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जानें- क्‍या होती है Health Emergency, बचाव के लिए क्‍या करने होंगे आपको उपाय

दिल्‍ली एनसीआर की हवा बेहद खतरनाक हो चुकी है। यह हालात बच्‍चों के लिए बेहद खतरनाक हैं। जानें कैसे बच सकते हैं आप।

By Kamal VermaEdited By: Updated: Sat, 02 Nov 2019 08:28 AM (IST)
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जानें- क्‍या होती है Health Emergency, बचाव के लिए क्‍या करने होंगे आपको उपाय

नई दिल्‍ली जागरण स्‍पेशल। दिल्‍ली एनसीआर समेत आधा भारत जबरदस्‍त प्रदूषण की चपेट में है। आसमान पर छाए स्‍मॉग की वजह से दिल्‍ली-एनसीआर में हैल्‍थ इमरजेंसी तक घोषित कर दी गई है। इस हैल्‍थ इमरजेंसी के मायने ये हैं कि यहां की हवा जहरीली हो गई है, जो सेहत के लिहाज से बेहद खतरनाक है। आगे बढ़ने से पहले आपको बता देते हैं कि हवा का स्‍तर पर उसमें मौजूद पीएम 2.5 (Particulate matter 2.5) से लगाया जाता है। यह हवा में तैरने वाले वो महीन कण होते हैं, जिन्‍हें हम देख नहीं पाते हैं, लेकिन, ये कण सांस के साथ हमारे शरीर में चले जाते हैं। इनकी मात्रा हवा में जितनी कम होती है उतनी ही हवा साफ होती है, जबकि इनके बढ़ जाने से हवा प्रदुषित होती चली जाती है। इसका हवा में सुरक्षित स्‍तर महज 60 माइक्रोग्राम है। इसके अलावा हवा में पीएम 10 और कार्बन मोनोऑक्साइड की कम या अधिक मात्रा हवा की गुणवत्‍ता को खराब या सही करती है।

क्‍या है हवा की गुणवत्‍ता

हवा की गुणवत्‍ता को छह भागों में बांटा जाता है। इस इंडेक्‍स को एयर क्‍वालिटी इंडेक्‍स (Air Quality Index) कहा जाता है। इस इंडेक्‍स के मुताबिक 0-50 की स्थिति सबसे अच्‍छी होती है, जिसमें घर से बाहर घूमना, खेलना या दूसरी एक्‍टीविटी करना अच्‍छा होता है। वहीं दूसरे नंबर पर 51-100 की श्रेणी आती है जिसको संतोषजनक माना जाता है। इस श्रेणी में सांस की तकलीफ होनी शुरू हो जाती है। तीसरे नंबर पर 101-200 के बीच आने वाली एयर क्‍वालिटी को रखा गया है। इसको मध्‍यम माना गया है, जिसमें फेंफड़े, अस्‍थमा और दिल के मरीजों को सांस लेने की तकलीफ बढ़ जाती है। चौथे नंबर पर 201-300 आती है, जो खराब की श्रेणी में है। इसमें सांस लेने की परेशानी काफी बढ़ जाती है। पांचवें नंबर पर 301-400 की श्रेणी है जो बेहद खराब एयर क्‍वालिटी को बताती है।

हवा का खतरनाक स्‍तर और हैल्‍थ इमरजेंसी 

वहीं अंतिम श्रेणी में 401-500 आती है जो हवा का खतरनाक स्‍तर स्‍तर है। इस तरह की एयर क्‍वालिटी के दौरान जरूरत होने पर ही घर से बाहर निकलने की सलाह दी जाती है। ऐसे हालात में आंखों और सीने में जलन की शिकायत होने लगती है।सांस लेने में भी काफी परेशानी होती है। इस तरह की एयर क्‍वालिटी होने पर सुबह की सैर करने वालों को ऐसा न करने को कहा जाता है। इसके अलावा कई दूसरे एहतियात बरतने की सलाह दी जाती है। वर्तमान में दिल्‍ली-एनसीआर में जो हैल्‍थ इमरजेंसी (Health Emergency declare in Delhi-NCR) घोषित की गई है उसकी वजह भी यही है। दरअसल, दिल्‍ली-एनसीआर में हवा का प्रदुषण का स्‍तर खतरनाक से भी पार हो चुका है। इसका अर्थ ये भी है कि यहां की हवा में पीएम 2.5 और पीएम 10 की मात्रा काफी हद तक बढ़ गई है। इसका सीधा असर बच्‍चों पर पड़ता है। यही वजह है कि दिल्‍ली के सरकारी स्‍कूलों को 5 नवंबर तक बंद करने के आदेश दे दिए गए हैं।  

ये हैं वो बारीक कण

अब आपको उन बारीक कणों के बारे में भी बता देते हैं जो हवा को प्रदुषित करते हैं और और कई बार यह व्‍यक्ति की मौत के लिए भी जिम्‍मेदार होते हैं। वैज्ञानिक भाषा में इन्‍हें पॉर्टिकल पाल्यूशन (Partical Pollution) कहा जाता है। यह सॉलिड और लिक्विड दोनों ही तरह के होते हैं। इसमें धूल, धुएं में शामिल कण भी सम्मिलित होते हैं। इनमें से कुछ बेहद बारीक कण अन्‍य कणों से मिलकर इंसान के के लिए बहुत घातक साबित होते हैं। आकार के लिहाज से इनके दो प्रकार होते हैं- पीएम 2.5 और पीएम 10 होते हैं। पीएम 2.5 का व्‍यास 2.5 माइक्रोमीटर या इससे कम होता है। यह गाडि़यों, बिजली संयंत्रों, लकड़ियों के जलने या कृषि उत्‍पादों के जलने से पैदा होते हैं। वहीं पीएम 10 का व्यास 2.5-10 माइक्रोमीटर तक हो सकता है। इसकी सबसे बड़ी वजह धूल होती है। इन दोनों कणों की बढ़ी हुई मात्रा से दिल और फेंफड़े की बीमारी तक हो सकती है। 

कार्बन मोनोक्साइड

इन दोनों के अलावा हवा में मौजूद कार्बन मोनोक्साइड भी प्रदुषण को बढ़ाने में काफी सहायक साबित होती है। यह एक गंधरहित, रंगरहित गैस है। ईंधन में मौजूद कार्बन के पूरी तरह से न जल पाने की वजह से इसका निर्माण होता है। इसके अलावा गाडि़यों से निकलने वाला धुआं भी इसमें अहम भूमिका निभाता है। इसकी वजह से शरीर को मिल रही ऑक्‍सीजन की मात्रा कम हो जाती है, जो सीने में दर्द का कारण बनती है। इसी तरह सल्फर डाईआक्साइड भी सल्फर युक्त कोयले या ईंधन के जलने पर पैदा होती है। इसका प्रमुख स्नोत ऊर्जा संयंत्र, रिफाइनरीज, औद्योगिक भट्टियां हैं। अस्‍थमा रोगी इसकी चपेट में बेहद जल्‍दी आ जाते हैं। 

अब जरा इस तरह के प्रदुषण से बचाव के उपाय का भी जिक्र यहां पर किए देते हैं। 

  • घर से बाहर निकलते समय अपने मुंह को कपड़े या तय मानकों के अनुसार बनाए गए मास्‍क से ढक कर बाहर निकलें। 
  • हवा के साफ होने तक मॉर्निंग वॉक पर न जाएं। 
  • घर के आस-पास पानी का छिड़काव कर धूल के कणों को हवा में फैलने से रोकें। 
  • पेड़ों पर भी पानी का छिड़काव करें, जिससे उन पर जमी धूल हट जाए और वह अधिक मात्रा में ऑक्‍सीजन पैदा कर सकें। 
  • कोशिश करें की घर से ऑफिस या ऑफिस से घर जाते समय या तो पब्लिक ट्रांसपोर्ट या फिर कारपूल का इस्‍तेमाल करें। इसके अलावा घर या ऑफिस पहुंचने पर अपनी आंखों को ठंडे पानी से धोना न भूलें। 
  • जितना अधिक पानी का सेवन आप इस दौरान करेंगे उतना ही अच्‍छा होगा। 

इन पौधों को लगाकर करें घर की हवा साफ

कुछ अन्‍य उपायों से भी इस प्रदुषण से बचा जा सकता है। इसमें ऐसे पौधे शामिल हैं, जो हवा को साफ करने में मदद करते हैं। इतना ही नहीं ये वो पौधे हैं जिन्‍हें धूप और पानी की ज्‍यादा जरूरत नहीं होती है। इस लिहाज से इन्‍हें दूसरे पौधों की अपेक्षा अधिक दिनों तक कमरे या घर में रखा जा सकता है।  इस तरह के पौधों में स्नेक प्लांट जिसे मदर-इन-लॉज-टंग भी कहा जाता है शामिल है। इसके अलावा ऐलोविरा, पाम ट्री और रबड़ प्‍लांट भी इसी श्रेणी  में आते हैं। यह हवा में मौजूद फॉरमलडिहाइड और बेंजीन जैसी गैसों को साफ करने में सहायक हैं। इनकी सबसे बड़ी खासियत है कि इन्‍हें धूप और पानी की ज्‍यादा जरूरत नहीं होती है। लिहाजा यह कई दिनों तक घर के अंदर रखे जा सकते हैं। यह पौधे रात में कार्बन डाइऑक्साइड लेकर ऑक्सीजन छोड़ते हैं। इसके अलावा तुलसी का पौधा एक नेचुरल एयर प्यूरिफायर है। यह पौधा पूरे दिन में करीब बीस घंटे ऑक्सीजन छोड़ता है। यह हवा में मौजूद कार्बन मोनो ऑक्साइड, कार्बन डाई ऑक्साइड व सल्फर डाईऑक्साइड को साफ करता है।

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