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AMU में मुस्लिम छात्रों के लिए आरक्षण बरकरार रहेगा या नहीं, क्या है 18 साल पुराना विवाद? SC सुनाएगा फैसला

एएमयू में मुस्लिम छात्रों के आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट जल्द फैसला सुनाएगा। एएमयू ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के 18 साल पुराने फैसले को चुनौती दी है। उस फैसले में एएमयू में पोस्ट ग्रेजुएट पाठ्यक्रम में मुसलमानों को 50 फीसद आरक्षण रद्द कर दिया था। अदालत ने कहा था कि एएमयू कभी भी अल्पसंख्यक संस्थान नहीं था। सुप्रीम कोर्ट ने मामले में 1 फरवरी को अपना फैसला सुरक्षित रखा था।

By Jagran News Edited By: Manish Negi Updated: Wed, 09 Oct 2024 07:25 PM (IST)
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एएमयू में आरक्षण को लेकर SC में सुनवाई

माला दीक्षित, नई दिल्ली। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के अल्पसंख्यक दर्जे पर सुप्रीम कोर्ट जल्द फैसला सुना सकता है। इसकी संभावना इसलिए है क्योंकि मामले की सुनवाई करने वाली सात सदस्यीय संविधान पीठ की अध्यक्षता प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने की थी जो 10 नवंबर को सेवानिवृत हो रहे हैं।

फैसले का अल्पसंख्यक राजनीति पर भी होगा असर

10 नवंबर तक सुप्रीम कोर्ट में सिर्फ 15 कार्य दिवस बचे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने एक फरवरी को फैसला सुरक्षित रखा था। अभी तक आठ महीने से ज्यादा बीत चुके हैं। इस मामले में जो फैसला आएगा वह एएमयू का भविष्य तय करने वाला होगा। इससे तय होगा कि एएमयू अल्पसंख्यक संस्थान माना जाएगा या नहीं। सुप्रीम कोर्ट का जो भी फैसला आएगा उसका अल्पसंख्यक राजनीति पर भी असर होगा।

इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती

इस मामले में एएमयू ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के पांच जनवरी 2006 के फैसले को चुनौती दी है। हाई कोर्ट ने उस फैसले में एएमयू में पोस्ट ग्रेजुएट पाठ्यक्रम में मुसलमानों को 50 फीसद आरक्षण रद्द करते हुए कहा था कि एएमयू कभी भी अल्पसंख्यक संस्थान नहीं था, इसलिए पीजी पाठ्यक्रम में मुस्लिम छात्रों को आरक्षण नहीं दिया जा सकता। हाई कोर्ट ने मुस्लिम छात्रों को दिये जाने वाले आरक्षण को असंवैधानिक घोषित कर दिया था।

हाईकोर्ट ने अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के अजीज बाशा मामले में 1968 में दिए फैसले को आधार बनाया था, जिसमें कहा गया था कि एएमयू अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है। हाईकोर्ट ने अजीज बाशा फैसले के बाद एएमयू कानून में 1981 में संशोधन कर इसे अल्पसंख्यक दर्जा देने के प्रविधानों को भी रद्द कर करते हुए संशोधन को इसलिए गलत ठहराया था कि इससे सुप्रीम कोर्ट का फैसला निष्प्रभावी किया गया है।

बड़ी पीठ के पास विचार के लिए भेजा गया

12 फरवरी 2019 को सुप्रीम कोर्ट की तीन न्यायाधीशों की पीठ ने मामले को सात न्यायाधीशों की पीठ को विचार के लिए भेज दिया था। इसके अलावा, 1981 में भी अल्पसंख्यक दर्जे का एक मामला सात न्यायाधीशों को भेजा गया था, उसमें अजीज बाशा फैसले का मुद्दा भी शामिल था। प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, संजीव खन्ना, सूर्यकांत, जेबी पार्डीवाला, दीपांकर दत्ता, मनोज मिश्रा और सतीश चंद्र शर्मा की सात सदस्यीय पीठ ने आठ दिनों तक दोनों पक्षों की बहस सुनी।

क्या है एएमयू की दलील?

एएमयू ने अल्पसंख्यक दर्जे का दावा करते हुए दलील दी थी कि एएमयू की स्थापना मुसलमानों ने की थी। एएमयू ने 1968 के अजीज बाशा फैसले पर भी पुनर्विचार का अनुरोध किया जबकि केंद्र सरकार ने एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे की मांग का विरोध करते हुए कहा था कि न तो एएमयू की स्थापना मुसलमानों द्वारा की गई है और न ही उसका प्रशासन अल्पसंख्यकों द्वारा संचालित होता है। केंद्र की दलील थी कि एएमयू की स्थापना 1920 में ब्रिटिश कालीन कानून के जरिए हुई थी और उस समय एएमयू ने अपनी मर्जी से अल्पसंख्यक दर्जा छोड़ कर इंपीरियल कानून के जरिए विश्वविद्यालय बनना स्वीकार किया था।