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    'मुस्लिम व्यक्ति अगर दूसरी शादी करना चाहता है तो पहले उसे....', HC के इस फैसले से सब हैरान

    Updated: Tue, 04 Nov 2025 10:00 PM (IST)

    केरल उच्च न्यायालय ने कहा कि मुस्लिम व्यक्ति को दूसरी शादी के पंजीकरण से पहले पहली पत्नी का पक्ष सुनना होगा। अदालत ने एक याचिका खारिज करते हुए कहा कि पहली पत्नी को पक्षकार बनाना जरूरी है। न्यायमूर्ति पीवी कुन्हिकृष्णन ने कहा कि संविधान के अधिकार सर्वोपरि हैं और पहली पत्नी की भावनाओं को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। अदालत ने यह भी कहा कि मुस्लिम महिलाओं को अपना पक्ष रखने का अवसर मिलना चाहिए।

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    केरल HC: दूसरी शादी से पहले पहली पत्नी की सहमति

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। केरल हाईकोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि यदि कोई मुस्लिम व्यक्ति पहली शादी के कायम रहते हुए दूसरी शादी का पंजीकरण कराना चाहता है तो इस प्रक्रिया के दौरान उसकी पहली पत्नी का पक्ष भी सुना जाना चाहिए कि वह इस शादी से सहमत है या नहीं।

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    यह टिप्पणी अदालत ने उस याचिका पर की, जिसमें एक पुरुष और उसकी दूसरी पत्नी ने अपनी शादी का रजिस्ट्रेशन कराने के लिए राज्य सरकार को निर्देश देने की मांग की थी। अदालत ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि पहली पत्नी को मामले में पक्षकार नहीं बनाया गया था।

    केरल HC: दूसरी शादी से पहले पहली पत्नी की सहमति

    न्यायमूर्ति पीवी कुन्हिकृष्णन ने कहा कि ऐसी स्थिति में धर्म से पहले संविधान के अधिकार सर्वोपरि हैं, इसलिए दूसरी शादी के पंजीकरण के मामले में प्रथागत कानून लागू नहीं होगा। उन्होंने कहा कि अदालत पहली पत्नी की भावनाओं को नजरअंदाज नहीं कर सकती है।

    पहली पत्नी को पक्षकार बनाना जरूरी

    उन्होंने कहा कि मुझे नहीं लगता कि पवित्र कुरान या मुस्लिम कानून में भी पहली शादी कायम रहते और पत्नी के होते हुए, उसकी जानकारी के बगैर किसी अन्य महिला से विवाहेत्तर संबंध बनाने की अनुमति दी गई होगी।

    अदालत ने कहा कि पति की दूसरी शादी के मामले में मुस्लिम महिलाओं को भी अपना पक्ष रखने की अनुमति मिलनी चाहिए, और कम से कम दूसरे निकाह के पंजीकरण के मौके पर ऐसा अवश्य होना चाहिए।

    संविधान के अधिकार सर्वोपरि: उच्च न्यायालय

    अदालत ने कहा कि मुस्लिम कानून में दूसरी शादी की अनुमति है, लेकिन केवल विशिष्ट परिस्थितियों में। पहली पत्नी महज मूकदर्शक नहीं रह सकती। न्यायमूर्ति ने कहा कि उन्हें यकीन है कि 99.99 प्रतिशत मुस्लिम महिलाएं अपनी शादी कायम रहते अपने पति की दूसरी शादी के पक्ष में नहीं होंगी।

    अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि विवाह पंजीकरण अधिकारी पहली पत्नी की राय सुन सकते हैं, और यदि वह दूसरी शादी को अमान्य बताती हैं, तो मामला सिविल अदालत में भेजा जा सकता है।

    (न्यूज एजेंसी पीटीआई के इनपुट के साथ)