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क्या है AMU पर 1967 का अजीज बाशा फैसला... जिस पर अब 57 साल बाद बंट गए सुप्रीम कोर्ट के जज

Aligarh Muslim University अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक दर्जे का निर्धारण अब तीन जजों की नियमित पीठ करेगी। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को इस मामले को पीठ के पास भेज दिया है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित मानदंडों के आधार पर अल्पसंख्यक संस्थान का फैसला होगा। 2006 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एएमयू को अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना था। इसके बाद विश्वविद्यालय ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी।

By Jagran News Edited By: Ajay Kumar Updated: Fri, 08 Nov 2024 04:09 PM (IST)
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सुप्रीम कोर्ट ने 1967 के फैसले को पलटा।
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को साल 1967 के फैसले को पलट दिया है। 1967 में एस अजीज बाशा बनाम भारत सरकार के मामले में कहा गया था कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय एक केंद्रीय विश्वविद्यालय है। इसे अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना जा सकता है।

शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में सात न्यायाधीशों की पीठ ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक दर्ज से जुड़े मामले में सुनवाई की। सर्वोच्च न्यायालय ने 4:3 के बहुमत से अपना फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे के मामले में नियमित तीन न्यायाधीशों की पीठ निर्णय लेगी। सुनवाई के दौरान इस मामले में न्यायाधीश बंट गए। तो आइए जानते हैं 1967 का अजीज बाशा बनाम भारत सरकार का पूरा मामला क्या है?

अजीज बाशा बनाम भारत सरकार

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक दर्जे पर विवाद सबसे पहले 1965 में शुरू हुआ। 20 मई 1965 को केंद्र सरकार ने एएमयू एक्ट में संशोधन किया था। इससे संस्थान की स्वायत्तता को खत्म कर दिया गया था। बाद में सरकार के फैसले को अजीज बाशा ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।

1967 में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की पीठ ने अपना फैसला सुनाया। इसमें कहा गया कि विश्वविद्यालय का निर्माण केंद्रीय कानून के आधार पर किया गया है। यह एक केंद्रीय विश्वविद्यालय न की अल्पसंख्यक संस्थान। हालांकि इस मामले में विश्वविद्यालय पक्षकार नहीं था।

संशोधन से एएमयू को मिला अल्पसंख्यक दर्जा

1972 में केंद्र की सत्ता पर इंदिरा गांधी काबिज थीं। उनकी सरकार ने भी माना की एएमयू अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है। मगर बाद में विश्वविद्यालय ने इसका विरोध किया। बाद में केंद्र सरकार ने 1981 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (संशोधन) अधिनियम पारित किया। इसके बाद एएमयू को अपना अल्पसंख्यक दर्जा वापस मिल गया था। मगर 2006 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा कि एएमयू अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में 1981 के उस प्रावधान को भी रद कर दिया जिसके तहत एएमयू को अल्पसंख्यक दर्जा दिया गया था। तत्कालीन यूपीए सरकार ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। विश्वविद्यालय ने भी एक अलग याचिका शीर्ष अदालत में दाखिल की। 2019 में यह मामला सुप्रीम कोर्ट की सात न्यायाधीशों वाली पीठ को भेजा गया था।

फैसले पर बंटे जज

सात न्यायाधीशों की पीठ में सीजेआई डीवाई चंद्रचूर्ण, जस्टिस संजीव खन्ना, जेडी पारदीवाला और मनोज मिश्रा ने बहुमत में फैसला सुनाया। जस्टिस सूर्यकांत, दीपांकर दत्ता और सतीश चंद्र शर्मा ने अल्पसंख्यक दर्जे के खिलाफ अपनी राय व्यक्त की।

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