Supreme Court: बतौर CJI 74 दिन के कार्यकाल में कई अहम फैसले सुना रिटायर हुए जस्टिस उदय उमेश ललित
प्रधान न्यायाधीश उदय उमेश ललित ने 27 सितंबर से संविधान पीठ की सुनवाई का सीधा प्रसारण शुरू करने का दिया था आदेश। एक दिन पहले ही उनकी अध्यक्षता वाली पीठ ने ईडब्ल्यूएस आरक्षण को सही ठहराया था ।
नई दिल्ली, पीटीआई। प्रधान न्यायाधीश उदय उमेश ललित मंगलवार को सेवानिवृत्त हो गए। 74 दिन के अपने संक्षिप्त कार्यकाल में उन्होंने कई महत्वपूर्ण फैसले दिए और कार्यवाही के सीधे प्रसारण, मामलों को सूचीबद्ध करने की प्रक्रिया में बदलाव व सुप्रीम कोर्ट में अत्यावश्यक मामलों का उल्लेख करने जैसे प्रमुख क्षेत्रों पर काम किया। जस्टिस ललित को 13 अगस्त, 2014 को सुप्रीम कोर्ट का न्यायाधीश नियुक्त किया गया था। उन्होंने 27 अगस्त, 2022 को 49वें प्रधान न्यायाधीश के रूप में शपथ ली थी।
ईडब्ल्यूएस आरक्षण को वैधता दी
प्रधान न्यायाधीश के कार्यकाल के अंतिम दिन जस्टिस ललित के नेतृत्व वाली संविधान पीठ ने 3:2 के बहुमत से सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) से संबंधित लोगों को दाखिलों और सरकारी नौकरियों में 10 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करने वाले 103वें संविधान संशोधन की वैधता को बरकरार रखा और कहा कि यह संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं करता है।
हालांकि जस्टिस ललित ने जस्टिस एस. रवींद्र भट के दृष्टिकोण से सहमति व्यक्त की जिन्होंने सामान्य वर्ग के लिए ईडब्ल्यूएस कोटा को असंवैधानिक बताया। जस्टिस ललित ने 27 सितंबर से संविधान पीठ के मामलों का सीधा प्रसारण शुरू करने का आदेश दिया था। उनकी अगुआई वाली पीठ ने लश्कर-ए-तैयबा के आतंकी मोहम्मद आरिफ उर्फ अशफाक को फांसी देने का मार्ग प्रशस्त किया।
वर्ष 2000 में लालकिले पर हुए हमले के मामले में मौत की सजा देने के फैसले की समीक्षा की और उसकी याचिका को खारिज कर दिया। सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीशों के चार रिक्त पदों को भरने का जस्टिस ललित का प्रयास अधूरा रह गया क्योंकि उनके उत्तराधिकारी जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एसए नजीर ने पांच सदस्यीय कोलेजियम द्वारा नियुक्ति के लिए नामों की सिफारिश के प्रस्ताव पर लिखित सहमति मांगने की प्रक्रिया पर आपत्ति जताई थी।
हालांकि जस्टिस ललित के नेतृत्व वाले कोलेजियम ने विभिन्न हाई कोर्टों में लगभग 20 न्यायाधीशों के नामों की सिफारिश की और इसके अलावा बांबे हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता को शीर्ष अदालत के न्यायाधीश के रूप में नामित करने की सिफारिश भी की। वर्तमान में शीर्ष अदालत में 34 स्वीकृत पदों के विपरीत 28 न्यायाधीश हैं।
प्रधान न्यायाधीश की अगुआई वाली पीठ ने 2002 के गुजरात दंगों के मामलों में निर्दोष लोगों को फंसाने के लिए कथित तौर पर सुबूत गढ़ने के आरोप में गिरफ्तार कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ को जमानत दे दी थी। उनके ही नेतृत्व वाली पीठ ने शीर्ष अदालत के आदेशों का पालन नहीं करने पर कड़ा संज्ञान लिया और भगोड़े व्यवसायी विजय माल्या को चार महीने कैद की सजा सुनाई।
जस्टिस ललित की पीठ ने फोर्टिस हेल्थकेयर लिमिटेड के पूर्व प्रवर्तकों- मलविंदर सिंह और शिविंदर सिंह को मध्यस्थता निर्णय का सम्मान करने के लिए 1170.95 करोड़ रुपये का भुगतान करने का वास्तविक प्रयास न करने पर अवमानना दोषी ठहराया और उन्हें छह महीने जेल की सजा सुनाई।
जस्टिस ललित मुसलमानों में तत्काल तीन तलाक की प्रथा को अवैध ठहराने के ऐतिहासिक फैसले का भी हिस्सा रहे। पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने अगस्त, 2017 में 3:2 के बहुमत से तत्काल तीन तलाक को असंवैधानिक घोषित कर दिया था।
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तीन न्यायाधीशों में जस्टिस ललित भी थे। उनकी अध्यक्षता वाली पीठ ने पाक्सो कानून के तहत एक मामले में बांबे हाई कोर्ट के 'त्वचा से त्वचा के संपर्क' संबंधी विवादित फैसले को खारिज कर दिया था। शीर्ष अदालत ने कहा था कि यौन हमले का सबसे महत्वपूर्ण घटक यौन मंशा है, त्वचा से त्वचा का संपर्क नहीं।
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