तीन वर्ष पहले भी चीन को मिला था सीमा पर करारा जवाब, 73 दिनों के ड्रेगन ने पीछे किए थे सैनिक
डोकलाम भारत चीन और भूटान के बीच एक ट्राई जंक्शन है। रणनीतिक दृष्टि से ये इलाका काफी अहम है। 16 जून 2017 को चीन ने इस इलाके में अपने नापाक इरादों के साथ सड़क बनाने की कोशिश की थी।
By Kamal VermaEdited By: Updated: Wed, 08 Jul 2020 11:40 AM (IST)
नई दिल्ली (ऑनलाइन डेस्क)। लद्दाख स्थित गलवन वैली में चीन की तरफ से शुरू किया गया सीमा विवाद फिलहाल ठंडा पड़ गया है। चीन के विदेश मंत्री और भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और सैन्य अधिकारियों के बीच तीन दौर की हुई बातचीत के बाद चीन की सेना फिलहाल दो किमी पीछे हट गई है। उन्होंने भारतीय सीमा में लगाए गए तंबू और बनाए गए स्ट्रक्चर को भी हटा लिया है। बहरहाल, ये विवाद सीमा पर हुई झड़प के 23 दिन बाद शांत हो गया है। हालांकि इसके बाद भी चीन की नीति और नीयत पर सवालिया निशान लगा हुआ है। ऐसा इसलिए है क्योंकि तीन वर्ष पहले भी उसने इसी तरह का विवाद डोकलाम या डोकाला में खड़ा किया था। उस वक्त दोनों देशों की सेनाएं 73 दिनों तक आमने-सामने डटी रही थीं। इसके बाद कहीं जाकर ये विवाद सुलझाया जा सका था। इसको इत्तफाक नहीं कहा जा सकता है कि चीन ने डोकलाम की शुरुआत भी 16 जून को ही की थी। ये विवाद 28 अगस्त को खत्म हुआ था। वहीं गलवन में भी चीन ने विवाद की शुरुआत 15-16 जून की रात को की थी।
आगे बढ़ने से पहले आपको बता दें कि भारत व भूटान के बीच सुरक्षा मामलों को लेकर संधि की गई थी, जिसके तहत विदेशी हमले की सूरत में दोनों एक दूसरे का सहयोग करने की बात कही गई है। भूटान और भारत के बीच 1949 से ही परस्पर विश्वास और स्थायी दोस्ती का करीबी संबंध है। आपको यहां पर ये भी बता दें कि वर्ष 2007 में भारत और भूटान द्वारा हस्ताक्षर किए गये मैत्री संधि के अनुच्छेद 2 में कहा गया है कि भूटान और भारत के बीच घनिष्ठ दोस्ती और सहयोग के संबंधों को ध्यान में रखते हुए, भूटान की साम्राज्य की सरकार और भारत गणराज्य की सरकार निकट सहयोग करेगी अपने राष्ट्रीय हितों से संबंधित मुद्दों पर एक दूसरे के साथ रहेंगे। आपको बता दें कि भारत-चीन सीमा जम्मू-कश्मीर में 1,597, हिमाचल प्रदेश में 200, उत्तराखंड में 345, सिक्किम में 220 और अरुणाचल प्रदेश में 1,126 किलोमीटर तक फैली है।
क्या था डोकलाम विवाद
डोकलाम विवाद की शुरुआत 16 जून, 2017 को उस वक्त हुई थी जब भारतीय सैनिकों ने चीन की पीएलए के सैनिकों को इस इलाके में सड़क निर्माण करने से रोका था।वे इस इलाके में बुलडोजर के जरिए सड़क निर्माण की कोशिश कर रहे थे। चीन जिस क्षेत्र में सड़क निर्माण कर रहा था, वह भूटान का इलाका है। गौरतलब है कि डोकलाम विवाद का मुख्य कारण उसकी एक मजबूत रणनीतिक स्थिति भी है। दरअसल, यह एक ट्राई-जंक्शन है, जहां भारत, चीन और भूटान कि सीमा मिलती है। इस क्षेत्र को लेकर चीन और भूटान के बीच काफी समय से विवाद रहा है। वहीं भारत के लिए ये पूरा इलाका इसलिए भी खास है क्योंकि यदि यहां पर भारतीय सीमा के करीब चीन आ जाता है तो वो भविष्य में भारती के पूर्वी इलाके के लिए बड़ी समस्या बन सकता था।
डोकलाम की रणनीतिक स्थिति गौरतलब है कि ये इलाका चीन के इलाके से काफी ऊंचाई पर स्थित है। यहां से समूचे इलाके पर नजर रखी जा सकती है। चीन यदि यहां पर अपनी सड़क बनाने की योजना में कामयाब हो जाता तो वो भारत के लिए ज्यादा बड़ा खतरा बन सकता था। लेकिन भारतीय रणनीति ने उसकी इस मंशा को विफल करते हुए उसके बुलडोजर समेत दूसरे साजो-सामान भी जब्त कर लिए थे। इसके बाद चीन लगातार यही दावा करता रहा कि ये इलाका उसकी सीमा में आता है। इसके साथ ही चीन ने इस इलाके में अपने जवानों की तैनाती को पहले की अपेक्षा कई गुणा बढ़ा दिया था। जवाब में भारत ने भी सीमा पर न सिर्फ अपने जवानों की तैनाती बढ़ाई बल्कि वहां पर तोपखाने की भी तैनाती कर दी थी। भारतीय वायुसेना को भी किसी भी आपात स्थिति में तुरंत कार्रवाई के दिशा-निर्देश दिए गए थे। पूर्व से लेकर उत्तर तक चीन से लगती सीमा पर भारतीय सेना पूरी तरह से चौकस और हाई अलर्ट पर थी। भारत की समस्या सिर्फ डोकलाम को लेकर ही नहीं थी बल्कि इसलिए भी थी क्योंकि चीन की यहां पर मौजूदगी का अर्थ सिक्किम के लिए खतरे की घंटी थी। सिक्किम को लेकर चीन बार-बार ये दावा करता आया है कि ये उसका भू-भाग है।
भारत की दबाव की रणनीति भारत की मजबूत रणनीतिक स्थिति और चला गया कूटनीतिक दांव यहां पर काम आया। डोकलाम विवाद के बाद पूरी दुनिया ने जहां पर चीन का विरोध कर उसको विस्तारवादी नीतियों का परिचायक बताया वहीं भारत का खुला समर्थन भी किया। इस दौरान वार्ता को सुलझाने के लिए पर्दे के पीछे भी लगातार बातचीत जारी रही। उस वक्त इस बातचीत के दो प्रमुख चेहरों में से एक मौजूदा विदेश मंत्री जयशंकर जो उस वक्त विदेश सचिव थे और दूसरे एनएसए अजीत डोभाल रहे थे। इसके अलावा सीमा पर हर तरह की चौकसी के लिए जिम्मेदार तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत भी इसमें एक अहम भूमिका में थे।
दोनों सेनाओं के पीछे हटने का फैसला इस दौरान दबाव बढ़ाने के लिए भारत ने ब्रिक्स सम्मेलन का बहिष्कार किया, जिससे अंतरराष्ट्रीय मंच पर चीन की काफी किरकिरी भी हुई। लिहाजा चीन के लिए इस विवाद को सुलझाना बड़ी चुनौती बन गई थी। वहीं इसको लेकर जापान और अमेरिका ने भी भारत का साथ दिया था। 9 अगस्त, 2017 को चीन ने एक बार फिर दावा किया कि उसके कुछ सैनिक और कुछ चीजें ही विवादित इलाके में हैं। चीन के बयानों को दरकिनार करते हुए भारत ने दावा किया था कि वहां पर चीन के करीब 300 से 400 जवान मौजूद हैं। ब्रिक्स सम्मेलन से पहले इस विवाद को सुलझाने की कवायद तेज हो गई। कई दौर की वार्ता के बाद 28 अगस्त 2017 को चीन के साथ भारत ने भी अपनी-अपनी सेनाओं को पीछे हटाने का फैसला किया।
क्या था गलवन विवाद आपको बता दें कि 15-16 जून की रात को भारतीय सेना के जवानों पर चीन के जवानों ने लोहे की रॉड में लगे कटीले तारों से हमला कर दिया था। ये हमला उस वक्त किया गया था जब भारतीय सेना के कुछ जवान अपने कमांडिंग अधिकारी के साथ वहां मौजूद चीनी जवानों को अपनी सीमा में वापस जाने और भारतीय इलाका खाली करने को कह रहे थे। इस हिंसक झड़प में भारतीय सेना के कर्नल समेत 20 जवान शहीद हो गए थे। तब से लेकर 7 जून तक सीमा पर काफी तनाव था। इस तनाव और चीन से खतरे के मद्देनजर भारत ने सीमा पर तोपखाने के अलावा लड़ाकू विमानों और मिसाइलों की भी तैनाती कर दी थी।ये भी पढ़ें:-