'जज भगवान नहीं, हाथ जोड़कर बहस करने की जरूरत नहीं' केरल हाई कोर्ट ने ऐसा क्यों कहा?
केरल हाई कोर्ट ने कहा है कि न्यायाधीश भगवान नहीं हैं। वह सिर्फ अपने संवैधानिक कर्तव्यों का पालन कर रहे हैं। इसलिए वादियों या वकीलों को हाथ जोड़कर बहस करने की आवश्यकता नहीं है। न्यायमूर्ति पी.वी. कुन्हिकृष्णन ने यह बात एक महिला वादी के द्वारा हाथ जोड़कर और आंखों में आंसू लेकर अपने मामले पर बहस करने के दौरान की।
By AgencyEdited By: Achyut KumarUpdated: Sat, 14 Oct 2023 11:43 PM (IST)
आइएएनएस, कोच्चि। केरल हाई कोर्ट ने कहा है कि न्यायाधीश भगवान नहीं हैं। वह सिर्फ अपने संवैधानिक कर्तव्यों का पालन कर रहे हैं और वादियों या वकीलों को हाथ जोड़कर बहस करने की आवश्यकता नहीं है। न्यायमूर्ति पी.वी. कुन्हिकृष्णन ने यह बात तब कही, जब एक वादी ने हाथ जोड़कर और आंखों में आंसू लेकर अपने मामले पर बहस की।
न्यायमूर्ति ने कहा कि भले ही कानून की अदालत को न्याय के मंदिर के रूप में जाना जाता है, लेकिन पीठ में ऐसे कोई देवता नहीं हैं, जिन्हें मर्यादा बनाए रखने के अलावा वकीलों और वादियों से किसी प्रकार की श्रद्धा की आवश्यकता हो।
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'किसी को हाथ जोड़कर बहस करने की जरूरत नहीं'
न्यायूर्ति कुन्हिकृष्णन ने कहा कि सबसे पहले किसी भी वादी या वकील को अदालत के सामने हाथ जोड़कर अपने मामले पर बहस करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि किसी अदालत के समक्ष किसी मामले पर बहस करने का यह उनका संवैधानिक अधिकार है। उन्होंने कहा कि आमतौर पर अदालत को न्याय का मंदिर कहा जाता है, लेकिन बेंच में कोई भगवान नहीं बैठा है।
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रमला कबीर के मामले में अदालत ने की टिप्पणी
हाई कोर्ट ने यह टिप्पणी वादी रमला कबीर के मामले में की, जो अपने खिलाफ दर्ज एफआइआर को रद कराने के लिए व्यक्तिगत रूप से अदालत में उपस्थित हुई थीं। कबीर ने अदालत के समक्ष कहा कि मामला झूठा है।
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