Lord Shiva Statue:जानें- क्या है नाथद्वार की रोचक कहानी जहां विश्वास स्वरूपम के रूप में मौजूद हैं भगवान शिव
नाथद्वार को हिंदुओं के प्रमुख तीर्थस्थलों में शामिल किया जाता है। ये जगह भगवान भोलेनाथ और भगवान कृष्ण से जुड़ी है। भगवान कृष्ण जो कि भगवान नारायण का अवतार हैं भगवान भोलेनाथ के आराध्य भी हैं। वहीं नारायण के आराध्य भगवान शिव हैं।
नई दिल्ली (आनलाइन डेस्क)। राजस्थान के नाथद्वार में बनी भगवान शिव की विशाल प्रतिमा आज देश को समर्पित हो जाएगी। इसके साथ ही ये विशाल प्रतिमा न सिर्फ राजस्थान बल्कि देश की भी एक पहचान बन जाएगी। बदलते समय में जिस तरह से भारत अपनी पुरानी संस्कृति को संजोने में लगा है उससे ये कहना गलत नहीं होगा कि आने वाले दिनों में देश में धर्म की जड़ें और मजबूत हो जाएंगी।
नाथद्वार के बारे में कितना जानते हैं आप
बहरहाल, विश्वास स्वरूपम प्रतिमा, दुनिया की सबसे ऊंची भगवान शिव की प्रतिमा है। नाथद्वार में स्थित ये प्रतिमा अद्वितीय है। लेकिन, क्या आप जानते हैं कि इस प्रतिमा को नाथद्वार में बनाने के पीछे क्या पौराणिक कहानी है। क्या आप जानते हैं कि नाथद्वार आखिर क्या है। यदि नहीं तो आज हम आपको इसके बारे में बताते हैं।
अपने आराध्य से मिलने आए थे भगवान भोलेनाथ
कहा जाता है कि कि भगवान शिव एक बार श्रीनाथजी से मिलने के लिए नाथद्वार आए थे। अरावली पर्वत माला में स्थित इस जगह पर उन्होंने भगवान श्रीनाथजी का इंतजार किया था। इस जगह को गणेश टेकरी कहा जाता है। भगवान भोलेनाथ जब यहां पर आए थे तो उन्होंने अपना कमंडल और डमरू पीछे छोड़ दिया था। इसलिए नाथद्वार में जो भगवान शिव की प्रतिमा बनाई गई है उसमें भगवान भोलेनाथ के हाथ में त्रिशूल है। उनके हाथ में डमरू और कमंडल नहीं दिखाया गया है। भगवान शिव की इस विशाल प्रतिमा को स्टेच्यू आफ बिलीव का नाम दिया गया है।
भगवान श्रीकृष्ण का बालरूप
नाथद्वार केवल भगवान भोलेनाथ को लेकर ही पवित्र नगरी नहीं कहलाती है बल्कि भगवान श्रीनाथ जी जो भगवान कृष्ण का बालरूप है, के लिए भी जानी जाती है। नाथद्वार को भगवान श्रीनाथजी का द्वार (Gateway of Shreenathji) भी कहा जाता है। यहां पर श्रीनाथजी का करीब 350 वर्ष पुराना मंदिर आज भी मौजूद है। औरंगजेब के हमलों से भगवान कृष्ण को बचाने के लिए उनकी मूर्ति को मथुरा से यहां भेजा गया था। इस मंदिर के पीछे भी एक रोचक कथा है।
बैलगाड़ी का पहिया जहां धसा वहां है मंदिर
कहा जाता है कि जिस बैलगाड़ी पर भगवान कृष्ण की मूर्ति को लाया जा रहा था उसका पहिया एक जगह पर जमीन में धंस गया। काफी कोशिशों के बाद भी वो पहिया नहीं निकाला जा सका। इस पर एक ब्राह्मण ने कहा कि भगवान की यही इच्छा है कि उनको यहां पर ही विराजमान किया जाए। इसके बाद यहीं पर उनका एक मंदिर बनाया गया और उन्हें स्थापित कर दिया गया था। इस मंदिर की रक्षा की जिम्मेदा मेवाड़ के महाराजा राज सिंह की थी। इस मंदिर को श्रीनाथ जी की हवेली भी कहा जाता है।