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ये बतख तो वाकई कमाल की है

खाकी कैंपवेल, वाकई कमाल की बतख है। एक साल में 300 अंडे देती है। लगातार दो साल तक अंडे देने वाली यह बतख दूसरी पक्षियों की तुलना में अधिक बुद्धिमान है। रहने व चरने के स्थान की चंद दिनों में पहचान कर लें तो फिर उसकी देख-रेख की जरूरत नहीं।

By Edited By: Updated: Wed, 23 Jul 2014 11:54 AM (IST)

गोरखपुर, (गिरीश पांडेय)। खाकी कैंपवेल, वाकई कमाल की बतख है। एक साल में 300 अंडे देती है। लगातार दो साल तक अंडे देने वाली यह बतख दूसरी पक्षियों की तुलना में अधिक बुद्धिमान है।

रहने व चरने के स्थान की चंद दिनों में पहचान कर लें तो फिर उसकी देख-रेख की जरूरत नहीं। अजनबी को देखते ही शोर मचाने का गुण होने से यह बेहतर चौकीदार भी है। कई खूबियों वाली यह बतख अब पूर्वाचल से दूर है। वर्ष 1999 में खाकी कैंपवल बतख को पालने की योजना यहां बनी थी।

अगस्त 2003 में गोरखपुर के चरगांवां में पशुपालन विभाग द्वारा करीब 10 लाख रुपये की लागत से बतख प्रक्षेत्र बनाया गया।

बेंगलुरु के हैसरघट्टा स्थित 'सेंट्रल डक ब्रीडिंग फार्म' से एक हजार चूजे मंगाए गए। फरवरी 2004 से इनके अंडे से तैयार चूजों को बिना लाभ-हानि के इछुक किसानों को दिया गया पर कुप्रबंधन के चलते बतखें और चूजे मरते गए। अप्रैल 2005 में इसे अंतिम रूप से बंद कर दिया गया।

मौजूदा समय में इस बेहद उपयोगी परियोजना की बदहाली का सुबूत इसकी तस्वीरें हैं। अफसोस कि जनप्रतिनिधियों के लिए बतख खाकी कैंपवेल कभी मुद्दा नहीं बनी।

किसान मित्र इस बतख की खूबियां ही इसे विशिष्ट बनाती हैं। इसके अंडे देने का समय तय है। अमूमन दिन में 9 बजे तक 95-98 फीसद बतख अंडे दे देती हैं। अंडे एकत्र करने के बाद निश्चित होकर इन बतखों को चरने के लिए छोड़ सकते हैं। इनके अंडे मुर्गी के अंडे से 15-20 ग्राम तक बड़े होते हैं। इसी अनुरुप इसमें पोषक तत्व भी अधिक होते हैं। रोगों के प्रति प्रतिरोधी इस बतख का मांस भी खाने के काम आता है।

पूर्वाचल के लिए वरदान

पूर्वाचल के कुपोषण, जलजमाव के नाते मच्छर जनित रोगों के प्रकोप के प्राकृतिक नियंत्रण में ये बतख महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती थी। गांव-गांव में मौजूद जलस्त्रोतों के मद्देनजर इसे पालने की भरपूर संभावना थी। कम जागरुकता, साफ-सफाई की कमी वाले ग्रामीण क्षेत्र के लिए तो यह नायाब थी।

पूर्व मुख्य पशु चिकित्साधिकारी डा.विद्यासागर श्रीवास्तव के अनुसार मछरों का लार्वा बतखों का स्वाभाविक आहार है। दो-छह बतखें एक हेक्टेयर तालाब या आबादी के आसपास मौजूद मछरों के लार्वा को सफाचट कर जाती हैं। एक हेक्टेयर तालाब में मछली के साथ पलने वाली 200-300 बतखों की बीट ही मछलियों के लिए भरपूर भोजन है। अलग से आहार न देने के नाते मत्स्य पालक की करीब 60 फीसद लागत की बचती है।

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