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अनुच्छेद 370 पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को संघवाद के नजरिए से नहीं देखा जा सकताः जस्टिस संजय किशन कौल

सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश जस्टिस संजय किशन कौल ने कहा कि अनुच्छेद 370 पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को संघवाद की नजर से नहीं देखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा समाज के कुछ वर्गों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले की आलोचना की। जस्टिस कौल उन पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ का हिस्सा थे जिसने 11 दिसंबर को अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के केंद्र के फैसले को सही ठहराया था।

By Agency Edited By: Devshanker Chovdhary Updated: Fri, 29 Dec 2023 08:03 PM (IST)
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सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश जस्टिस संजय किशन कौल (फाइल फोटो)

एएनआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश जस्टिस संजय किशन कौल ने कहा कि अनुच्छेद 370 पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को संघवाद की नजर से नहीं देखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि समाज के कुछ वर्गों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले की आलोचना की।

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र के फैसले को सही ठहराया था

बता दें कि जम्मू-कश्मीर से जुड़े अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने सही ठहराया था, जिसे (अनुच्छेद 370) ने 2019 में निरस्त किया था। इसके बाद कुछ लोगों ने सुप्रीम कोर्ट क आलोचना की थी।

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सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर क्या बोले जस्टिस कौल?

जस्टिस संजय किशन कौल ने समाचार एजेंसी एएनआई से बात करते हुए कहा, मेरा मानना ​​है कि कश्मीर से जुड़े फैसले को संघवाद के नजरिए से नहीं देखा जा सकता है। ऐसा नहीं है कि कश्मीर में जो हुआ है उसे दोहराया जाना है या कहीं और दोहराया जा सकता है।

जस्टिस कौल ने कहा कि इसका कारण यहा है कि कश्मीर का भारत में विलय कुछ अलग तरह से किया गया। सरकार ने संविधान के दायरे में रहकर, सरकारी आदेश जारी करके विलय किया था। हालांकि, कुछ पहलू अभी भी बांकी हैं, जिसे सरकार ने खत्म करने का निर्णय लिया।

कौन हैं सेवानिवृत्त न्यायाधीश जस्टिस संजय किशन कौल?

जस्टिस कौल उन पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ का हिस्सा थे, जिसने 11 दिसंबर को अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के केंद्र के फैसले को सही ठहराया था। अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के 2019 के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने सर्वसम्मति से माना था कि अनुच्छेद 370 एक अस्थायी प्रावधान था।

बता दें कि जस्टिस कौल को 2017 में सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त किया गया था। जस्टिस कौल उस पीठ का भी हिस्सा रह चुके हैं, जिसने (न्यायाधीशों के) बहुमत के आधार पर समान-लिंग विवाह को विशेष विवाह अधिनियम के हिस्से के रूप में पढ़ने की याचिकाकर्ताओं की याचिका को खारिज कर दिया।

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