टल सकता था रेल हादसा! अगर लगा होता ये सिस्टम तो आपस में नहीं टकराती ट्रेनें, जानिए कैसे करता है काम
Kavach in Trains Kanchanjungha Express Accident न्यू जलपाईगुड़ी स्टेशन के पास कंचनजंगा एक्सप्रेस के साथ मालगाड़ी की हुई भीषण टक्कर ने एक बार फिर कवच प्रणाली को चर्चा में ला दिया है। अगर रूट पर इस प्रणाली का उपयोग किया गया होता तो ये ट्रेन हादसा टाला जा सकता था। जानिए क्या है ये प्रणाली और कैसे करती है काम।
अरविंद शर्मा, नई दिल्ली। रेलवे ट्रैक पर ट्रेनों की संख्या बढ़ने के चलते तकनीकी और मानवीय भूल से होने वाली दुर्घटनाएं भी बढ़ती जा रही हैं। ऐसे में हादसों पर ब्रेक लगाने के लिए कवच (ट्रैफिक कोलिजन अवाइडेंस) प्रणाली कारगर हो सकती है।
अगरतला-सियालदह रूट पर अगर कवच प्रणाली काम कर रही होती तो न्यू जलपाईगुड़ी स्टेशन के पास खड़ी कंचनजंगा एक्सप्रेस के साथ मालगाड़ी की भीषण टक्कर नहीं होती। ट्रेन यात्रियों की जान सांसत में नहीं पड़ती और रेलवे को करोड़ों का नुकसान नहीं झेलना पड़ता। भारतीय रेलवे को कवच के लिए पेटेंट मिल गया है।
सिग्नल की अनदेखी से हुआ हादसा
प्रारंभिक रिपोर्ट के आधार पर रेलवे बोर्ड की अध्यक्ष जया सिन्हा ने रेल हादसे के लिए सिग्नल की अनदेखी को जिम्मेदार बताया है। यह स्पष्ट तौर पर मानवीय भूल है। बंगाल में जिस रूट पर रेल हादसा हुआ, उस पर अभी कवच प्रणाली नहीं लगाई गई है। रेलवे का कहना है कि दिल्ली-गुवाहटी रेल लाइन को अगले वर्ष के प्लान में शामिल किया गया है। चालू वर्ष के आखिर तक तीन हजार किमी नए ट्रैक पर कवच प्रणाली लग जाएगी।
वर्ष 2025 में भी अतिरिक्त तीन हजार किमी ट्रैक को शामिल किया जाएगा। एक्सप्रेस ट्रेनों में कवच लगाने का काम फरवरी 2016 में शुरू किया गया था। ट्रायल के बाद वर्ष 2018-19 में तीन कंपनियां एचबीएल पावरसिस्टम्स, केर्नेक्स और मेधा को निर्माण का काम दिया गया। जुलाई 2020 में इसे रेल सुरक्षा प्रणाली के रूप में अपनाया गया। लगाने में प्रति किमी 50 लाख रुपये खर्च आता है। इसमें ट्रैक पर आप्टिकल फाइबर केबल बिछाना, दूरसंचार टावर लगाने के साथ स्टेशनों में उपकरण लगाने का काम शामिल है।
यहां लग चुकी है कवच प्रणाली
देश में 68 हजार किमी रेल ट्रैक है। अभी दस हजार किमी पर कवच प्रणाली को इंस्टॉल करने की तैयारी है। छह हजार किमी रूट के लिए निविदा जारी कर दी गई है। इनमें दिल्ली-मुंबई और दिल्ली-हावड़ा (लखनऊ-कानपुर खंड सहित) पर काम भी प्रारंभ है। अभी तक लगभग 15 सौ किमी रेल रूट और 139 इंजनों में इसे इंस्टॉल किया जा चुका है।
इनमें दक्षिण भारत की तीन और उत्तर भारत की एक रेल रूट है, जिनमें मनमाड-मुदखेड-धोन-गुंटकल खंड (959 किमी), लिंगमपल्ली-विकाराबाद-वाडी और विकाराबाद-बीदर (265 किमी) और बीदर-परभणी खंड (241 किमी) शामिल है। इसके अतिरिक्त पलवल-मथुरा रेलमार्ग पर भी कवच प्रणाली लगाई जा चुकी है।
कैसे काम करता है कवच
देश में जब भी रेल हादसा होता है तो कवच प्रणाली चर्चा में आ जाती है। प्रश्न उठाए जाते हैं कि कवच प्रणाली लगी होती तो हादसा नहीं होता। कवच स्वचालित ट्रेन प्रोटेक्शन तकनीक है। रेलवे ने चलती ट्रेनों को हादसे से बचाने के लिए स्वदेशी तकनीक से इसे विकसित किया है। लोको पायलट की लापरवाही या ब्रेक लगाने में विफल होने पर कवच अपने आप सक्रिय हो जाता है और चलती ट्रेन में ब्रेक लगाकर हादसे के खतरे को पूरी तरह टाल देता है।
यह दो स्थितियों में प्रभावी तरीके से हादसों को रोकता है। अगर दो ट्रेनें एक ही पटरी पर आमने-सामने आ रही हैं तो लगभग चार सौ मीटर के फासले पर दोनों ट्रेनों में अपने आप ब्रेक लग जाएगा। दूसरा, यदि कोई ट्रेन किसी अन्य ट्रेन के पीछे से आ रही है और सुरक्षित दूरी को क्रास कर गई है तो कवच उसे भी आगे नहीं बढ़ने देता है। इसके अतिरिक्त चलती ट्रेन के रास्ते में रेडलाइट या गेट आ जाएगा तो कवच उसकी गति पर भी ब्रेक लगा देता है।