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अच्छे रहे 75, स्वर्णिम होंगे अगले 5 साल : जानें-कैसे आने वाले सालों में टैक्स की दरें होंगी कम और आसान होगी फाइलिंग

आय पर टैक्स तो आजादी पूर्व भी लगता रहा है। तब टैक्सपेयर्स पर टैक्स का बोझ बहुत ज्यादा था। जो लोग टैक्स के दायरे में आते थे उन्हें 97.75 फीसदी तक यानि ( लगभग 100 फीसदी) टैक्स का भुगतान करना पड़ता था और करीब 11 टैक्स स्लैब हुआ करते थे।

By Vineet SharanEdited By: Updated: Mon, 23 Aug 2021 08:37 AM (IST)
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देश में 35 करोड़ पैनकार्ड धारक हैं लेकिन 2019-20 में केवल 5.95 करोड़ लोगों ने ही आयकर रिटर्न भरा है।
नई दिल्ली, मनीष कुमार। हर करदाता जो टैक्स देता है, उसी से देश का खर्च चलता है। इसी पैसे से सड़कें, पुल, अस्पताल, बिजली के नए संयंत्र, सिंचाई के लिए नहर, उपग्रह, देश की रक्षा के लिए आधुनिकतम हथियार, युद्ध तोप या फिर लड़ाकू विमान बनते हैं। गरीबों की मदद के लिए ढेर सारी योजनाएं चलती हैं। टैक्स आजादी के वक्त और उससे पहले भी लगता था। तब 11 टैक्स स्लैब हुआ करते थे। 97.75 फीसदी तक टैक्स का भुगतान करना पड़ता था लेकिन अब स्लैब और दरें इतनी नहीं हैं कि नागरिकों पर ज्यादा बोझ पड़े। यानी पिछले 75 साल में टैक्स के सिस्टम में काफी बेहतर हुआ है। तो आइये टैक्स मामलों के जानकार डी के मिश्रा और इनकम टैक्स अपीलेट ट्रिब्यूनल के पूर्व जज गोपाल केडिया से जानते हैं कि टैक्स में सुधार कब-कब और कैसे हुआ। साथ ही जानेंगे कि अगले पांच साल में क्या बदलाव होने वाले हैं।

टैक्स मामलों के जानकार डी के मिश्रा बताते हैं कि भारत 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ और स्वतंत्रता के 75 वें वर्ष में देश प्रवेश कर चुका है तो इन वर्षों में भारत ने जो मुकाम हासिल किया है उसमें देश के टैक्सपेयर्स का सबसे बड़ा योगदान है। आय पर टैक्स तो आजादी पूर्व भी लगता रहा है। तब टैक्सपेयर्स पर टैक्स का बोझ बहुत ज्यादा था। जो लोग टैक्स के दायरे में आते थे उन्हें 97.75 फीसदी तक यानि ( लगभग 100 फीसदी) टैक्स का भुगतान करना पड़ता था और करीब 11 टैक्स स्लैब हुआ करते थे। लेकिन आज अधिकतम टैक्स 30 फीसदी है तो स्लैब भी संख्या भी बेहद कम है। पहले आयकर रिटर्न भरने के लिये कतार में खड़ा रहता पड़ता था, फॉर्म मैनुअली हाथों से भरना पड़ता था, पर आज घर में बैठे लोग आसानी से कंप्यूटर पर आयकर रिटर्न दाखिल कर सकते हैं।

इनकम टैक्स अपीलेट ट्रिब्यूनल के पूर्व जज गोपाल केडिया के मुताबिक देश में 35 करोड़ पैनकार्ड धारक हैं लेकिन 2019-20 वित्त वर्ष के लिये केवल 5.95 करोड़ लोगों ने ही आयकर रिटर्न भरा है। उसमें भी केवल 1.50 करोड़ लोग ही हैं जो टैक्स का भुगतान करते हैं क्योंकि 4.50 करोड़ लोगों की आय पांच लाख रुपये से कम है और उन्हें छूट हासिल है। टैक्सपेयर्स की संख्या बढ़ाने की सरकार की कोशिश होगी ऐसा हुआ तो टैक्स की जो अधिकतम दर जो अभी 30 फीसदी है वो घटकर 20 से 25 फीसदी तक आ सकती हैं।

अगले पांच साल में 4 बदलाव क्या होंगे

1. टैक्सपेयर्स की संख्या में बढ़ाने पर रहेगा जोर

आने वाले वर्षों में सरकार का बड़ा लक्ष्य होगा कैसे देश में टैक्सपेयर्स की संख्या को बढ़ाया जाए। जिससे टैक्स से सरकार का राजस्व तो बढ़े ही साथ ही टैक्स की चोरी को भी रोका जा सके। सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्स (सीबीडीटी) के मुताबिक 2018-19 में 5.78 करोड़ लोगों ने आयकर रिटर्न भरा था। इसमें से 4.32 करोड़ लोगों ने अपने इनकम को 5 लाख रुपये से कम दिखाया है। केवल 1.46 करोड़ ही ऐसे लोग हैं जिन्होंने टैक्स का भुगतान किया है।

एक करोड़ ऐसे लोग हैं जिन्होंने अपनी आय 5 से 10 लाख रुपये बताया है। वहीं 46 लाख ऐसे लोग हैं जिन्होने अपनी इनकम 10 लाख रुपये से ज्यादा दिखाया है। 3.6 लाख लोगों ने अपनी आय 50 लाख से ज्यादा बताया है। 5 करोड़ रुपये से ज्यादा इनकम वालों की संख्या केवल 8,600 है।

(फोटो स्रोत-इनकम टैक्स इंडिया फेसबुक पेज)

2. टैक्स की दरें होंगी और कम

देश में टैक्सपेयर्स की संख्या बढ़ेगी तो जाहिर है सरकार का टैक्स कलेक्शन से राजस्व बढ़ेगा। जिसका फायदा करोड़ो टैक्सपेयर्स को मिलेगा। सरकार टैक्स रेट घटाकर टैक्सपेयर्स को इसका तोहफा देगी। न्यूनतम टैक्स की दर जहां 5 फीसदी है। वहीं अधिकतम दर 30 फीसदी है।

3. टैक्स रिटर्न दाखिल करना होगा फ्रेंडली

हाल ही में इनकम टैक्स विभाग ने रिटर्न दाखिल करने के लिए नया वेबसाइट तैयार किया है। हालांकि इस वेबसाइट में काफी दिक्कतें भी आई है। जिसे दुरुस्त किया जा रहा। लेकिन माना जा रहा है कि आने वाले दिनों टैक्स रिटर्न दाखिल करना बेहद सरल हो जाएगा। वहीं मौजूदा असेसमेंट ईयर से टैक्सपेयर्स के लिए प्री-फिल्ड आयकर रिटर्न फॉर्म आ गया है जिसमें डिविडेंड, ब्याज से होने वाले इनकम और शेयरों से होने वाले कैपिटल गेन इनकम का जिक्र है। यानी इन फाइनेंशियल इंस्ट्रूमेंट में निवेश से होने वाले इनकम को अब कोई टैक्सपेयर्स छिपा नहीं सकता।

(फोटो स्रोत-इनकम टैक्स इंडिया फेसबुक पेज)

4. टैक्स टेरर से मिलेगी निजात

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अगस्त 2020 में ट्रांसपेरेंट टैक्सेशन प्रोग्राम को लॉन्च किया था। जिसके तहत फेसलेस असेसमेंट, फेसलेस अपील और टैक्सपेयर्स चार्टर जैसी तीन सुविधाएं टैक्सपेयर्स के लिए शुरू किया गया है। फेसलेस से आशय ये है कि टैक्सपेयर कौन है और आयकर अधिकारी कौन है ये एक दूसरे को पता नहीं चल सकेगा। इससे टैक्स विभाग में भारी भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने में मदद मिलेगी तो टैक्स विभाग के टेरर से भी टैक्सपेयर्स को निजात मिलेगी। पहले जिस शहर में टैक्सपेयर रहता है उसी शहर में तैनात आयकर अधिकारी जांच करता था, लेकिन अब किसी भी राज्य या शहर का अधिकारी कहीं भी जांच कर सकता है। ये सब कंप्यूटर द्वारा रैनडमली तय किया जाता है। असेसमेंट से निकला रिव्यू भी किस अधिकारी के पास जाएगा, ये किसी को पता नहीं चलता है। अब टैक्सपेयर्स को उनका रिफंड भी जल्द जारी किया जा रहा है।

गोपाल केडिया कहते हैं कि पिछले एक साल में फेसलेस असेसमेंट के कारण काफी राहत मिली है। इसके चलते टैक्सपेयर्स और टैक्स अधिकारियों का आमना सामना नहीं होता। जब दोनों आमने-सामने होते थे तो करप्शन के मामले सामने आते थे टैक्स अधिकारियों पर करप्शन का व्यापक आरोप था। लेकिन फेसलेस असेसमेंट के चलते काफी राहत मिली है। हालांकि इनकम टैक्स विभाग का इन्वेस्टिगेशन विंग अभी तक फेसलेस नहीं हो पाया है और उस पर टैक्स टेरर के आरोप रहे हैं। सरकार को इन्वेस्टिगेशन विंग को भी फेसलेस करना चाहिए। साथ ही फेसलेस सिस्टम को लेकर टैक्स अधिकारियों को शिक्षित किए जाने की भी जरूरत है क्योंकि उनके रवैया के कारण कई मामले कानूनी पचड़े में फंस रहे हैं।

टैक्स का इतिहास -5 दशकों के 6 पड़ाव

1. 1949-50 में हुआ पहला बदलाव

7 अप्रैल 1860 को सर जेम्स विल्सन ने आम बजट पेश करते हुए इनकम पर टैक्स लगाने का ऐलान किया था। आजादी के पहले देश में इनकम टैक्स कानून हुआ करता था। लेकिन आजाद भारत में इनकम टैक्स के दरों में पहला बदलाव 1949-50 में देश के सर्वप्रथम वित्त मंत्री जॉन मथाई ने किया था। तत्कालीन वित्त मंत्री, जॉन मथाई ने 10,000 रुपये तक की आय पर एक चौथाई आना, पहले स्लैब में एक आना से नौ पाई और दूसरे स्लैब में दो आने से "एक नौ पाई" तक की आय पर कर कम कर दिया। (एक आना मुद्रा इकाई को कहा जाता था जिसका इस्तेमाल भारत और पाकिस्तान किया जाता था। यह 1/16 रुपये के बराबर है। इसे 4 पैसे या 12 पाई में विभाजित किया गया था, इस प्रकार एक रुपए में 64 पैसे और 192 पाई थे)। आयकर अधिकारियों की नियुक्ति को आजादी पूर्व शुरू हो चुकी थी लेकिन 1953 में इसे इंडियन रेवेन्यू सर्विस का नाम दिया गया।

2. 1961 में आजाद भारत का पहला इनकम टैक्स कानून आया

पुराने टैक्स कानून में जटिलताओं के चलते 1956 में पुराने इनकम टैक्स कानून को लॉ कमीशन के पास भेजा गया फिर उसके सुझावों के बाद एक अप्रैल 1961 को आजाद भारत का अपना पहला इनकम टैक्स कानून चलन में आया जो आज तक चल रहा। हालांकि जरूरत और समय की मांग के हिसाब से कई बार इनकम टैक्स कानून में संसद से मंजूरी लेकर संशोधन किया गया। मौजूदा समय में पांच प्रकार के इनकम पर टैक्स का प्रावधान है जो इस प्रकार है।

(1) वेतन से होने वाला आय

(2) गृह संपत्ति से अर्जित आय

(3) व्यवसाय या पेशे से होने वाला आय

(4) कैपिटल गेन से होने वाला इनकम

(5) अन्य स्रोतों से प्राप्त इनकम

(फोटो स्रोत-इनकम टैक्स इंडिया फेसबुक पेज)

3. 1974-75 में हुई टैक्स दरों में सबसे बड़ी कटौती

1974-75 में तबके वित्त मंत्री वाई बी चव्हाण ने इनकम टैक्स के दरों में आजादी के बाद पहली सबसे बड़ी कटौती का ऐलान किया। इनकम टैक्स की उच्चतम दर को 97.75 फीसदी से घटाकर 75 फीसदी कर दिया। कई स्लैब पर लगने वाले पर्सनल इनकम टैक्स को कम किया गया। वाई बी चव्हाण ने तब ऐलान किया था कि सालाना 6,000 रुपये तक के आय वालों को कोई इनकम टैक्स नहीं चुकाना होगा। 70,000 रुपये से अधिक इनकम वाले स्लैब पर इनकम टैक्स की दर को 70 फीसदी किया गया। और सभी स्लैब पर लगने वाले टैक्स पर सरचार्ज की दर को घटाकर एक समान 10 प्रतिशत कर दिया गया। इनकम के सबसे उच्च स्लैब पर टैक्स और सरचार्ज मिलाकर 77 फीसदी बनता था। हालांकि तब वेल्थ टैक्स में इजाफा कर दिया गया था। 1985-86 में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सरकार में विश्वनाथ प्रताप सिंह वित्त मंत्री थे और उन्होंने इनकम के स्लैब की संख्या को 8 से घटाकर सीधे 4 करने का ऐलान कर दिया।

4. 1992-93: वित्त मंत्री मनमोहन सिंह का दौर

1991 में देश में आर्थिक उदारीकरण का दौर शुरू हुआ और 1992-93 में पूर्व प्रधानमंत्री और तत्कालीन वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने टैक्स दरों और स्लैब में बड़ा बदलाव करने का ऐलान किया। 30,000 रुपये तक के सलाना इनकम वालों पर कोई टैक्स नहीं वसूलने का ऐलान कर दिया गया। तो एक लाख रुपये से अधिक आय वालों पर 40 फीसदी टैक्स लगा दिया गया। दो वर्षों बाद 1994-95 में इनकम टैक्स छूट की सीमा को 30,000 से बढ़ाकर 35,000 रुपये सालाना कर दिया गया तो 1,20,000 रुपये कर ( एक लाख बीस हजार रुपये) से ज्यादा आय वालों को 40 फीसदी टैक्स स्लैब में शामिल किया गया। 1997-98 में तत्कालीन वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने ड्रीम बजट पेश किया और टैक्सपेयर्स को राहत देते हुए सबसे उच्चतम टैक्स स्लैब तो 40 फीसदी से घटाकर 30 फीसदी करने का ऐलान किया तो आय पर इनकम टैक्स छूट की सीमा को 35,000 रुपये से बढ़ाकर 40,000 रुपये कर दिया।

5. फिर आया सरल फार्म

प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार थी तो वित्त मंत्री रहे यशवंत सिन्हा ने आयकर रिटर्न भरने में टैक्सपेयर्स को राहत देने के लिये सरल फॉर्म लेकर आये। 2005-06 में फिर से तबके वित्त मंत्री चिदंबरम ने इनकम पर टैक्स छूट की सीमा को सीधे बढ़ाकर 1 लाख रुपये कर दिया। तो 2.5 लाख रुपये से ज्यादा सालाना कमाने वालों को 30 फीसदी टैक्स स्लैब की श्रेणी में ला दिया। 2012-13 में आय पर टैक्स छूट की सीमा को बढ़ाकर 2 लाख रुपये कर दिया गया। 2019 में मोदी सरकार ने ऐलान किया कि 5 लाख रुपये तक के सलाना आय वालों को इनकम टैक्स नहीं चुकाना होगा। 2.50 लाख रुपये तक के आय पर इनकम टैक्स छूट मिलती है। 2.50 लाख से 5 लाख रुपये के आय पर 5 फीसदी 12,500 रुपये टैक्स बनता है। लेकिन 87ए के तहत पूरे रकम पर रिबेट दे दिया गया। इसलिये जिनकी आय सलाना 5 लाख रुपये तक है उन्हें कोई टैक्स नहीं चुकाना पड़ता है।

डी के मिश्रा बताते हैं कि 90 के दशक में आर्थिक उदारीकरण के बाद से हर सरकार ने टैक्सपेयर्स को बड़ी राहत दी है तो इसका असर ये हुआ कि करदाताओं की संख्या भी बढ़ती चली गई। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, नरसिम्हा राव सरकार में जब वित्त मंत्री थे तब टैक्स के मोर्चे पर उन्होंने काफी सुधार किये जो एक बड़ा पड़ाव है। और जब अटल बिहारी वाजपेई प्रधानमंत्री थे उस कार्यकाल में टैक्स स्ट्रक्चर में काफी बदलाव हुआ। तबके वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने आयकर रिटर्न भरने की प्रक्रिया को सरल बनाने के लिए सरल फॉर्म लेकर आये। यूपीए सरकार बनी तो वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने भी टैक्स छूट के दायरे को बढ़ाया तो कई सुधार भी किये। जब मोदी सरकार सत्ता में आई तो अरुण जेटली वित्त मंत्री बने तो सरकार की प्राथमिकता थी कि कैसे ज्यादा से ज्यादा लोगों को टैक्स के दायरे में लाया जाये। ”

6. नये पर्सनल इनकम टैक्स सिस्टम का ऐलान

2020 में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट पेश करते हुए टैक्सपेयर्स के लिये नये पर्सनल इनकम टैक्स सिस्टम का ऐलान किया। जिसमें निवेश पर टैक्स छूट या डिडक्शन का कोई प्रावधान नहीं है। हालांकि टैक्सपेयर्स के पास ये विकल्प है कि वो नये सिस्टम को अपनाना चाहता है या पुराने सिस्टम के तहत ही कई तरह के निवेश पर छूट के साथ रिटर्न भरना चाहता हैं। वहीं 2021-22 के लिये पेश बजट में ये ऐलान किया गया कि 75 साल से ज्यादा उम्र के सीनियर सिटीजन जिनकी आय का स्रोत केवल पेंशन और ब्याज है उन्हें इनकम टैक्स रिटर्न दाखिल करने की जरुरत नहीं है।

(इनपुट-अनुराग मिश्र, विनीत शरण और विवेक तिवारी)