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'पहले देश, उसके बाद आता है धर्म', बाल विवाह पर केरल हाईकोर्ट ने कहा- सब पर लागू होता है कानून

Child Marriage Act केरल हाईकोर्ट ने बाल विवाह से जुड़े एक मामले पर सुनवाई करते हुए कहा कि कानून सभी पर एक समान रूप से लागू होता है फिर चाहे वह हिन्दू हो या मुस्लिम ईसाई पारसी या अन्य किसी धर्म का। कोर्ट ने कहा कि व्यक्ति पहले भारत का नागरिक है और सभी के लिए कानून एक जैसे हैं।

By Agency Edited By: Sachin Pandey Updated: Sun, 28 Jul 2024 07:09 PM (IST)
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कोर्ट ने कहा कि बाल विवाह बच्चों को उनके बुनियादी मानवाधिकारों से वंचित करता है। (File Image)
पीटीआई, कोच्चि। केरल हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया है कि बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 इस देश के प्रत्येक नागरिक पर लागू होता है, चाहे वह किसी भी धर्म का हो, क्योंकि प्रत्येक भारतीय पहले एक नागरिक है और फिर किसी धर्म का सदस्य बनता है।

न्यायमूर्ति पी वी कुन्हिकृष्णन ने बाल विवाह के खिलाफ पलक्कड़ में 2012 में दर्ज एक मामले को रद्द करने की याचिका पर हालिया आदेश में कहा कि चाहे व्यक्ति किसी भी धर्म का हो, चाहे वह हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, पारसी आदि हो, यह अधिनियम सभी पर लागू होता है।

नाबालिग लड़की के पिता ने दी दलील

याचिकाकर्ताओं, जिनमें तत्कालीन नाबालिग लड़की के पिता भी शामिल थे, ने अदालत के समक्ष दलील दी कि एक मुस्लिम होने के नाते उसे प्यूबर्टी प्राप्त करने के बाद, यानी 15 वर्ष की आयु में शादी करने का धार्मिक अधिकार प्राप्त है।

अदालत ने अपने 15 जुलाई के आदेश में कहा, 'एक व्यक्ति को पहले भारत का नागरिक होना चाहिए और उसके बाद केवल उसका धर्म आता है। धर्म गौण है और नागरिकता पहले आनी चाहिए, मेरा मानना ​​है कि चाहे कोई भी व्यक्ति हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, पारसी आदि हो, अधिनियम 2006 सभी पर लागू होता है।'

बुनियादी मानवाधिकारों से करता है वंचित: कोर्ट

आदेश में कहा गया कि बाल विवाह बच्चों को उनके बुनियादी मानवाधिकारों से वंचित करता है, जिसमें शिक्षा, स्वास्थ्य और शोषण से सुरक्षा का अधिकार शामिल है। साथ ही कोर्ट ने कहा कि कम उम्र में विवाह और गर्भधारण से शिशु मृत्यु दर, मातृ मृत्यु दर और यौन संचारित संक्रमण जैसी स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं। अदालत ने आदेश में कहा, 'बाल विवाह अक्सर लड़कियों को स्कूल छोड़ने के लिए मजबूर करता है, जिससे उनकी शिक्षा और भविष्य के अवसर सीमित हो जाते हैं।'

कई समस्याओं को जन्म देता है बाल विवाह

अदालत ने कहा, 'बाल वधू घरेलू हिंसा और दुर्व्यवहार के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं। बाल विवाह गरीबी को कायम रख सकता है और व्यक्तियों और समुदायों के लिए आर्थिक अवसरों को सीमित कर सकता है। बाल विवाह से बच्चों पर अवसाद और चिंता सहित भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक आघात हो सकता है। बाल विवाह से सामाजिक अलगाव हो सकता है और परिवार और समुदाय से अलगाव हो सकता है। इसके अलावा, बाल विवाह अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून और सम्मेलनों का भी उल्लंघन है।'

कोर्ट ने जताया दुख

कोर्ट ने बाल विवाह के मामलों पर दुख जताते हुए कहा कि यह सुनकर दुख हुआ कि दशकों पहले बाल विवाह निषेध कानून लागू होने के बाद भी केरल में इसके आरोप हैं। कोर्ट ने कहा, 'सबसे दुखद बात यह है कि यहां याचिकाकर्ता यह कहते हुए कथित बाल विवाह को सही ठहराने की कोशिश कर रहे हैं कि मुस्लिम धर्म के कानून के अनुसार, एक मुस्लिम लड़की को उम्र की परवाह किए बिना युवावस्था प्राप्त करने के बाद शादी करने का धार्मिक अधिकार प्राप्त है, भले ही बाल विवाह निषेध अधिनियम लागू हो।'