चीन और पाकिस्तान से युद्ध, कारगिल वार... इजरायल ने कई बार दिया भारत के साथ दोस्ती का सबूत, इतिहास पढ़ लीजिए
India Israel Ties भारत पाक जंग में मदद के बदले पूर्ण राजनयिक संबध की मांग करने वाला इजरायल आज भारत का रणनीतिक सहयोगी है। इजरायल रूस के बाद हथियारों की आपूर्ति के मामले में सबसे भरोसेमंद मित्र है लेकिन ये सफर इतना आसान नहीं रहा है। आइये देखते हैं कि भारत और इजरायल के रिश्तों में 10 अहम मोड़ कौन से रहे।
By Jagran NewsEdited By: Devshanker ChovdharyUpdated: Wed, 11 Oct 2023 01:28 PM (IST)
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। भारत-पाक जंग में मदद के बदले पूर्ण राजनयिक संबध की मांग करने वाला इजरायल आज भारत का रणनीतिक सहयोगी है। इजरायल रूस के बाद हथियारों की आपूर्ति के मामले में सबसे भरोसेमंद मित्र है, लेकिन ये सफर इतना आसान नहीं रहा है।
1947 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने फलस्तीन के विभाजन के मसले पर इजरायल का समर्थन करने से इनकार कर दिया था। नेहरू ने इसके लिए भू राजनीतिक मजबूरियों और राष्ट्रीय हितों का हवाला दिया था। इजरायल के जन्म के तीन साल बाद भारत ने इजरायल को मान्यता दी। पंडित नेहरू ने कहा था-
भारत की विदेश नीति दशकों तक फलस्तीन के पक्ष में झुकी रही, लेकिन 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने इजरायल के साथ द्विपक्षीय रिश्तों को नई ऊंचाई पर पहुंचाया। पीएम मोदी ने फलस्तीन और इजरायल के साथ संबंधों को एक दूसरे से अलग रखा, जब मोदी इजरायल की यात्रा पर गए तो फलस्तीन नहीं गए और जब फलस्तीन गए तो इजरायल नहीं गए। मोदी ने इस पारंपरिक धारणा को तोड़ दिया कि इजरायल के साथ संबंध मजबूत करने से अरब देश नाराज होंगे। आइये देखते हैं कि भारत और इजरायल के रिश्तों में 10 अहम मोड़ कौन से रहे।आज इजरायल एक हकीकत है। हमने पहले इजरायल को मान्यता इसलिए नहीं दी क्योंकि हम अपने अरब दोस्तों को नाराज नहीं करना चाहते थे।
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महात्मा गांधी का दौर
महात्मा गांधी ने यहूदियों पर हुए अत्याचार की वजह से उनके साथ सहानुभूति तो जताई, लेकिन वे इस पक्ष में नहीं थे कि फलस्तीन को बंटवारे के लिए बाध्य किया जाए। गांधी जी की राय थी कि यहूदी अमेरिका और ब्रिटेन की मदद से खुद को फलस्तीन पर थोपना चाहते हैं और ये उनकी गंभीर गलती है।1947: भारत की स्वतंत्रता का वर्ष
इजरायल के मसले पर प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने भी महात्मा गांधी की ही लाइन ली और उन्होंने साफ कहा कि अरब आबादी की सहमति के बिना फलस्तीन का विभाजन नहीं होना चाहिए। उन्होंने फलस्तीन के विभाजन के पक्ष में समर्थन के लिए अल्बर्ट आइंस्टीन की अपील को भी ठुकरा दिया था।