Move to Jagran APP
5/5शेष फ्री लेख

कारगिल विजय दिवस : दुश्मनों में नाम का रहता था खौफ, बलिदान भी हुए मगर नहीं खोली जुबान

भारत की सेना के कई वीरों ने कारगिल युद्ध में अपने प्राणों की आहूति दी मगर देश का मान नहीं झुकने दिया वो हंसते-हंसते देश के लिए कुर्बान हो गए।

By Vinay TiwariEdited By: Updated: Sun, 26 Jul 2020 10:42 AM (IST)
Hero Image
कारगिल विजय दिवस : दुश्मनों में नाम का रहता था खौफ, बलिदान भी हुए मगर नहीं खोली जुबान

नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। कारगिल युद्ध लगभग 60 दिनों तक चला और 26 जुलाई को उसका अंत हुआ। इस युद्ध में भारत की सेना के कई वीरों ने अपने प्राणों की आहूति दी मगर देश का मान नहीं झुकने दिया, वो हंसते-हंसते देश के लिए कुर्बान हो गए। युद्ध के दौरान दुश्मनों के छक्के छुड़ाए, इसमें भारत की विजय हुई। ये दिन उन्हीं शहीद हुए सैनिकों की याद में कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है। यहां हम आपको ऐसे ही दो वीर योद्धाओं की कहानी बयां कर रहे हैं।  

शौर्य गाथा: 

कंबाइंड डिफेंस सर्विसेज के जरिए दिसंबर, 1998 में इंडियन मिलिट्री एकेडमी में भर्ती हुए। जाट रेजिमेंट की चौथी बटालियन में पहली पोस्टिंग कारगिल में मिली। जनवरी, 1999 में उन्होंने कारगिल में रिपोर्ट किया। मई के शुरुआती दो हफ्तों में कारगिल के ककसर लांग्पा क्षेत्र में गश्त लगाते हुए उन्होंने बड़ी संख्या में पाकिस्तानी सैनिकों और विदेशी आतंकियों को एलओसी के इस तरफ देखा। 15 मई को अपने पांच साथियों- सिपाही अर्जुन राम, भंवर लाल बगारिया, भीका राम, मूला राम और नरेश सिंह के साथ लद्दाख की पहाड़ियों पर बजरंग पोस्ट की तरफ गश्त लगाने गए। 

वहां पाकिस्तानी सेना की तरफ से अंधाधुंध फायरिंग का जवाब देने के बाद उनके गोला- बारूद खत्म हो गए। इससे पहले कि भारतीय सैनिक वहां मदद लेकर पहुंच पाते, पाकिस्तानी सैनिकों ने उन्हें बंदी बना लिया। पाकिस्तानी रेडियो स्कार्दू ने खबर चलाई कि कैप्टन सौरभ कालिया को बंदी बना लिया गया है। उन्हें 15 मई से 7 जून (23 दिन) तक बंदी बनाकर रखा गया। उनके साथ अमानवीय बर्ताव किया गया। 9 जून को उनके शरीर को भारतीय सेना को सौंपा गया। इतना सहने के बाद भी दुश्मन उनसे कुछ उगलवा न सका।

दुश्मन में इस शेरशाह का था खौफ 

इंडियन मिलिट्री एकेडमी से पासआउट होने के बाद 6 दिसंबर, 1997 को लेफ्टिनेंट के तौर पर सेना में भर्ती हुए। कारगिल युद्ध के दौरान उनकी बटालियन 13 जम्मू एंड कश्मीर रायफल 6 जून को द्रास पहुंची। 19 जून को कैप्टन बत्रा को प्वाइंट 5140 को फिर से अपने कब्जे में लेने का निर्देश मिला। उन्होंने दुश्मन के छक्के छुड़ा दिए और पोजीशन पर कब्जा किया। उनका अगला अभियान था 17,000 फीट की ऊंचाई पर प्वाइंट 4875 पर कब्जा करना।

पाकिस्तानी फौज 16,000 फीट की ऊंचाई पर थीं और बर्फ से ढ़की चट्टानें 80 डिग्री के कोण पर तिरछी थीं। 7 जुलाई की रात वे और उनके सिपाहियों ने चढ़ाई शुरू की। अब तक वे दुश्मन खेमे में भी शेरशाह के नाम से मशहूर हो गए थे। साथी अफसर अनुज नायर के साथ हमला किया।

एक जूनियर की मदद को आगे आने पर दुश्मनों ने उनपर गोलियां चलाईं, उन्होंने ग्रेनेड फेंककर पांच को मार गिराया लेकिन एक गोली आकर सीधा उनके सीने में लगी। अगली सुबह तक 4875 चोटी पर भारत का झंडा फहरा रहा था। इसे विक्रम बत्रा टॉप नाम दिया गया। उन्हें परम वीर चक्र से सम्मानित किया गया।