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Nirbhaya Justice: 7 साल, 3 माह और 4 दिन बाद निर्भया को मिला इंसाफ, एक नजर में जानें पूरा मामला

आखिरकार लंबे अंतराल के बाद निर्भया के दोषी अपने अंजाम तक पहुंच ही गए। इसको लेकर सात वर्ष पहले जो मुहिम शुरू हुई थी उसका आज पटाक्षेप हो गया।

By Kamal VermaEdited By: Updated: Fri, 20 Mar 2020 08:53 AM (IST)
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Nirbhaya Justice: 7 साल, 3 माह और 4 दिन बाद निर्भया को मिला इंसाफ, एक नजर में जानें पूरा मामला
नई दिल्‍ली। निर्भया मामले का आखिरकार 7 साल, 3 माह और 4 दिन बाद इंसाफ मिल ही गया। निर्भया के दोषियों की फांसी के साथ ये मामला हमेशा के लिए बंद हो जाएगा। इसके बाद भी ये मामला भविष्‍य में हमेशा याद रखा जाएगा। इस मामले की शुरुआत 16 दिसंबर 2012 की रात को शुरू हुआ था, जब निर्भया अपने एक दोस्‍त के साथ साकेत स्थित सेलेक्ट सिटी मॉल में 'लाइफ ऑफ पाई' मूवी देखकर वापस आ रही थी। घर लौटने के लिए उन्होंने करीब रात 8 बजे ऑटो लिया। लेकिन उन्‍हें उस भयानक पल का अंदाजा नहीं था जो उनका इंतजार कर रहा था। 

निर्भया के दोस्‍त ने ऑटो से ही सीधा घर जाने का मन बनाया था लेकिन ऑटो वाला तैयार नहीं हुआ। इसकी वजह से वह रात करीब 8:30 बजे ऑटो से मुनिरका उतर गए थे। उस वक्‍त वहां पर एक सफेद रंग की बस पहले से खड़ी थी। इसमें से एक लड़का बार-बार पूछ रहा था कहां जाना है। उसने निर्भया को दीदी कहकर पुकारा था। उसने इन दोनों से पालम गांव जाने की बात कही थी। इसके बाद ये दोनों ही बस में बैठ गए। इसमें पहले से ही  इस लड़के को मिलाकर छह लोग मौजूद थे। अन्‍य लोग किसी सवारी की तरह ही अलग-अलग सीटों पर पीछे बैठे थे। इन दोनों को इस बात का कोई अंदाजा नहीं था कि आगे इनके साथ क्‍या होने वाला है। 

निर्भया के दोस्‍त ने एक निजी चैनल को बताया था कि बस चलने के बाद उन्‍हें ऐसा लग रहा था कुछ ठीक नहीं है। जो लड़का पालम गांव जाने की आवाज लगा रहा था उसने इन दोनों से किराया मांगा तो निर्भया के दोस्‍त ने उसको 20 रुपये दिए। थोड़ी देर आगे जाने पर उस लड़के ने बस के गेट बंद कर दिए। इसके बाद पीछे बैठे तीन लोग आगे आ गए और निर्भया के दोस्‍त से पहले बदतमीज की और फिर कहासुनी होने पर उन्‍होंने इनसे मारपीट शुरू कर दी। इन लोगों ने उनसे उनका फोन छीन लिया। 

जब निर्भया अपने दोस्‍त के बचाव में उतरी तो इन सभी लोगों ने उसके साथ न सिर्फ मारपीट की बल्कि उसको खींचकर पीछे ले गए और बारी-बारी से उसके साथ दुष्‍कर्म किया था। इस दौरान जब निर्भया के दोस्‍त ने उसको बचाने की कोशिश की तो उसको इन्‍होंने लोहे की रॉड मारकर घायल कर दिया था, जिसके बाद वो बेहोश हो गए। इसके बाद जो दर्दनाक सिलसिला निर्भया के साथ शुरू हुआ उसको शब्‍दों में बांध पाना काफी मुश्किल है। इन दरिंदों ने अपनी हवस को मिटाने के साथ ही निर्भया के शरीर में लोहे ही रॉड घुसा दी थी। उसके शरीर को नौंच डाला था।  

निर्भया के दोस्त ने निजी चैनल को बताया था कि जब उन्‍हें होश आया तो ये सभी आपस में बातचीत कर रहे थे कि अब लड़की मर गई है इसको बस से नीचे फेंक देते हैं। इनकी मंशा इन दोनों को गाड़ी से कुचल देने की थी। इन दोनों को सड़क पर फेंक कर इन्‍होंने इन पर गाड़ी चढ़ाने की कोशिश भी की लेकिन ये बच गए।जिस जगह पर दोनों को फेंका गया था वह दक्षिण दिल्ली के महिपालपुर के नजदीक वसंत विहार इलाका था। वहां से लगातार  गाड़ियां और ऑटो गुजर रहे थे। निर्भया के दोस्‍त ने इनसे मदद की अपील की लेकिन वहां कोई नहीं रुका। आखिर में एक बाइक वाला उन्‍हें देखकर रुका और उसने पहले एक फोन किया और फिर एक गाड़ी और एक पीसीआर वैन वहां पर आई। वहां से उन्‍हें अस्‍पताल ले जाया गया। 

सुबह होने तक ये खबर पूरी दिल्‍ली और कुछ समय बाद पूरे देश में फैल चुकी थी। हर कोई निर्भया की जिंदगी और उसको इंसाफ की मांग कर रहा था। इसको लेकर लोग जहां सड़कों पर उतर गए थे वहीं निर्भया अपनी जिंदगी की जंग अस्‍पताल में लड़ रही थी। देश भर में निर्भया को इंसाफ दिलाने के लिए लोग सड़कों पर उतर रहे थे। इस बीच उसकी हालत नाजुक होती जा रही थी जिसकी वजह से उसे वेंटिलेटर पर रखा गया था।

इस दौरान दिल्ली की तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित भी उसको देखने अस्‍पताल गई थीं। उन्‍होंने बाद में एक चैनल से कहा था कि निर्भया की हालत देखने के बाद उनके रौंगटे खड़े हो गए थे। उनमें इतनी हिम्मत नहीं कि वो पीड़ित लड़की को दोबार देख सकें। सोनिया गांधी ने सफदरजंग अस्पताल जाकर पीड़ित लड़की का हालचाल जाना था। हालात खराब होते देख तत्‍कालीन मनमोहन सिंह सरकार ने निर्भया को इलाज के लिए सिंगापुर के माउन्ट एलिजाबेथ अस्पताल में भर्ती कराने का फैसला लिया गया। 

निर्भया और उसके परिजनों को वहां भेजने का इंतजाम किया गया उनके पासपोर्ट और वीजा तैयार किया गया और एक एयर एंबुलेंस से उन्‍हें वहां पर भेजा गया। सिंगापुर के रास्‍ते में निर्भया को जबरदस्‍त दिल का दौरा पड़ा था लेकिन किसी तरह से वो अस्‍पताल पहुंच गई थी। वहां पर डॉक्‍टरों ने उसको बचाने की पूरी कोशिश की लेकिन नाकाम रहे। 29 दिसंबर को निर्भया ने रात के करीब सवा दो बजे वहां दम तोड़ दिया था।

इस पूरे मामले में दिल्‍ली पुलिस की महिला अधिकारी ने तुरंत कार्यवाही करते हुए घटना के दो दिन बाद दिल्ली पुलिस ने छह में से चार आरोपियों राम सिंह, मुकेश, विनय शर्मा और पवन गुप्ता को गिरफ्तार किया। 21 दिसंबर 2012 को पुलिस ने पांचवें आरोपी जो नबालिग था उसे दिल्ली से और छठे आरोपी अक्षय ठाकुर को बिहार से गिरफ्तार किया था। फास्‍ट ट्रेक कोर्ट बनाई गई। साकेत की फास्‍ट ट्रेक कोर्ट में यह मामला सुना गया। पुलिस ने इस मामले में 80 लोगों को गवाह बनाया। इसी बीच 11 मार्च, 2013 को आरोपी बस चालक राम सिंह ने तिहाड़ जेल में आत्महत्या कर ली थी।

अदालत के द्वारा चारो वयस्क दोषियों को फाँसी की सज़ा सुनायी गयी, जबकि एक आरोपी को स्कूली प्रमाणपत्र के आधार पर नाबालिग मानते हुए उसे तीन साल किशोर सुधार गृह में रहने की सजा दी गई है। इसके बाद हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट में भी दोषियों को मिली फांसी की सजा पर मुहर लगी। इसके बाद भी काफी कानूनी प्रक्रिया होने के चलते इस मामले को अपने अंजाम तक पहुंचने में सात वर्ष से अधिक का समय लग गया। इस घटना के बाद उषा मेहरा कमिशन का गठन हुआ, जिसने सुरक्षा जैसे मुद्दों पर तमाम जिम्मेदार विभागों में संवाद की कमी और इसे कैसे दूर किया जाय से संबंधित अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी। 

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