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'दुनिया को बदलना होगा भारत के प्रति नजरिया', कांची पीठ के शंकराचार्य स्वामी विजयेंद्र सरस्वती ने कहा- सनातन ही देश का मूल आधार

कांची पीठ के शंकराचार्य स्वामी विजयेंद्र सरस्वती ने दैनिक जागरण के साथ विशेष बातचीत में कहा कि राजनीति यह न भूले कि सनातन ही भारत का मूल आधार है। 2018 में शंकराचार्य के पद पर आसीन होने के बाद यह उनका पहला मीडिया साक्षात्कार है जिसमें उन्होंने धर्म-संस्कृति आर्थिक-सामाजिक महिला सशक्तीकरण युवा पीढ़ी की चुनौतियों जैसे विषयों पर अपनी राय रखी। पढ़िए पूरी बातचीत-

By Sanjay Mishra Edited By: Sachin Pandey Updated: Sat, 06 Jul 2024 07:34 PM (IST)
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कांची कामकोटि पीठ के 70वें शंकराचार्य स्वामी विजयेंद्र सरस्वती। (फोटो: जागरण)

संजय मिश्र, नई दिल्ली। अयोध्या में राम मंदिर बनना केवल एक मंदिर का निर्माण नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति और मानवीय मूल्यों का भी निर्माण है। अब अयोध्या को सांस्कृतिक केंद्र बनना चाहिए, क्योंकि यह धरती की शक्तिपीठ और मोक्षपुरी है। इसके लिए समय, संदर्भ और संहिता का संतुलित दृष्टिकोण लेकर चलना और आडंबर से बचना होगा।

यह कहना है कांची कामकोटि पीठ के 70वें शंकराचार्य स्वामी विजयेंद्र सरस्वती का, जिन्होंने प्राण-प्रतिष्ठा से एक दिन पहले अयोध्या जाकर वैदिक विधि-विधान से प्राण-प्रतिष्ठा से पूर्व की पूजा-अर्चना संपन्न करा शंकराचार्यों की भागीदारी को लेकर जताई गई आशंकाओं को खत्म किया। उन्होंने कहा कि सबसे महत्वपूर्ण यह कि हम सभी भारतीय एक राष्ट्र के रूप में एकसाथ रहें। शांति और एकता इसके लिए अनिवार्य है। इसलिए हमें अन्य आस्थाओं को अलग नजरिये से नहीं देखना चाहिए, लेकिन राजनीति को यह भी नहीं भूलना चाहिए कि भारत का मूल सनातन धर्म और संस्कृति ही है और यही विश्व में हमारी पहचान भी।

प्राण-प्रतिष्ठा ही नहीं बल्कि शंकराचार्य के रूप में 2018 में कांची पीठ पर आसीन होने के बाद किसी मीडिया संस्थान को दिए अपने पहले साक्षात्कार में स्वामी विजयेंद्र सरस्वती ने दैनिक जागरण के सहायक संपादक संजय मिश्र से लंबी बातचीत की। पेश है, इस विशेष बातचीत के मुख्य अंश-

सवाल - राष्ट्र की अवधारणा और सनातन के बीच इन दिनों द्वंद्व का विमर्श चल रहा है, इसे आप कैसे देखते हैं? क्या दोनों में सामंजस्य चुनौती है?

जवाब - मनुष्य के लिए देशभक्ति और ईश्वरभक्ति दोनों ही महत्वपूर्ण हैं। देश को बचाकर हम धर्म में और भी अच्छा कर सकते हैं, तो देश को सुरक्षित एवं समृद्ध बनाए रखने के लिए धर्म ही मुख्य है। इसके लिए एकता की जरूरत है और हमारे संस्कारों के कारण यह मुश्किल नहीं है। हिमाचल, कश्मीर, कामाख्या, कन्याकुमारी कहीं भी जाएं, सब जगह ब्रह्म के स्वरूप गुरु की भक्ति दिखेगी।

पंजाब तो गुरुओं में विश्वास करता है। हमारे यहां गुरुभक्ति ही प्रधान है, क्योंकि यह परिवारों, संतों, मातृ-पितृ भक्ति सभी भाव से जोड़ता है। शंकराचार्य जी ने विवेक चूड़ामणि, साधना चतुष्काय संपत्ति नामक पुस्तक में कहा है कि संपत्ति का मतलब पैसा, जमीन-मकान या अधिकार ही नहीं होता है, उससे भी अधिक महत्वपूर्ण है शांति की संपदा, आत्म संयम, आत्म योग, ज्ञान दीप्ति जैसी आपकी वैयक्तिक संपदा। दोनों में कोई विरोधाभास नहीं है।

सवाल - आपने कहा, एकता ही राष्ट्र का आधार स्तंभ है तो आज के संदर्भ में जब धार्मिक सवालों पर कुछ न कुछ वाद-विवाद चलता रहता है, ऐसे में एकता की आदर्श स्थिति कैसे बनेगी?

जवाब - हमारे यहां सनातन के अलावा अन्य धर्मों के लोग भी हैं। जैन, इस्लाम तथा अन्य धर्म। इसका मतलब यह है कि हम सभी इन शब्दों से धर्म का आह्वान करते हैं। हमारे यहां अनेक प्रकार की आस्था वाले लोग भी हैं। धर्म का अर्थ है अप्रहिम और यह सनातन है, जिसमें हम विश्वास करते हैं। धर्म और आस्था भारत के लिए कोई नया विषय नहीं है। जो आस्था विदेश से आई है, उससे भी पहले से सनातन धर्म में शैव, वैष्णव, शाक्त, गणपति, कौमर, सौर आदि हैं।

तब भी शंकराचार्य जी ने इन सबके समायोजन की व्यवस्था की थी। भारत के लोग सच्चे हैं और वे सत्य का अध्ययन करते हैं। ब्रह्म सत्यं जगत मिथ्या। इसीलिए हमें देश का फायदा देखना चाहिए। भारत पारंपरिक रूप से सनातन राष्ट्र है और यह नकारात्मक नहीं है, इसीलिए यहां शांति है। हमें अन्य आस्थाओं को अलग नजरिये से नहीं देखना चाहिए। भारत का आचरण भक्ति और मुक्ति है। इस पक्ष का आचरण भी सनातन धर्म के विरुद्ध नहीं होना चाहिए। भारत सनातन धर्म का मुख्य स्थान है। इसलिए धर्म के अनुरूप राष्ट्र को सुरक्षित रखना हमारा कर्तव्य है।

सवाल - इस कर्तव्य के प्रति नागरिकों और शासन का दृष्टिकोण कैसा होना चाहिए?

जवाब - दुनिया अधिक आर्थिक और व्यापार उन्मुख हो गई है। सनातन धर्म में भी व्यापार की इजाजत है, लेकिन हमारे पास एक आध्यात्मिक स्थान होना चाहिए। कांची के हमारे परमाचार्य शंकराचार्य स्वामी चंद्रशेखरेंद्र सरस्वती ने 1947 में तमिलनाडु के सेलम में कहा था कि भारत-पाकिस्तान का बंटवारा नहीं होना चाहिए, क्योंकि मानवीय मूल्य ही सबकी जननी है।

यदि हम यहां धर्म की रक्षा करेंगे तो अफ्रीका, अमेरिका, एशिया सभी जगह धर्म का प्रचलन होगा। अत: राजनेताओं को भी इस ओर उचित दृष्टिकोण रखना चाहिए। भारत में शांति, स्थिरता और एकता की जरूरत है। हमें विश्व की संस्कृति के अनुरूप भी सोचने की जरूरत है। तभी हम सबका भला कर सकते हैं।

सवाल - आपने कहा कि देश के लिए स्थिरता और शांति महत्वपूर्ण है तो इसकी सबसे अधिक जिम्मेदारी किसकी होनी चाहिए?

जवाब - दुनिया को भारत को एक अलग दृष्टिकोण से देखना चाहिए। पर आज कुछ बड़े देश भारत को बड़ा बाजार या व्यापार की जगह मानते हैं। दुनिया को सबसे पहले इस सोच को बदलना होगा। भौतिकतावाद के यर्थाथ को अस्वीकार नहीं किया जा सकता, मगर भारत के लोग आस्थावान हैं। किसी को भी हमने अस्वीकार नहीं किया है। सभी के साथ प्रेम और सम्मान का व्यवहार किया है। इसलिए सभी आस्था के लोगों को भारत के विकास के लिए मिलकर काम करना चाहिए और वे ऐसा कर भी रहे हैं।

सनातन की मूल संस्कृति ही विश्व में हमारी पहचान है। भारत की इस पहचान को जीवित रखना हर व्यक्ति की जिम्मेदारी है। अभी लड़ने का समय नहीं है। हमारे लोग सुरक्षित रहें और शिक्षा प्राप्त करते हुए प्रकृति-पर्यावरण की चिंता करें। यदि भारत के युवा बड़ी संख्या में पढ़ाई के लिए विदेश जा रहे हैं तो हम देखें कि हमारी शिक्षा की व्यवस्था में क्या कुछ कमी है। व्यवस्था तंत्र से लेकर नागरिक तक सबके लिए देश पहले होना चाहिए। इस लक्ष्य तक पहुंचने के लिए एकता जरूरी है और हमारे लोगों ने दिखाया है कि वे ऐसा कर सकते हैं।

सवाल - आपने जिन चुनौतियों की चर्चा की वे सब राजनीतिक सत्ता-व्यवस्था द्वारा निर्धारित होते हैं, इसमें कहां कमी है?

जवाब - धर्म राजनीति में हस्तक्षेप नहीं करता। राजनीति की गुणवत्ता बनाए रखना उनका काम है जो लोग इसमें शामिल हैं। राजनीति की गुणवत्ता सुधारने के लिए धर्म और न्याय के साथ आध्यात्मिक चिंतन का समावेश होना चाहिए। धर्म को अनुदानित नहीं बल्कि प्रदत्त मानना चाहिए। राजनीतिक व्यवस्था का संचालन भी इस दृष्टि से किया जाता है और अच्छे लोग होंगे तो कमियों का समाधान निकालना कठिन नहीं होगा।

सवाल - आपके इस दृष्टिकोण का अर्थ क्या यह नहीं कि राजनीतिक व्यवस्था में अच्छे लोगों की कमी हो रही है, इसे कैसे ठीक किया जा सकता है?

जवाब - आप किसे सम्मानित मानते हैं, जिसके पास सोना-चांदी, संपदा-वैभव हो या जो महात्मा गांधी जैसा अद्वितीय व्यक्ति हो? ये लोग ही तय कर सकते हैं। ऐसे व्यक्ति को नेता बनाना चाहिए जो ईमानदार हो और सबके साथ अच्छा व्यवहार करे। राजनीति को यह भी नहीं भूलना चाहिए कि भारत का मूल सनातन धर्म व संस्कृति है और उसके अनुरूप ही आचरण-व्यवहार करना चाहिए। इसलिए जरूरी है कि हम महिलाओं और बच्चों की मजबूती पर ध्यान दें। नारी को अधिक शक्ति दी जानी चाहिए।

सवाल - क्या आपका आशय यह कि राजनीतिक संस्कृति बदलने के लिए महिलाएं राजनीति में अधिक संख्या में आएं?

जवाब - इसका अर्थ यह नहीं कि केवल राजनीति में ही नारी को सशक्त किया जाए, बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका है। परिवार ही नहीं धर्म और समाज में संतुलन बनाने की क्षमता हमारी मातृ-शक्ति में है। परिवार, पर्यावरण, राजनीति और धर्म सबको बेहतर बनाने के लिए नारी शक्ति की सम्मानित भूमिका जरूरी है। मातृ शक्ति की सम्मानित भूमिकाएं और शांति से ही देश आगे बढ़ सकता है।

सवाल - परिवार व्यवस्था का आधार कमजोर हो रहा, इसे कैसे संभाला जा सकता है?

जवाब - पहली बात यह है कि हम जड़ों के जुड़ाव से दूर हो रहे हैं। जैसे पहले ग्रीष्म या शीत काल की छुटटियों के तीन-चार महीने मूल परिवारों के साथ सह-जीवन की जो हमारी परंपरा थी, अब वह लगभग खत्म हो गई है। हमारा सोच, गणना या सिद्धांत पहले बिना मशीनी सहायता के काम करता था, आज तकनीकों से हमारी प्राकृतिक शक्ति क्षीण हो रही है। चाहे चलना, सोचना या लिखना हो- बिना मशीनी संसाधनों के नहीं हो सकता।

मनुष्य की अपनी शक्ति कम नहीं हुई है, बल्कि इन सब वजहों से उसका सोच परिवर्तित हो गया है। इस ह्रास से बचने के लिए सबसे महत्वपूर्ण है कि अंग्रेजी की आवश्यकता का ध्यान रखते हुए भी हमें मातृ-भाषाओं की रक्षा करनी होगी। हिंदी, तेलुगु, तमिल, कन्नड़, मराठी, गुजराती, पंजाबी से लेकर अपनी सभी मातृ-भाषाओं को बचाना चाहिए। कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर और कामाख्या से लेकर काशी तक देवभाषा संस्कृत को सुरक्षित रखना जरूरी है। भाषा ही आपका सोच, चिंतन और व्यवहार का आधार तैयार करती है।

सवाल - अयोध्या में राम मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा से एक दिन पहले शंकराचार्य के रूप में आपने विशेष रूप से वहां जाकर विशिष्ट पूजा-अर्चना की, उस घटनाक्रम को आप कैसे देखते हैं?

जवाब - भारत में हर व्यक्ति का लक्ष्य होता है मोक्ष प्राप्त करना। अयोध्या धरती की शक्ति पीठ और पहली मोक्षपुरी है। जब भगवान राम ने लक्ष्मण को सोने की लंका के वैभव का विकल्प दिया तब लक्ष्मण ने कहा- हमें हमारा अयोध्या ही चाहिए। अयोध्या में जो हुआ है बहुत सुंदर काम हुआ। 500 वर्षों के संघर्ष के बाद प्रेमपूर्वक प्रयत्न और प्रार्थना से हुआ है। न्याय स्थान के द्वारा देव स्थान का निर्माण हुआ है। यह भारत का आदर्श व्यवहार है। इस काम के लिए विश्व में दोनों का नाम है। इसमें सनातनी भी हैं और जिन्होंने इसमें साथ दिया उनका भी नाम है।

रामजी का मंदिर तो कई जगह है, पर अयोध्या में मंदिर निर्माण विशिष्ट है। अयोध्या में केवल मंदिर का निर्माण नहीं हुआ बल्कि हमारी संस्कृति का भी निर्माण हुआ है। यह होना केवल धर्म ही नहीं मानवीय मूल्यों का सम्मान है। अब अयोध्या को सांस्कृतिक केंद्र बनना चाहिए। इसके लिए संतुलित दृष्टिकोण लेकर चलना होगा और आडंबर से बचना चाहिए। समय, संदर्भ और संहिता तीनों को ध्यान में रखते हुए आगे बढ़ने की जरूरत है। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि भारत में हम सब एक साथ रहें।

सवाल - कांची मठ वेद और शास्त्रों के संरक्षण के साथ वंचितों के स्वास्थ्य, शिक्षा को प्रोत्साहित करने की दिशा में लंबे से समय से काम कर रहा है। क्या उत्तर भारत के राज्यों में भी इसकी पहुंच हो रही है?

जवाब - उत्तर और दक्षिण भारत के बीच संबंधों तथा संस्कारों के जुड़ाव के लिए तो कांची मठ सदा ही प्रयासरत रहा है। हमें अपने व्यक्तित्व और अपनी विशेषताओं को पीछे नहीं छोड़ना चाहिए, पर वेदों-शास्त्रों को बचाने के लिए देश में समान दृष्टि होना जरूरी है। इसलिए कांची पीठ की ओर से हम इसके लिए शंकर स्कूल से लेकर श्री चन्द्रशेखरेंद्र सरस्वती संस्कृति विश्वविद्यालय का संचालन कर रहे हैं, जहां पांडुलिपियों का रखरखाव करने से लेकर वेदों-उपनिषदों की शिक्षा दी जाती है। उत्तर भारत में जहां वेदों को प्रचारित करने की जरूरत है तो दक्षिण में गो-संरक्षण पर ज्यादा ध्यान देने की।

जहां तक लोक कल्याण की बात है तो संसाधन से वंचित लोगों की आंखों का इलाज सुगम करने के लिए शंकर नेत्रालय का कानपुर, इंदौर, लुधियाना, गुवाहाटी और बिहार आदि में विस्तार किया जा रहा है। काशी में 100 करोड़ रुपये की लागत से बने आंखों के अस्पताल का इसी सावन महीने में शुभारंभ होगा। शंकर हार्ट फाउंडेशन के जरिये मठ बाल हृदय रोगियों की सैकड़ों की संख्या में सर्जरी कर उनका इलाज कराने जैसे कार्य कर रहा। इसमें पूर्वोत्तर के भी कई राज्यों में ऐसे बच्चों की सर्जरी हुई है।

सवाल - शिष्टाचार परिचय के दौरान आपने दैनिक जागरण के पूर्व प्रधान संपादक स्व. नरेंद्र मोहन से ढाई दशक पहले हुई आपकी मुलाकात की स्मृतियों का जिक्र किया। इतने लंबे अर्से बाद भी इस मुलाकात के स्मरणीय बने रहने की क्या कोई खास वजह है?

जवाब - सन् 1998 में कांची पीठ के तत्कालीन शंकराचार्य जयेंद्र स्वामी महाराज के साथ मैं दिल्ली गया था, तब प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से संवाद के उपरांत नरेंद्र मोहन जी हमसे आकर मिले। इस मुलाकात में अन्य विषयों के साथ संस्कृति और राष्ट्र निर्माण से जुड़े कई पहलुओं पर उन्होंने काफी गंभीर व सार्थक चर्चा की। कई सार्थक सवाल भी किए। अध्यात्म और धर्म के साथ राष्ट्र चिंतन पर उनके गहरे दृष्टिकोण और विद्वता ने मुझे विशेष रूप से प्रभावित किया और इसीलिए यह याद रहा है।