाता है ये जानलेवा खेल जिसपर छिड़ा है विवाद, पारंपरिक मान्यता को SC की भी हरी झंडी

What is Jallikattu तमिलनाडु के प्राचीन खेल जल्लीकट्टू को आज सुप्रीम कोर्ट द्वारा हरी झंडी दे दी गई है। कोर्ट ने कहा कि इस खेल से सांडों पर कोई क्रूरता नहीं की जाती है और ये पारंपरिक है इसलिए इसपर रोक नहीं लगाई जा सकती आइए जानें इसके बारे में।

By Mahen KhannaEdited By: Mahen KhannaUpdated: Thu, 18 May 2023 02:04 PM (IST)
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What is Jallikattu जल्लीकट्टू के बारे में जानें।
नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। What is Jallikattu तमिलनाडु में पोंगल के दिन आयोजित होने वाले खेल जल्लीकट्टू को लेकर आज सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ गया है। पांच जजों की पीठ ने इस खेल को हरी झंडी दे दी है। तमिलनाडु सरकार की दलील को मानते हुए शीर्ष न्यायालय ने कहा है कि इससे सांडों पर कोई क्रूरता नहीं की जाती है। 

सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर आज सभी की नजरें थी, लेकिन सबके दिमाग में यह भी आता है कि अगर सांडों का खेल जल्लीकट्टू खतरनाक है तो आखिर इसे क्यों खेला जाता है और इसकी पारंपरिक मान्यता और नियम क्या हैं, आइए जानें... 

क्या है जल्लीकट्टू

जल्लीकट्टू तमिलनाडु का प्राचीन खेल है, जिसमें सांडों को काबू करने की जद्दोजहद होती है। इस खेल की शुरुआत सबसे पहले तीन सांडों को छोड़ने से होती है। ये सांड़ गांव के सबसे बुजुर्ग होते हैं, जिन्हें कोई नहीं पकड़ता क्योंकि इन्हें शान माना जाता है। इन तीनों सांडों के जाने के बाद मुख्य खेल शुरू होता है और बाकी के सांडों के सिंगों में सिक्कों की थैली बांधकर उन्हें भीड़ के बीच छोड़ दिया जाता है। 

इसके बाद जो व्यक्ति सांड के सींग से सिक्कों की थैली को निश्चित समय में निकाल लेता है उसे विजेता बताया जाता है।

जल्लीकट्टू क्यों मनाया जाता है

जल्लीकट्टू को तमिलनाडु में पोंगल के पावन त्योहार पर मनाया जाता है। तकरीबन 2500 साल पहले इस खेल को शुरू किया गया था और इसे गौरव और संस्कृति का पर्व माना जाता है। तमिल के दो शब्द जली और कट्टू से जल्लीकट्टू बना है। जली का अर्थ सिक्के और कट्टू सांड के सिंग को कहा जाता है।

दरअसल, इसे मनाने की एक और वजह ये बताई जाती है कि पोंगल का पर्व फसल की कटाई से जुड़ा है और फसल में बैलों का इस्तेमाल काफी होता है, इसलिए उन्हें संरक्षित करने का भाव पैदा करने के लिए इसका आयोजन किया जाता था। इन खेलों को कई राज्यों में खेला जाता है, जैसे महाराष्ट्र में बैलगाड़ी दौड़ होती है। 

सांडों के पालकों का कहना है कि इस खेल के कारण राज्य में मादा और नर मवेशियों का अनुपात संतुलित बना हुआ है। उनका कहना है कि यदि इस पर बैन लगता है तो किसान इन सांडों का ख्याल नहीं रखेंगे। सांडों की इन स्थानीय प्रजातियां ही अक्सर इस खेल में हिस्सा लेती हैं। सिवागंगई के पुलिकुलम गांव की इन नस्लों में कमी के कारण इनका संरक्षण करने की मुहीम चली थी।

ये है जल्लीकट्टू के नियम

जल्लीकट्टू को खेलने के कई नियम भी हैं। इसके लिए सांड के कूबड़ को पकड़कर उसपर काबू पाना होता है। सांड की पूंछ और उसके सींग को पकड़कर उसे पकड़ना होता है। सांड को एक नियत समय में काबू में लाना होता है और ऐसा न होने पर व्यक्ति हारा माना जाता है।

इसलिए छिड़ा विवाद

दरअसल, तमिलनाडु में कुछ साल पहले जल्लीकट्टू के दौरान का एक वीडियो सामने आया था, जिसमें दावा किया था कि सांडों को खेल से पहले शराब पिलाई जाती है और फिर उनकी पिटाई की जाती है। इसके चलते ही वो बिना होश के बेहताश होकर दौड़ते हैं। इस दावे के बाद एनीमल वेल्फेयर बोर्ड ऑफ इंडिया और पीपुल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनीमल्स (पेटा) इंडिया ने सुप्रीम कोर्ट में इस खेल के खिलाफ याचिका दायर की और कहा कि इससे सांडों पर क्रूरता बरती जा रही है।

सुप्रीम कोर्ट ने 7 मई 2014 को जल्लीकट्टू पर रोक लगाते हुए कहा था कि इसे देश में कहीं भी खेला नहीं जाना चाहिए। इसके बाद केंद्र ने साल 2016 में अध्यादेश लाकर इसको कुछ शर्तों के साथ हरी झंडी दे दी। तमिलनाडु और महाराष्ट्र सरकार द्वारा बनाए गए कानूनों को इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई, जिसे कोर्ट ने पहले खारिज कर दिया और बाद में पुनर्विचार याचिका के समय सुनवाई को राजी हो गया। 

कई सालों की सुनवाई के बाद आखिरकार कोर्ट ने आज फिर से जल्लीकट्टू को जारी रखने की इजाजत ये कहते हुए दे दी कि इससे सांडों को कोई खतरा नहीं है।