आसन एक लेकिन इसके फायदे अनेक हैं, जी हां यही हैं पर्यंकासन की खूबियां...
इस आसन से पीठ में खिंचाव के कारण फेफड़े सशक्त होते हैं। इस कारण सांस संबंधी रोग दूर करने में मदद मिलती है। अधिक ऑक्सीजन मिलने के कारण फेफड़े स्वस्थ रहते हैं।
By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Sat, 05 Jan 2019 02:22 PM (IST)
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। पर्यंक यानी फैलाव। पर्यंकासन में जांघ से लेकर सिर तक की मांसपेशियों में खिंचाव पैदा होता है और ये अंग स्वस्थ बने रहते हैं। हृदय रोगों में यह आसन विशेष लाभकारी है। यह सुप्त वज्रासन जैसा ही है। इस आसन से वज्रासन, सुप्त वज्रासन और मत्स्यासन के सभी लाभ एक साथ मिलते हैं। इसे दो तरीकों से किया जाता है:
पहली विधि
वज्रासन में बैठकर हाथों का सहारा लेकर धीरे-धीरे इस प्रकार लेट जाएं कि केवल सिर जमीन को छूता हुआ हो और धड़ वाला हिस्सा जमीन से थोड़ा ऊपर रहे। इस प्रक्रिया में शरीर को कोई झटका न लगे। लेटने के बाद दोनों घुटनों को मिला लें। फिर हाथों को पीछे, सिर के पास ले जाकर इंटरलॉक कर लें। आप चाहें तो हाथों को जांघ या नाभि पर भी रख सकते हैं। इस अवस्था में सहज रूप से लगभग एक से तीन मिनट तक यथाशक्ति रुकें। फिर धीमी,लंबी व गहरी सांस के साथ हाथों को खोलें और धीरे-धीरे पुन: पहले वज्रासन में आ जाएं और उसके बाद पैरों को सीधा कर शवासन में आ जाएं और विश्राम करें। दूसरी विधि
बैठकर दोनों पैर सामने फैला लें। अब सांस भरकर दाएं पैर को थोड़ा मोड़ते हुए और दाहिनी ओर ले जाएं। फिर दाएं घुटने पर दाहिनी कोहनी रखकर लेट जाएं और दाएं हाथ को सिर को नीचे तकिए की तरह रख लें। बायां पैर बिल्कुल सीध में रहे और बायां हाथ बाई जांघ पर हो। इस अवस्था में लगभग एक मिनट तक सहज सांस के साथ रहें। फिर यही प्रक्रिया बाएं पैर को मोड़कर दोहराएं।
वज्रासन में बैठकर हाथों का सहारा लेकर धीरे-धीरे इस प्रकार लेट जाएं कि केवल सिर जमीन को छूता हुआ हो और धड़ वाला हिस्सा जमीन से थोड़ा ऊपर रहे। इस प्रक्रिया में शरीर को कोई झटका न लगे। लेटने के बाद दोनों घुटनों को मिला लें। फिर हाथों को पीछे, सिर के पास ले जाकर इंटरलॉक कर लें। आप चाहें तो हाथों को जांघ या नाभि पर भी रख सकते हैं। इस अवस्था में सहज रूप से लगभग एक से तीन मिनट तक यथाशक्ति रुकें। फिर धीमी,लंबी व गहरी सांस के साथ हाथों को खोलें और धीरे-धीरे पुन: पहले वज्रासन में आ जाएं और उसके बाद पैरों को सीधा कर शवासन में आ जाएं और विश्राम करें। दूसरी विधि
बैठकर दोनों पैर सामने फैला लें। अब सांस भरकर दाएं पैर को थोड़ा मोड़ते हुए और दाहिनी ओर ले जाएं। फिर दाएं घुटने पर दाहिनी कोहनी रखकर लेट जाएं और दाएं हाथ को सिर को नीचे तकिए की तरह रख लें। बायां पैर बिल्कुल सीध में रहे और बायां हाथ बाई जांघ पर हो। इस अवस्था में लगभग एक मिनट तक सहज सांस के साथ रहें। फिर यही प्रक्रिया बाएं पैर को मोड़कर दोहराएं।
लाभ
- पीठ में खिंचाव के कारण फेफड़े सशक्त होते हैं। इस कारण सांस संबंधी रोग दूर करने में मदद मिलती है। अधिक ऑक्सीजन मिलने के कारण फेफड़े स्वस्थ रहते हैं।
- गर्दन के आसपास के भागों में खिंचाव के कारण थायरॉयड की समस्या में राहत मिलती है।
- वज्रासन में होने के कारण पाचनतंत्र की ओर रक्त संचार बढ़ता है और वह बेहतर ढंग से काम करता है।
- प्रजनन अंगों और मूत्राशय के रोगों में राहत मिलती है।
- जांघ, कमर और पेट में खिंचाव से ये अंग क्रियाशील होते हैं। रीढ़ की हड्डी सशक्त होती है।
- कमर और नितंबों की चर्बी कम करने में मददगार है।
- बवासीर, हाइड्रोसिल, सुस्ती, हर्निया और शुक्राणु कम बनने आदि की समस्या में भी लाभप्रद है।
- गैस और बदहजमी से छुटकारा मिलता है।
- विशेषज्ञों का कहना है कि इस आसन के करने से महिलाओं को काफी लाभ मिलता है, लेकिन गर्भवती महिलाओं को इस आसन को करने से बचना चाहिए।
- अगर आप आसन करना ही चाहती हैं तो किसी कुशल विशेषज्ञ की देखरेख में ही करें। अपने आप करने की कोशिश न करें।