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Jayalalitha : अशांत और उथल-पुथल भरा रहा जयललिता का बचपन, मां को निबंध सुनाने के लिए दो दिन तक किया इंतजार

जयललिता का बचपन का नाम अम्मू था। बचपन से ही अम्मू असाधारण खूबसूरती और प्रतिभा की धनी थीं। लेकिन पिता के निधन के बाद उनका जीवन बहुत उठापटक भरा रहा। निराशा भरे पलों में वह सदैव परेशान रहा करती थीं।

By Ashisha Singh RajputEdited By: Ashisha Singh RajputUpdated: Thu, 04 May 2023 06:05 PM (IST)
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अपने जीवन में सफलता की उंचाइयां देखने वाली जयललिता ने बहुत संघर्ष भी देखा है‌।
नई दिल्ली, आशिषा सिंह राजपूत। Jayalalitha : शानदार अभिनेत्री और दमदार राजनेत्री तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री और अन्नाद्रमुक नेता जे. जयललिता एक ऐसा नाम है, जो इतिहास के पन्नों पर स्वर्णिम अक्षरों से हमेशा के लिए लिखा जा चुका है। कुछ लोगों के लिए उनका जीवन खुली किताब है तो कुछ लोगों के लिए रहस्यमई। उनके प्रशंसक उन्हें देवी स्वरूप मानते हैं, जबकि उनके विरोधी उन्हें धिक्कारते हैं।

तमिलनाडु की 6 बार मुख्यमंत्री रहीं जयललिता को प्यार से लोग अम्मा बनाते थे। अपने जीवन में सफलता की उंचाइयां देखने वाली जयललिता ने बहुत संघर्ष भी देखा है‌। इस लेख में हम बात करेंगे जयललिता के बचपन के बारे में-

इस खबर का आधार जयललिता की जीवनी पर लिखी गई किताब 'जयललिता- कैसे बनीं एक फिल्मी सितारे से सियासत की सरताज' है, जिसके कुछ दिलचस्प किस्सो में से एक पहलू का जिक्र किया गया है। इस किताब को तमिलनाडु के मशहूर लेखक में से एक वासंती द्वारा लिखा गया है, जिसका हिंदी अनुवाद सुशील चंद्र तिवारी ने किया है।

2 साल की उम्र में बड़े दुख से गुजरीं

जयललिता का बचपन का नाम 'अम्मू' था। अम्मू सिर्फ 2 साल की थी, जब उनके पिता जयराम की मृत्यु हो गई थी। वह काली और दुखत रात हमेशा जयललिता की यादों में ताजी रही। बचपन से ही अम्मू असाधारण खूबसूरती और प्रतिभा की धनी थीं। लेकिन पिता के निधन के बाद उनका जीवन बहुत उठापटक भरा रहा। निराशा भरे पलों में वह सदैव परेशान रहा करती थीं।

बचपन से मां को संघर्ष करते हुए देखा

संघर्ष शब्द को जयललिता बचपन में भले नहीं जानती हों लेकिन उन्होंने उसकी गहराई भांप ली थी। पिता के निधन के बाद अपनी मां वेदा को उन्होंने दो छोटे-छोटे बच्चों के साथ पालते देखा। जयललिता की मां पति के निधन के बाद अपने मायके बेंगलुरू चली गईं थीं।

जयललिता के नाना एक कंपनी में साधारण सी नौकरी करते थे। उनकी तीन बेटियां और एक बेटा था। उनका एक आम परंपरागत रूढ़ीवादी मध्यवर्गीय ब्राम्हण परिवार था।

जयललिता की मां वेदा पति के निधन के बाद अपने पिता पर बोझ नहीं बनना चाहती थीं। इसलिए वह एक आयकर कार्यालय में एक सेक्रेटेरियल काम करने लगी।‌ लेकिन कुछ समय बाद उन्हें एहसास हुआ कि वह इस नौकरी से सीमित आय ही कमा पा रही हैं‌ और ‌इससे व बच्चों की न्यूनतम जरूरतों को ही पूरा कर सकती हैं।

अम्मू की मां को उनकी बहन ने चेन्नई बुलाया

अम्मू की मां वेदा जब अपने मायके रहने गईं थीं उस दौरान उनकी छोटी बहन पदमा कॉलेज में पढ़ाई कर रही थीं। वहीं, दूसरी बहन अंबुजा विद्रोही टाइप की थीं और वह एयर होस्टेस बन चुकीं थीं।‌ इस वजह से उनके पिता ने उन्हें मृत घोषित कर दिया था। बाद में अंबुजा ने अभिनय करना शुरू किया और नाम बदलकर विद्यावती कर लिया। इस दौरान बाद चेन्नई में बस गई। कुछ वक्त गुजरने के बाद अंबुजा ने वेदा से चेन्नई आकर उनके साथ रहने के लिए आग्रह किया, जिससे उनके बच्चे बेहतर स्कूल में पढ़-लिख सकें।

अम्मू की मां ने जब फिल्मों में अभिनय करना किया शुरू

अम्मू की मां बेटा जब अपनी बहन के साथ चेन्नई में रहने लगीं। उस दौरान अंबुजा से मिलने आने वाले प्रोड्यूसर्स को लगा कि वेदा भी दिखने में किसी फिल्म स्टार से कम नहीं हैं। बहन के प्रेरित करने और अपने बच्चों को आराम दे जिंदगी व अच्छी परवरिश देने के लिए वेदा ने फिल्मों में काम करने का फैसला किया।

उस दौरान कन्नड़ फिल्मों के प्रोड्यूसर केम्पराज अर्श ने उन्हें भूमिका दी और जल्दी ही वह व्यस्त स्टार बन गईं। बता दें की फिल्मों में जाने के बाद वेदा ने अपना नाम बदलकर संध्या कर लिया था।

अम्मू का तन्हा बचपन

मां के फिल्मों में कदम रखने के बाद उनके जीवन का अशांत और उथल-पुथल भरा एक नया चरण शुरू हुआ। संध्या अपने व्यस्त जीवन से अपने बच्चों के लिए समय नहीं निकाल पा रही थीं ना ही वह उनका ठीक से ख्याल रख पा रहीं थीं। छोटी सी अम्मू को हमेशा अपनी मां की याद सताती रहती। दोनों बच्चे अपनी मां का घंटों काम से आने का इंतजार करते रहते थे।

इस बात को उनकी मां भी भलीभांति समझती थीं। लेकिन जीवन की जरूरतें पूरी करने में वह इस कदर व्यस्त थी कि अपने ही बच्चों को वक्त नहीं दे पा रहीं थीं। इसकी भरपाई करने के लिए जब भी वह बेंगलुरु पहुंचती तो वह बच्चों के लिए ढेर सारे उपहार और मिठाइयां ले आती थीं। दोनों बच्चों को पुस्तकें पढ़ना पसंद था इसलिए संध्या उनके लिए ढेर सारी कहानियों की किताबें लाती थीं। इसके पीछे का कारण होता था कि जब वह चेन्नई के लिए रवाना हो तो बच्चे रोने की बजाय किताबों में उलझे रहें।

पढ़ाई में अव्वल और मधुर व्यवहार की थीं अम्मू

जयललिता जब अपनी मां के पास दोबारा रहने चेन्नई आईं तो वह बहुत खुश थीं। लेकिन जल्द ही उन्हें इस बात का एहसास हो गया कि उनकी मां पहले से कहीं ज्यादा और व्यस्त हो चुकी थीं। संध्या ने अम्मू का चेन्नई के प्रतिष्ठित स्कूल में दाखिला करवाया। अम्मू पढ़ाई में अव्वल होने के साथ मधुर व्यवहार की थीं, जिस वजह से वह शिक्षकों की जल्द ही प्यारी बन गईं। अम्मू की खूबसूरत आंखें और रेशमी बाल के कारण स्कूल की अन्य लड़कियां उनकी खूबसूरती की प्रशंसक थीं।

स्कूल में मिलने वाली प्रशंसा से जयललिता एक तरफ जहां बेहद खुश और आत्मविश्वास से भरी हुई थीं। वहीं, दूसरी तरफ वह अंदर ही अंदर एक बात को लेकर परेशान और नाखुश थी क्योंकि उनकी खुशियों और चिंताओं को बांटने वाला उनके पास कोई नहीं था।

सीने पर नोटबुक रखे रात भर जगी रही जयललिता

एक बार जयललिता ने स्कूल में ''मेरी मां: मेरे लिए उसके क्या मायने हैं'' पर निबंध लिखा था, जिसके लिए उन्हें पुरस्कृत भी किया गया। उनकी शिक्षक को यह निबंध इतना पसंद आया कि उन्होंने पूरी क्लास के सामने अम्मू से यह निबंध पढ़वाया। उस रात जब संध्या काफी देर से घर लौटी तो उसे बेटी गहरी नींद में मिली। अम्मू अपनी मां को यह निबंध सुनाने के लिए काफी देर रात तक जगी हुई थीं। मां के लंबे इंतजार के बाद वह नोटबुक अपने सीने पर रखकर सो गईं।

उनकी मां ने जब जयललिता को उठाना चाहा तो वह तुरंत ही जग गईं। बहते आंसू के बीच उन्होंने अपनी मां को बताया कि वह कैसे पिछले 2 दिन से उन्हें अपना निबंध दिखाना चाह रही थीं। बेटी की यह बात सुन संध्या ने तुरंत उनसे पर निबंध सुनाने को कहा। निबंध सुनने के बाद संध्या ने जयललिता के गालों को चूमा और उन्हें गले लगाकर कहा बहुत सुंदर निबंध है।