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चंदा मामा के बाद अब सूर्य को नमस्कार कहने की बारी, Aditya-L1 मिशन से सुलझेंगे सूरज के कई अनसुलझे राज

Aditya-L1 Mission सूर्य की स्टडी करने के लिए आदित्य एल-1 सैटेलाइट पूरी तरह तैयार है। इस मिशन के बाद सूर्य के पास सैटेलाइट भेजने वाला भारत दुनिया का चौथा देश बन जाएगा। अमेरिका जर्मनी व यूरोपीय स्पेस एजेंसी सूर्य पर सैटेलाइट भेज चुके हैं। आइए समझते हैं कि आखिर इस मिशन का उद्देश्य क्या है और इस सैटेलाइट के जरिए सूर्य से जुड़ी कौन-कौन सी जानकारी हमारे पास सामने आएगी।

By Piyush KumarEdited By: Piyush KumarUpdated: Wed, 16 Aug 2023 03:48 PM (IST)
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Aditya-L1 Mission: सितंबर के पहले हफ्ते में आदित्य एल-1 सैटेलाइट की लॉन्चिंग हो सकती है।
नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में भारत चंद्रमा और मंगल ग्रह पर सैटेलाइट भेजकर सफलता हासिल कर चुका है। अब बारी सूर्य की है। भारत आदित्य एल-1 मिशन (Aditya-L1 Mission) के जरिए सूर्य की स्टडी करने वाला है।

इस प्रोजेक्ट पर करीब एक दशक से काम चल रहा है। कोविड-19 ने भले ही इस प्रोजेक्ट की रफ्तार कम कर दी थी, लेकिन अब यह मिशन अंतिम चरण में पहुंच चुका है। इस सैटेलाइट को इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स (Indian Institute of AstroPhysics),बेंगलुरु द्वारा डिजाइन और निर्मित किया गया है।

इसरो (ISRO) ने जानकारी दी है कि फिलहाल, आदित्य एल-1 श्रीहरिकोटा स्पेसपोर्ट पर मौजूद है। सब कुछ सही रहा तो सितंबर के पहले हफ्ते में सैटेलाइट की लॉन्चिंग हो सकती है। इस मिशन के बाद सूर्य के पास सैटेलाइट भेजने वाला भारत दुनिया का चौथा देश बन जाएगा। अमेरिका, जर्मनी व यूरोपीय स्पेस एजेंसी सूर्य पर सैटेलाइट भेज चुके हैं।

(फोटो सोर्स: इसरो) 

क्या है आदित्य एल-1 मिशन का लक्ष्य?

आदित्य एल-1 मिशन का लक्ष्य सीएमई यानी सूर्य से पृथ्वी की ओर आने वाले सौर तूफानों का निरीक्षण करना है। मल्टी-वेवलेंथ में सौर पवन की उत्पत्ति का अध्ययन करना है। सैटेलाइट अंतरिक्ष मौसम पर प्रभाव की भी स्टडी करेगा।

पृथ्वी से 15 लाख किमी दूर स्थापित किया जाएगा सैटेलाइट

आदित्य एल-1 को अंतरिक्ष में 'लैग्रेंज पाइंट्स' यानी एल-1 कक्षा में स्थापित किया जाएगा। इसके बाद यह ये सैटेलाइट सूर्य पर होने वाली गतिविधियों का 24 घंटे अध्ययन करेगा। एल-1 सैटेलाइट को पृथ्वी से 15 लाख किलोमीटर दूर स्थापित किया जाएगा।

बता दें कि सूर्य से पृथ्वी की दूरी 14 करोड़ 96 लाख किलोमीटर है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के पूर्व अध्यक्ष किरण कुमार ने बताया कि सूर्य से आने वाली रेडियो विकिरणों का आब्जर्वेशन उदयपुर की सौर वेधशाला से किया जाएगा।

अब सूर्य से विकिरणों के साथ आने वाले पार्टिकल्स ‘सोलर विंड’ पृथ्वी के वायुमण्डल पर अलग-अलग प्रभाव डालती होंगी, इसका अध्ययन कर फायदे और नुकसान पर शोध हो सकेंगे। नुकसानदेह सोलर विंड की जानकारी मिलते ही हम उसके समाधान भी कर सकेंगे।

(फोटो सोर्स: इसरो)

अंतरिक्ष में भेजे जाएंगे सात पेलोड

आदित्य एल-1 के साथ 7 पेलोड भी अंतरिक्ष में भेजे जाएंगे। यह पेलोड सूरज की फोटोस्फीयर, क्रोमोस्फीयर और सबसे बाहरी परत की स्टडी करेंगे। सात में से चार पेलोड लगातार सूर्य पर नजर रखेंगे जबकि तीन पेलोड परिस्थितियों के हिसाब से पार्टिकल और मैग्नेटिक फील्ड की स्टडी करेंगे।

(फोटो सोर्स: इसरो)

सैटेलाइट से क्या मिलेगी जानकारी?

सूरज की कोरोनल हीटिंग, कोरोनल मास इजेक्शन, प्री फ्लेयर सहित फ्लेयर की जानकारी इकट्ठा की जाएगी।सूरज में होने वाली गतिविधियों के अंतरिक्ष के मौसम पर पड़ने वाले असर के बारे में भी सैटेलाइट अहम जानकारी देंगे।