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Kerala High Court: 'अपनी मां या सास की गुलाम नहीं हैं महिलाएं', केरल हाई कोर्ट की बड़ी टिप्पणी

केरल हाई कोर्ट ने तलाक के मामले में परिवार न्यायालय के आदेश की मौखिक आलोचना करते हुए गुरुवार को कहा कि महिलाएं अपनी मां और सास की गुलाम नहीं हैं। जस्टिस देवन रामचंद्रन ने कहा कि महिला के फैसले किसी भी तरह से कमतर नहीं हैं।

By Jagran NewsEdited By: Devshanker ChovdharyUpdated: Fri, 20 Oct 2023 08:09 PM (IST)
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अपनी मां या सास की गुलाम नहीं हैं महिलाएं : केरल हाई कोर्ट
आईएएनएस, कोच्चि। केरल हाई कोर्ट ने तलाक के मामले में परिवार न्यायालय के आदेश की मौखिक आलोचना करते हुए गुरुवार को कहा कि महिलाएं अपनी मां और सास की गुलाम नहीं हैं। जस्टिस देवन रामचंद्रन ने कहा कि महिला के फैसले किसी भी तरह से कमतर नहीं हैं।

इस मामले पर चल रही थी सुनवाई

बता दें कि फैमिली कोर्ट ने पत्नी द्वारा दायर तलाक की याचिका को खारिज कर दिया गया था और उसकी शिकायतों को सामान्य नाराजगी करार दिया था। इसी आदेश में पक्षों (अलग हुए पति-पत्नी) को सलाह दी गई कि वे अपने मतभेदों को भुलाकर विवाहित जीवन की पवित्रता के अनुरूप कार्य करें। हाई कोर्ट ने पारिवारिक अदालत के आदेश को पितृसत्तात्मक करार दिया।

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महिलाओं को कमतर नहीं माना जाना चाहिएः कोर्ट

न्यायाधीश ने कहा कि 2023 में इस तरह के विचार जारी नहीं रहेंगे। पति के वकील ने बताया कि त्रिचूर परिवार न्यायालय के आदेश में पत्नी को इस मुद्दे पर उसकी मां और सास की बात सुनने के लिए कहा गया था। हाई कोर्ट ने कहा कि किसी महिला के फैसले को उसकी मां या उसकी सास के फैसले से कमतर नहीं माना जा सकता है। महिलाएं अपनी मां या सास की गुलाम नहीं हैं।

जज ने पति के वकील की इस दलील पर भी आपत्ति जताई कि मौजूदा विवाद आसानी से अदालत के बाहर भी सुलझाए जा सकते हैं। जज ने कहा कि वह अदालत के बाहर समझौते का निर्देश केवल तभी दे सकते हैं, जब महिला भी ऐसा करने की इच्छुक हो।

कोर्ट ने पति को दी नसीहत

जज ने कहा, महिला का अपना दिमाग है। क्या आप उसे मध्यस्थता के लिए मजबूर करेंगे? यही कारण है कि वह आपको छोड़ने के लिए मजबूर हुई। अच्छा व्यवहार करें। उन्होंने अलग हो चुकी महिला की इस दलील को मंजूरी दे दी कि तलाक की कार्यवाही को उसकी सुविधा के अनुसार थालास्सेरी की अदालत में स्थानांतरित किया जा सकता है, क्योंकि वह कामकाजी पेशेवर है।

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