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Kumbh Mela 2019: कुंभ में 13 अखाड़े हुए हैं शामिल, जानिए इनके बारे में सब कुछ

देश में कुल 13 अखाड़ों को मान्यता प्राप्त है। इनमें से सात शैव, तीन वैष्णव व तीन उदासीन (सिक्ख) अखाड़े रहेंगे।

By Manish NegiEdited By: Updated: Tue, 15 Jan 2019 05:22 PM (IST)
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Kumbh Mela 2019: कुंभ में 13 अखाड़े हुए हैं शामिल, जानिए इनके बारे में सब कुछ
नई दिल्ली, जागरण स्पेशल। मकर संक्रांति के प्रथम शाही स्नान के साथ कुंभ मेले का आगाज हो चुका है। प्रथम शाही स्नान पर मंगलवार को दोपहर करीब 12 बजे तक 85 लाख श्रद्धालुओं ने गंगा में डुबकी लगाई। चार मार्च तक चलने वाले इस कुंभ का साक्षी बनने के लिए लाखों साधु-संत आए हैं। कुंभ मेले में अखाड़ों की काफी चर्चा है। ऐसे में अखाड़ों का इतिहास जानना काफी जरूरी हो जाता है। हमारे देश में कुल 13 मान्यता प्राप्त अखाड़े हैं। इनमें से सात शैव, तीन वैष्णव व तीन उदासीन (सिक्ख) अखाड़े रहेंगे। इसके अलावा जूना अखाड़ा में समाहित हो चुका किन्नर अखाड़ा भी कुंभ का साक्षी बन गया है।

जूना अखाड़ा (शैव)

जूना अखाड़ा पहले भैरव अखाड़े के रूप में जाना जाता था। दरअसल, उस वक्त इनके इष्टदेव भैरव थे। भैरव भगवान शिवजी के रूप हैं। वर्तमान में इस अखाड़े के इष्टदेव भगवान दत्तात्रेय हैं, जो कि रुद्रावतार हैं। इस अखाड़े के अंतर्गत आवाहन, अलखिया व ब्रह्मचारी भी हैं।

निरंजनी अखाड़ा (शैव) 

श्री पंचायती अखाड़ा निरंजनी 

निरंजनी अखाड़े की स्थापना वर्ष 1904 में गुजरात के मांडवी नामक स्थान पर हुई थी। हालांकि, इस तिथि को निरंजनी स्वीकार नहीं करते। ऐसा इसलिए, क्योंकि उनके पास एक प्राचीन तांबे की छड़ है। इस पर निरंजनी अखाड़े के स्थापना के बारे में विक्रम संवत् 960 अंकित है। इस अखाड़े के इष्टदेव भगवान कार्तिकेय हैं, जो देवताओं के सेनापति हैं। निरंजनी अखाड़े के साधु शैव हैं व जटा रखते हैं।

महानिर्वाणी अखाड़ा (शैव) 

निर्वाणी अखाड़े का केंद्र हिमाचल प्रदेश के कनखल में है। इस अखाड़े की अन्य शाखाएं प्रयाग, ओंकारेश्वर, काशी, त्रयंबक, कुरुक्षेत्र, उज्जैन व उदयपुर में है। उज्जैन के महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग में भस्म चढ़ाने वाले महंत निर्वाणी अखाड़े से ही संबंध रखते हैं।

आवाहन अखाड़ा (शैव) 

यह अखाड़ा जूना अखाड़े से सम्मिलित है। इस अखाड़े की स्थापना 547 में हुई थी, लेकिन जदुनाथ सरकार इसे 1547 बताते हैं। इस अखाड़े का केंद्र दशाश्वमेघ घाट, काशी में है। इस अखाड़े के संन्यासी भगवान श्रीगणेश व दत्तात्रेय को अपना इष्टदेव मानते हैं।

अटल अखाड़ा (शैव) 

इस अखाड़े के इष्टदेव भगवान श्रीगणेश हैं। इनके शस्त्र-भाले को सूर्य प्रकाश के नाम से जाना जाता है। इस अखाड़े की स्थापना गोंडवाना में सन् 647 में हुई थी। इसका केंद्र काशी में है। इस अखाड़े का संबंध निर्वाणी अखाड़े से है।

आनंद अखाड़ा (शैव) 

यह अखाड़ा विक्रम संवत् 856 में बरार में बना था, जबकि सरकार के अनुसार, विक्रम संवत् 912 है। इस अखाड़े के इष्टदेव सूर्य हैं।

अग्नि अखाड़ा (शैव) 

पंच अग्नि 

अग्नि अखाड़े की स्थापना सन् 1957 में हुई थी, हालांकि इस अखाड़े के संत इसे सही नहीं मानते। इसका केंद्र गिरनार की पहाड़ी पर है। इस अखाड़े के साधु नर्मदा-खण्डी, उत्तरा-खण्डी व नैस्टिक ब्रह्मचारी में विभाजित है।

 

दिगंबर अखाड़ा (वैष्णव) 

इस अखाड़े की स्थापना अयोध्या में हुई थी। यह अखाड़ा लगभग 260 साल पुराना है। सन 1905 में यहां के महंत अपनी परंपरा में 11वें थे। दिगंबर निम्बार्की अखाड़े को श्याम दिगंबर और रामानंदी में यही अखाड़ा राम दिगंबर अखाड़ा कहा जाता है। 

निर्वाणी अखाड़ा (वैष्णव) 

इसकी स्थापना अभयरामदासजी नाम के संत ने की थी। आरंभ से ही यह अयोध्या का सबसे शक्तिशाली अखाड़ा रहा है। हनुमानगढ़ी पर इसी अखाड़े का अधिकार है। इस अखाड़े के साधुओं के चार विभाग हरद्वारी, वसंतिया, उज्जैनिया व सागरिया हैं।

निर्मोही अखाड़ा (वैष्णव) 

इस अखाड़े की स्थापना 18वीं सदी के आरंभ में गोविंददास नाम के संत ने की थी, जो जयपुर से अयोध्या आए थे। निर्मोही शब्द का अर्थ है मोह रहित। 

निर्मल अखाड़ा (सिक्ख) 

इस अखाड़े की स्थापना सिख गुरु गोविंदसिंह के सहयोगी वीरसिंह ने की थी। ये सफेद कपड़े पहनते हैं। इसके ध्वज का रंग पीला या बसंती होता है और ऊन या रुद्राक्ष की माला हाथ में रखते हैं।

बड़ा उदासीन अखाड़ा (सिक्ख) 

इस अखाड़े का स्थान कीडगंज, प्रयागराज में है। यह उदासी का नानाशाही अखाड़ा है। इस अखाड़े में चार पंगतों में चार महंत इस क्रम से होते हैं। 1. अलमस्तजी का पंक्ति का, 2. गोविंद साहबजी का पंक्ति का, 3. बालूहसनाजी की पंक्ति का, 4. भगत भगवानजी की परंपरा का।

नया उदासीन अखाड़ा (सिक्ख) 

सन् 1902 में उदासीन साधुओं में मतभेद हो जाने के कारण महात्मा सूरदासजी की प्रेरणा से एक अलग संगठन बनाया गया, जिसका नाम उदासीन पंचायती नया अखाड़ा रखा गया। इस अखाड़े में केवल संगत साहब की परंपरा के ही साधु सम्मिलित हैं।