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वैज्ञानिक कसौटी पर भी खरा उतरा है हमारा कल्‍पवास, जानें इसका पौराणिक महत्‍व

कल्‍पवास को लेकर भारत में कई धार्मिक मान्‍यताएं हैं। इसको वैज्ञानिक कसौटी पर भी खरा माना गया है।

By Kamal VermaEdited By: Updated: Tue, 18 Dec 2018 12:45 PM (IST)
वैज्ञानिक कसौटी पर भी खरा उतरा है हमारा कल्‍पवास, जानें इसका पौराणिक महत्‍व
नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। प्रयागराज में माघ मेले को लेकर तैयारियां अंतिम चरण में हैं। इस दौरान यहां पर लाखों लोग जुटेंगे और कल्‍पवास करेंगे। कल्‍पवास को लेकर आपको बता दें कि इस दौरान संगम तट पर रहने वाले श्रद्घालु कल्पवासी कहलाते हैं।

समय का महत्‍व 
हमारे ऋषि-मुनियों ने इस कल्‍पवास के लिए जो समय तय किया है उसका भी अपना ही महत्‍व है। ऐसा इसलिए क्‍योंकि इस समय नदियों का जल लगभग 7-12 डिग्री के आसपास रहता है। इतने कम तापमान पर रोग फैलाने वाले जीव तेजी से पनप नहीं पाते।

भोजन का भी महत्‍व 
कुंभ के समय कल्पवास करने वाले श्रद्घालु शुद्घ, सात्विक भोजन करते हैं। यह भोजन रोगों का मुकाबला करने में शरीर की मदद करता है और उसकी प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ता है। छह साल फिर शरीर होता है मजबूत लेकिन हमारे शरीर में बनी ये एंटीबॉडीज नए रोगों या रोग फैलाने वाले जीवों के लिए बेकार साबित होने लगती हैं। नए रोगों को पनपने में कुछ समय लगता है। इसलिए ही अर्द्धकुंभ की शुरुआत की गई। 

आखिर कल्‍पवास है क्‍या 
दरअसल, पुराणों और धर्मशास्त्रों में इसे आत्मा की शुद्धि और आध्यात्मिक उन्नति के लिए जरूरी बताया गया है। वहीं आधुनिक विज्ञान के मुताबिक, हमारे पूर्वजों ने इस महान स्नान पर्व की शुरूआत करके आमजन को शारीरिक रोगों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने की दिशा में एक सूझबूझ भरा कदम उठाया। मत्स्यपुराण के मुताबिक कल्‍पवास का अर्थ संगम के तट पर निवास कर वेदाध्ययन और ध्यान करना है। कुंभ में कल्पवास का अत्यधिक महत्व माना गया है। कल्पवास पौष महीने के 11वें दिन से माघ महीने के 12वें दिन तक रहता है। पद्म पुराण में इसका वर्णन करते हुए कहा गया है कि संगम तट पर वास करने वाले को सदाचारी, शांत मन वाला और जितेन्द्रिय होना चाहिए। मत्स्यपुराण के अनुसार जो कल्पवास की प्रतिज्ञा करता है वह अगले जन्म में राजा के रूप में जन्म लेता है और जो मोक्ष की अभिलाषा लेकर कल्पवास करता है उसे अवश्य मोक्ष मिलता है। कल्पवासी के मुख्य कार्य हैं-1. तप2. होम, 3. दान। 

क्‍यों रखा गया कल्‍पवास का विधान
दरअसल, कल्पवास वेदकालीन अरण्य संस्कृति की देन है। कल्पवास का नियम हमारे यहां हजारों वर्षों से चला आ रहा है। जब इलाहाबाद तीर्थराज प्रयाग कहलाता था। पूर्व में यह आज की तरह विशाल शहर ना होकर ऋषियों की तपोस्थली माना जाता था। प्रयाग क्षेत्र में गंगा-जमुना के आसपास घना जंगल था। इस जंगल में ऋषि-मुनि ध्यान और तप करते थे। ऋषियों ने गृहस्थों के लिए कल्पवास का विधान रखा था। उनके अनुसार इस दौरान गृहस्थों को थोड़े समय के लिए शिक्षा और दीक्षा दी जाती थी। कल्पवास के नियम के मुताबिक, इस दौरान जो भी गृहस्थ कल्पवास का संकल्प लेकर आता है वह पत्तों और घासफूस से बनी हुई कुटिया में रहता है जिसे पर्ण कुटी कहा जाता है।

ऐसे होती है दिन की शुरुआत
इस दौरान दिन में एक ही बार भोजन किया जाता है व मानसिक रूप से धैर्य, अहिंसा और भक्तिभाव का पालन किया जाता है।यहां कुटिया में रहने वाले कल्पवासी सुबह की शुरूआत गंगा स्नान से करते हैं। उसके बाद दिन में सत्संग किया जाता है और देर रात तक भजन, कीर्तन चलता है। इस प्रकार यह लगभग दो महीने से ज्यादा का समय सांसारिक भागदौड़ से दूर तन और मन को नई स्फूर्ति से भर देने वाला होता है।

आदिकाल से हो रहा जिक्र
सनातन हिंदू धर्म में कुंभ और कल्पवास का जिक्र आदिकाल से होता चला आया है। माना जाता है कि इस समय गंगा समेत पवित्र नदियों की धारा में साक्षात अमृत प्रवाहित होता है। यह स्नान पर्व पौष और माघ के महीने में या हर छह साल बाद सर्दियों की ऋतु में प्रयाग (इलाहाबाद), हरिद्वार, नासिक, उज्जैन में स्थित पवित्र नदियों के तट पर आयोजित होता है। हर 6 साल बाद होने वाले अर्द्धकुंंभ और 12 साल बाद होने वाले पूर्ण कुंभ में असंख्य श्रद्घालु शामिल होते हैं और एक साथ स्नान करते हैं।

वैज्ञानिक कसौटी पर कल्‍पवास
कल्‍पवास को यदि वैज्ञानिक कसौटी पर कसा जाए तो पता चलता है कि हमारा शरीर जब रोग फैलाने वाले बैक्टीरिया, वायरस जैसे सूक्ष्मजीवों केसंपर्क में आते हैं तो हमारा शरीर उनके खिलाफ एंटीबॉडी बनाता है। एंटीबॉडी प्रोटीन के बने वे कण हैं जो हमारे शरीर की कोशिकाओं में बनते हैं और बीमारियों से शरीर की रक्षा करते हैं। कुंभ स्नान और कल्पवास के जरिए कल्पवासियों का शरीर पहले तो प्रकृति में कल्पवास करने आए दूसरे कल्पवासियों के शरीर में मौजूद नए रोगों और रोग फैलाने वाले सूक्ष्मजीवों के संपर्क में आते हैं। इसके परिणामस्वरूप उनके शरीरों में इन रोगों के खिलाफ एंटीबॉडीज बननी शुरू हो जाती हैं। बार-बार स्नान करने से शुरूआती दिनों में ही शरीर में बड़ी मात्रा में एंटीबॉडी बनती हैं। इसका असर यह होता है कि शरीर में रोग पनप नहीं पाता बल्कि उसके खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता पैदा होने लगती है। इस तरह से डेंगू, चिकनगुनिया, टीबी और ऐसी दूसरी बीमारियों के खिलाफ शरीर मजबूत हो जाता है।

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