मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड में नाबालिग से शादी को लेकर क्या हैं नियम? सुप्रीम कोर्ट ने बाल विवाह पर की अहम टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार को बाल विवाह से जुड़े नियमों को लेकर सुनवाई हुई। इस दौरान कोर्ट ने कई अहम टिप्पणियां कीं। गौरतलब है कि कई राज्यों में अभी भी बाल विवाह के मामले सामने आते रहते हैं। साथ ही मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड में भी इसे लेकर अलग नियम है। जानिए क्या कहता है पर्सनल लॉ बोर्ड का नियम और उसके तहत क्या है शादी की उम्र।
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को बाल विवाह निषेध अधिनियम को लेकर को लेकर अहम टिप्पणी की, जिसमें कोर्ट ने कहा कि किसी भी पर्सनल लॉ बोर्ड के नियमों के तहत इसे रोका नहीं जा सकता है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि हर किसी के पास अपनी पसंद का जीवनसाथी चुनने का अधिकार है और बाल विवाह इसका उल्लंघन करता है।
सुप्रीम कोर्ट ने बाल विवाह रोकथाम कानून को और प्रभावी बनाने के लिए कई दिशा-निर्देश भी जारी किए। कोर्ट की यह टिप्पणी इसलिए भी अहम है, क्योंकि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का नियम नाबालिग से शादी की अनुमति देता है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि बाल विवाह को रोकने वाला कानून पर्सनल लॉ बोर्ड के नियमों से ऊपर है।
क्या है बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006?
भारतीय कानून के अनुसार, अगर विवाह के दौरान महिला की आयु 18 वर्ष से कम है या पुरुष की आयु 21 वर्ष से कम है तो वह बाल विवाह माना जाएगा। बाल विवाह को खत्म करने के लिए भारत सरकार ने बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 को लागू किया, जो बाल विवाह निरोधक अधिनियम, 1929 के पिछले कानून को निरस्त करता है।
इस कानून में बाल विवाह को प्रतिबंधित करने, पीड़ितों को सुरक्षा प्रदान करने और ऐसे विवाहों को बढ़ावा देने या संपन्न कराने वालों के लिए कड़ी सजा देने का प्रावधान है। अधिकांश बाल विवाहों में कम उम्र की महिलाएं शामिल होती हैं, जिनमें से कई खराब सामाजिक-आर्थिक स्थिति और जागरूकता की कमी से जूझ रही होती हैं।
क्या कहता है मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का नियम?
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के नियमों में नाबालिग से विवाह की भी अनुमति है। मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लीकेशन एक्ट, 1937 के अनुसार प्यूबर्टी यानी युवावस्था की उम्र ( जिसे 15 साल माना जाता है) और वयस्क होने की उम्र समान मानी गई है। यानी पर्सनल लॉ के अनुसार मुस्लिम लड़की 15 वर्ष की आयु के बाद शादी के लिए योग्य है। पर्सनल लॉ में यह भी प्रावधान है कि मुस्लिम पक्षों के सभी विवाह शरीयत के तहत आएंगे।
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