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कैलास मानसरोवर यात्रा : अलौकिक है देवाधिदेव महादेव शिव के धाम और ‘ॐ पर्वत’ का सौंदर्य

कैलास मानसरोवर पहुंचते ही मन के सारे विकार स्वत: ही समाप्त हो जाते हैं। भगवान शिव के धाम के अलौकिक सौंदर्य को शब्दों में वर्णित करना संभव नहीं है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Fri, 08 Jun 2018 08:22 AM (IST)
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कैलास मानसरोवर यात्रा : अलौकिक है देवाधिदेव महादेव शिव के धाम और ‘ॐ पर्वत’ का सौंदर्य

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। कैलास पर्वत और मानसरोवर झील को धरती का केंद्र माना जाता है। इसे देवाधिदेव महादेव का वास भी माना जाता है। आज इसका महत्‍व और ज्‍यादा इसलिए भी बढ़ जाता है क्‍योंकि आज से ही कैलास मानसरोवर की यात्रा शुरू हो रही है। दुनिया के सबसे ऊंचे शिवधाम कैलास मानसरोवर को 12 ज्योतिर्लिंगों में सबसे श्रेष्ठ माना गया है। हर साल कैलास मानसरोवर की यात्रा के लिए लाखों श्रद्धालु जाते हैं।कैलास मानसरोवर चीन के तिब्बत में स्थित है। 

देवाधिदेव महादेव का वास 
हिमालय का भी केंद्र माने जाने वाले कैलास पर्वत पर भोले शिव योग-साधना करते हैं और मां पार्वती उनकी तपस्या में सहयोग करती हैं। शिव यदि पुरुष हैं, तो पार्वती प्रकृति। दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। पार्वती शिव को सहयोग देती हैं, तो शिव उनका (प्रकृति) संरक्षण करने के साथ-साथ प्रकृति के संरक्षण का संदेश अपने भक्तों को देते हैं। पार्वती प्रकृति की प्रतीक हैं और शिव प्रकृति के संरक्षक। दुर्गम रास्तों को पार कर जब भक्त कैलास मानसरोवर पहुंचते हैं, तो प्रकृति की गोद में आकर नकारात्मक विचारों से मुक्‍त हो जीवन-पथ पर अग्रसर होने के लिए प्रेरित होते हैं...

सम और विषम का संतुलन
कैलास मानसरोवर हिंदुओं का पवित्र धाम है। भगवान शंकर का यह धाम असीमित ऊर्जा का भंडार है। यही वजह है कि यहां पहुंचते ही श्रद्धालुओं में नकारात्मक विचारों का शमन तथा सकारात्मक विचारों का आगमन होने लगता है। कैलास क्षेत्र में दो झीलें हैं- मानसरोवर और राकस। मानस का जल जहां शांत, शीतल और पीने योग्य है, वहीं राकस ताल का पानी पीने योग्य नहीं माना जाता है। सबसे बड़ी विशेषता यह है कि राकस ताल में कैलास पर्वत से, तो मानसरोवर झील में गुरला मांधता पर्वत से पानी आता है।

महादेव का विषपान
मान्यता है कि भगवान शिव ने जहर को अपने कंठ में उतार लिया था। वहीं से यह पानी राकस ताल में जाता है। दोनों झीलें विपरीत शक्तियों का केंद्र हैं, जो दो भिन्न परिस्थितियों (सुख और दुख) की प्रतीक मानी जाती हैं। इसके माध्यम से भगवान शिव यह संदेश देना चाहते हैं कि जीवन में सम और विषम दोनों परिस्थितियां आ सकती हैं, लेकिन जो मनुष्य दोनों परिस्थितियों में एक समान बना रहे, वही ईश्वर के नजदीक है। दोनों के संतुलन से ही जीवन चलता है। कैलास जाने वाले श्रद्धालु मानस और राकस दोनों झीलों का पानी अपने साथ ले जाते हैं।

दुर्गम राह बढ़ाते हैं उत्साह
कैलास धाम तक पहुंचने का मार्ग अत्यंत दुर्गम है। पर जोखिम भरा मार्ग भक्तों को डराता नहीं, बल्कि उत्साह बढ़ाता है। पिथौरागढ़ जिले के अंतर्गत पड़ता है आधार शिविर धारचूला। यहां से 54 किमी. आगे प्रसिद्ध आध्यात्मिक केंद्र श्रीनारायण आश्रम तक वाहन से यात्रा करने के बाद पैदल यात्रा होती है। यहीं से मार्ग भक्तों की परीक्षा लेना प्रारंभ कर देता है। मार्ग में कभी चढ़ाव वाले रास्ते, तो कभी ढलान वाले रास्ते मिलते हैं। बहते नदी- नाले, खड़े पहाड़ों की संकरी घाटियों में तीन से चार फीट चौड़ा मार्ग और गहरी खाई भक्तों को डराती तो है, लेकिन चारों तरफ नैसर्गिक सौंदर्य से बिखरे जंगल और शीतल हवाएं उनके उत्साह को कई गुना बढ़ा देती हैं।

पैदल यात्रा का पहला पड़ाव सिर्खा और दूसरा पड़ाव गाला उच्च हिमालय में प्रवेश के लिए श्रद्धालुओं को समर्थ बनाता है। उच्च हिमालय वाले क्षेत्र में मौसम के लिहाज से सब कुछ बदल जाता है। इससे आगे लखनपुर से बूंदी तक का मार्ग जोखिमपूर्ण है। चट्टानें काटकर मात्र तीन फीट चौड़ा मार्ग, उसके नीचे बहने वाली काली गंगा नदी इसे अधिक जोखिमपूर्ण बना देती है, लेकिन कैलास जाने वाले भक्त इसे सहजता से पूरा कर लेते हैं।

शिव-दूत जैसे हैं गुंजी के ग्रामीण
जब भक्त बूंदी से तीन किमी. की सीधी चढ़ाई चढ़कर दस हजार फीट से अधिक की ऊंचाई पर स्थित उच्च हिमालय के प्रवेश द्वार छियालेख से आगे बढ़ते हैं, तो उनकी थकान गायब हो जाती है। छियालेख से गब्र्यांग गांव की तरफ जाते ही सामने नेपाल में मां अन्नपूर्णा का विराट दर्शन यात्रियों को उत्साह से भर देता है। यात्री सहज होकर कुटी यांग्ती (नदी) और काली गंगा नदी के संगम स्थल पर पहुंचते हैं। यहां पर साढ़े दस हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित गुंजी गांव के ग्रामीण यात्रियों, भक्तों का परंपरागत ढंग से स्वागत करते हैं। भक्त बताते हैं कि इस ऊंचाई पर जब गुंजी गांव के बच्चों से लेकर बड़े- बुजुर्ग तक मुस्कान के साथ अपनत्व से भरा आतिथ्य देते हैं, तो ऐसा लगता है मानो ये भी भगवान शिव के दूत हैं, जो भक्तों को कैलास मानसरोवर जाने के लिए प्रेरित करते हैं।

जल संरक्षण की महत्ता
हर श्रद्धालु और गुंजी के ग्रामीणों के बीच अल्प समय में ही आत्मीय संबंध बन जाता है, जिसे भगवान शिव की ही कृपा माना जाता है। गुंजी से नौ किमी. दूर है काली गंगा नदी का उद्गम स्थल-कालापानी, जहां मां काली का मंदिर भक्तों की श्रद्धा को बढ़ाता है। यहां काली गंगा नदी का उद्गम प्रकृति में जल के महत्व को दर्शाता है। मां पार्वती का नाभि स्थल माना जाता है नाभिढांग।

कैलास मानसरोवर यात्रा में लगभग साढ़े चौदह हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित अंतिम भारतीय पड़ाव नाभिढांग है। यहां से सीधे ‘ॐ पर्वत’ का दर्शन होता है, जो दुर्लभ है। माना जाता है कि यहीं से कैलास की पवित्र भूमि शुरू हो जाती है। इसके बाद भारत-चीन सीमा लिपूलेख दर्रा पार कर भक्त तिब्बत चीन में प्रवेश करते हैं। कैलास मानसरोवर यात्रा 8 जून से शुरू हो रही है।

अलौकिक है शिव के धाम का सौंदर्य
कैलास मानसरोवर पहुंचते ही मन के सारे विकार स्वत: ही समाप्त हो जाते हैं। भगवान शिव के धाम के अलौकिक सौंदर्य को शब्दों में वर्णित करना संभव नहीं है।

एपीएस निंबाडिया, डीआइजी, आइटीबीपी, बरेली क्षेत्र

सुविधाओं से बढ़ रहे श्रद्धालु
कुमाऊं मंडल विकास निगम द्वारा कैलास मानसरोवर यात्रा के दौरान श्रद्धालुओं की सुविधाओं का पूरा ध्यान रखा जाता है। यही कारण है कि यहां आने वाले यात्रियों की संख्या में भी प्रतिवर्ष लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है।

दीवान सिंह बिष्ट, प्रबंधक, पर्यटक आवास गृह,  केएमवीएन, धारचूला

नकारात्मक विचारों की समाप्ति
कैलास नकारात्मकता-मुक्त क्षेत्र माना जाता है। यहां पहुंचते ही हर तरह के नकारात्मक विचार स्वमेव समाप्त होने लगते हैं।

डॉ. महेंद्र कौशिक कैलासी, आध्यात्मिक यात्री