'तेजी से हो वैवाहिक मामलों का फैसला', एक मामले में सुनवाई के दौरान कर्नाटक हाई कोर्ट की टिप्पणी
वैवाहिक मामलों के निपटान और सुनवाई को लेकर कर्नाटक हाई कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामले में सुनवाई युद्ध स्तर पर होनी चाहिए। कोर्ट ने कहा कि मानव जीवन बहुत छोटा होता है और ऐसे मामलों में जल्दी सुनवाई होने से पक्षकार को अपना जीवन दोबारा शुरू करने का मौका मिल जाता है। ऐसे मामलों के निपटारे में देरी से संबंधित पक्षों पर बहुत बुरा असर पड़ता है।
By AgencyEdited By: Shalini KumariUpdated: Fri, 28 Jul 2023 11:42 AM (IST)
बेंगलुरु, पीटीआई। कर्नाटक उच्च न्यायालय ने कहा है कि वैवाहिक मामलों की सुनवाई और उनका निपटारा जल्दी किया जाना चाहिए। कोर्ट का कहना है कि मानव जीवन छोटा है और पक्षों को मामले के बाद अपने जीवन का पुनर्निर्माण करना होता है।
ऐसे मामलों में होगी सुनवाई
अदालत एक ऐसे व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसने 2016 में एक वैवाहिक मामला दायर कर अपनी शादी को अमान्य करने की मांग की थी। याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि त्वरित न्याय के अधिकार को सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 21 के तहत संवैधानिक गारंटी के रूप में मान्यता दी है और इसलिए मामले के शीघ्र निपटान के लिए एक निर्देश जारी किया जाना चाहिए।
साल भर के भीतर हो जाए फैसला
न्यायमूर्ति कृष्ण एस दीक्षित ने अपने हालिया फैसले में कहा कि अदालत इस प्रस्ताव से सहमत है और वैवाहिक मामलों का त्वरित निपटान जीवन की अल्पता के लिए रियायत के रूप में आवश्यक है। इतिहासकार थॉमस कार्लाइल का हवाला देते हुए, हाई कोर्ट ने कहा, "जीवन छोटा होने के लिए बहुत छोटा है।"सुनवाई में देरी होने से पक्षकार पर पड़ता है बुरा असर
अदालत ने कहा, "जब किसी वैवाहिक मामले में विवाह के अमान्यता के लिए प्रार्थना शामिल होती है, तो अदालतों को एक वर्ष की बाहरी सीमा के भीतर इसे निपटाने का प्रयास करना चाहिए। ऐसा इसलिए, ताकि पक्षकार अपने जीवन को दोबारा नए सिरे से शुरू कर सके। ऐसे मामलों के निपटारे में देरी से संबंधित पक्षों पर बहुत बुरा असर पड़ता है, इस पर विचार-विमर्श की जरूरत नहीं है।"