27 साल और महिला आरक्षण बिल: सांसदों की शर्मनाक हरकत की गवाह बनी संसद; देवगौड़ा से लेकर मनमोहन सरकार तक का सफर
संसद के विशेष सत्र (Parliament Special Session) के दूसरे दिन केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने लोकसभा में महिला आरक्षण बिल (Women Reservation Bill) पेश किया। इस पहल की शुरुआत 27 साल पहले तब हुई थी जब प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा के नेतृत्व वाली संयुक्त मोर्चा सरकार ने सबसे पहले इसे 12 सितंबर 1996 को लोकसभा में पेश किया था।
By Jagran NewsEdited By: Devshanker ChovdharyUpdated: Tue, 19 Sep 2023 09:50 PM (IST)
मनीष तिवारी, नई दिल्ली। Women Reservation Bill: शायद ही किसी विधेयक ने कानून बनने के लिए इतना लंबा इंतजार झेला हो, जितना विधायिका में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण उपलब्ध कराने के लिए नए सिरे से लाए गए विधेयक को करना पड़ा है। राजनीतिक खेमेबाजी, आरक्षण के भीतर आरक्षण के सवाल और इसका लाभ किसे मिलेगा जैसी बातों के कारण 27 साल से यह विधेयक एक सदन से दूसरे सदन के बीच फंसा रहा।
अगर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मंगलवार को संसद के विशेष सत्र के दौरान नए भवन में पहली बार लोकसभा में शुरू हुई कार्यवाही के दौरान यह कहा कि ईश्वर ने इस पवित्र कार्य के लिए मुझे चुना है तो इसके खास मायने हैं। एक तो बिल दोनों सदनों से जरूरी बहुमत के साथ पारित होने के पूरे आसार हैं और दूसरे, मौजूदा माहौल में महिलाओं को उनका हक देने वाले इस कदम के विरोधियों की संख्या भी घट गई है।
पहली बार 1996 में पेश हुआ था महिला आरक्षण बिल
इस बिल की कहानी संसदीय कामकाज की जटिलता और राजनीतिक हानि-लाभ को अनुचित महत्व देने की बानगी है। इस पहल की शुरुआत 27 साल पहले तब हुई थी, जब एचडी देवगौड़ा के नेतृत्व वाली संयुक्त मोर्चा सरकार ने सबसे पहले इसे 12 सितंबर 1996 को लोकसभा में पेश किया था। इसके बाद प्रत्येक सरकार ने या तो इसके लिए प्रयास किया या फिर इसके पक्ष में खूब बातें कीं।समिति के पास भेजा गया विधेयक
जब पहली बार इसे लाया गया था, तो यह चौंकाने वाला कदम था, क्योंकि सत्ताधारी गठबंधन में जनता दल और कुछ अन्य सहयोगी दल इसके पक्ष में नहीं थे। बिल को भाकपा नेता गीता मुखर्जी के नेतृत्व वाली संयुक्त समिति के हवाले कर दिया गया। इस समिति में 31 सदस्य थे, जिनमें ममता बनर्जी, नीतीश कुमार, मीरा कुमार, सुमित्रा महाजन, शरद पवार, उमा भारती, गिरिजा व्यास, रामगोपाल यादव, सुशील कुमार शिंदे आदि शामिल थे। समिति ने सात बड़े सुधार बताए।
समिति ने क्या दिया था सुझाव?
इसी समिति ने यह सुझाव दिया कि यह आरक्षण शुरुआत में 15 साल के लिए होना चाहिए। समिति ने दिसंबर 1996 में अपनी रिपोर्ट दी, लेकिन कई सदस्यों ने अपनी असहमति के नोट भी दर्ज किए। 16 मई 1997 को विधेयक में लोकसभा के लिए चर्चा लिया गया, लेकिन सत्तारूढ़ गठबंधन के नेताओं ने ही इसका प्रबल विरोध किया। यही वह दिन था जब शरद यादव ने इस विधेयक से लाभान्वित होने वाली शिक्षित और अशिक्षित महिलाओं को लेकर विवादास्पद टिप्पणी की थी। संयुक्त मोर्चा सरकार इस विधेयक को पारित नहीं करा सकी और लोकसभा का कार्यकाल समाप्त होने के साथ बिल लैप्स हो गया।
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