Brahma Kumari राजयोगिनी दादी जानकी के नाम है दुनिया की सबसे स्थिर मन की महिला का वर्ल्ड रिकॉर्ड
प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय की मुख्य प्रशासिका दादी जानकी के देवलोकगमन से भारत सहित विश्वभर में शोक की लहर छा गई।
By Kamal VermaEdited By: Updated: Fri, 27 Mar 2020 02:00 PM (IST)
नई दिल्ली (जेएनएन)। लाखों लोगों के जीवन में उजियारा कर अविश्वसनीय व्यक्त्वि की धनी 104 वर्षीय राजयोगिनी दादी डॉ. जानकी आसमान का सबसे चमकता सितारा बन गईं। वो योग शक्ति की अद्भुत मिसाल थीं। शुक्रवार 27 मार्च को सुबह 2 बजे माउंट आबू के ग्लोबल हॉस्पिटल में दादी ने अंतिम सांस ली। निश्चित तौर पर उनके निधन की खबर ने देश और दुनिया में मौजूद ब्रहमकुमारी के परिवार के सदस्यों के मन में शोक की लहर पैदा कर दी। दादी ने अपने पूरे जीवन में न मालूम कितने लोगों को गले लगाया और उन्हें जीवन जीने और समाज का कल्याण करने की दीक्षा दी। देश और विदेश में उनके प्रशंसक लाखों की संख्या में हैं। दादी जानकी ने 91 वर्ष की उम्र में ब्रह्माकुमारीके मुखिया का पदभार संभाला था, लेकिन वह इससे काफी पहले से लोगों की सेवा में जुटी थीं। आपको बता दें कि वर्तमान में दुनिया के 140 देशों में प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय स्थित हैं। उन्होंने पूरी दुनिया में योग, ध्यान का संदेश दिया।
दादी केवल चौथी क्लास तक पढ़ी थीं आपको जानकर हैरत हो सकती है, लेकिन ये सच है कि दादी केवल चौथी क्लास तक पढ़ी थीं। इसके बाद भी वह 46 हजार ब्रह्माकुमारी बहनों की अलौकिक मां होने के साथ संस्थान से जुड़ी 12 लाख से अधिक नियमित विद्यार्थी (साधक) की प्रेरणापुंज थीं। उम्र के इस पड़ाव पर भी वे 12 घंटे जन की सेवा में सक्रिय रहती थीं। अलसुबह 4 बजे ब्रह्ममुहूर्त में जागरण के साथ ध्यान-साधना उनकी दिनचर्या का हिस्सा था। अपने पूरे जीवन में वह युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत रहीं।
विश्व की सबसे स्थिर मन की महिला का है वर्ल्ड रिकॉर्ड ब्रह्माकुमारी के मीडिया निदेशक बीके करुणा के मुताबिक दादी के नाम नाम विश्व की सबसे स्थिर मन की महिला का वर्ल्ड रिकॉर्ड भी है। अमेरिका के टेक्सास मेडिकल एवं साइंस इंस्टीट्यूट में वैज्ञानिकों द्वारा परीक्षण के बाद दादीजी को मोस्ट स्टेबल माइंड ऑफ द वर्ल्ड वुमन के खिताब से नवाजा गया था। उन्होंने योग से अपने मन को इतना संयमित, पवित्र, शुद्ध और सकारात्मक बना लिया था कि वह जिस समय चाहें, जिस विचार या संकल्प पर और जितनी देर चाहें, स्थिर रह सकती थीं।
पाकिस्तान के हैदराबाद में हुआ था जन्म गौरतलब है कि दादी जानकी का जन्म वर्ष 1916 में अविभाज्य भारत के हैदराबाद सिंध प्रांत में हुआ था। भक्ति भाव के संस्कार बचपन से ही मां-बाप से विरासत में मिले। वो बेहद कम उम्र में ही लोगों को दुखों से दूर करने और समाज में फैली कुरितियों को दूर करने में जुट गई थीं। उन्होंने अपना जीवन समाज कल्याण, समाजसेवा और विश्व शांति के लिए अर्पण करने का साहसिक फैसला कर लिया था। माता-पिता की सहमति के बाद 21 वर्ष की आयु में दादी ओम् मंडली से जुड़ गईं थीं। मौजूदा ब्रह्माकुमारी का नाम पहले यही हुआ करता था। इसके संस्थापक ब्रह्माबाबा के सान्निध्य में उन्होंने 14 वर्ष तक गुप्त तपस्या की।
60 वर्ष की आयु में गई थीं विदेश जब लोग खुद को कार्यों सेवानिवृत्त समझ लेते हैं उस समय 60 साल की उम्र में दादी पहली बार विदेश यात्रा पर गई थी। वर्ष 1970 में हुई उनकी इस लंदन यात्रा का मकसद विदेशी जमीं पर मानवीय मूल्यों और आध्यात्मिकता का बीज रोपना था। वर्ष 1991 में उन्होंने यहां ग्लोबल को-ऑपरेशन हाऊस की स्थापना की। धीरे-धीरे इसका कारवां बढ़ता गया और यूरोप के देशों में उनकी बदौलत आध्यात्म का शंखनाद हुआ। दादी के साथ हजारों की संख्या में बीके भाई-बहनें जुड़ते गए। दादीजी की कर्मठता, सेवा के प्रति लगन और अथक परिश्रम का ही कमाल है कि अकेले विश्व के सौ देशों में भारतीय प्राचीन संस्कृति आध्यात्मिकता एवं राजयोग का संदेश पहुंचाया। बाद में यह कारवां बढ़ता गया और आज 140 देशों में लोग राजयोग मेडिटेशन का अभ्यास कर रहे हैं।
37 साल विदेश में रहीं दादी जानकी ने वर्ष 1970 से वर्ष 2007 तक 37 वर्ष विदेश में अपनी सेवाएं दीं। इसके बाद वर्ष 2007 में संस्था की तत्कालीन मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी दादी प्रकाशमणि के देह त्याग के बाद 27 अगस्त को ब्रह्माकुमारी की मुख्य प्रशासिका बनीं थीं। स्वच्छ भारत मिशन की थीं ब्रांड एंबेसेडरब्रह्माकुमारी की पूरे विश्व में साफ-सफाई और स्वच्छता को लेकर विशेष पहचान रही है। देश में स्वच्छता को बढ़ावा देने के लिए भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दादी जानकी को स्वच्छ भारत मिशन का ब्रांड एंबेसेडर भी नियुक्त किया था। दादी के नेतृत्व में पूरे भारतवर्ष में विशेष स्वच्छता अभियान भी चलाए गए।
दादी को पसंद था ये खानादादी खुद को स्वस्थ रखने के लिए अपने खानपान पर काफी ध्यान देती थीं। उन्हें सुबह नाश्ते में दलिया, उपमा और फल पसंद थे। दोपहर में खिचड़ी, सब्जी और रात में वे सब्जियों का गाढ़ा सूप लेना पसंद करती थीं। आपको जानकर हैरत हो सकती है, लेकिन ये सच है कि उन्होंने वर्षों पहले ही तेल-मसाले वाले भोजन का परित्याग कर दिया था। वह अपने भोजन के समय पर दूसरा कोई काम नहीं करती थीं। दादी वक्त की बड़ी पाबंद थीं। वो हमेशा कहती थीं कि हम जैसा अन्न खाते हैं वैसा हमारा मन होता है। इसलिए सदा भोजन परमात्मा की याद में ही करना चाहिए। हमारे मन का भोजन से सीधा संबंध है।
कई राष्ट्रीय- अंतरराष्ट्रीय अवॉर्ड से नवाजा गयादादी को विदेश में सेवा के दौरान कई देशों में अंतरराष्ट्रीय अवॉर्ड से भी नवाजा गया। इसके अलावा भारत में भी उन्हें सम्मान से नवाजा गया। मूल्यनिष्ठ शिक्षा एवं आध्यात्मिकता में विश्वरभर में सराहनीय योगदान देने पर दादीजी को वर्ष 2012 में गीतम विश्वविद्यालय, विशाखापट्नम ने डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया था।
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