Kolkata Doctor Case: डॉक्टरों की सुरक्षा के लिए कानून कैसे बनेगा? केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कर दिया क्लियर
केंद्रीय कानून की मांग कर रहे रेजिडेंट डॉक्टरों के विरोध प्रदर्शन के बीच स्वास्थ्य मंत्रालय ने सभी केंद्र सरकार के अस्पतालों में सुरक्षा तैनाती में 25 प्रतिशत की वृद्धि की अनुमति दी है। अधिकारियों ने कहा कि मानक सुरक्षा प्रोटोकॉल के अलावा सरकारी अस्पतालों द्वारा अपना सुरक्षा मूल्यांकन करने के बाद उनकी व्यक्तिगत मांगों के आधार पर मार्शलों की तैनाती को मंजूरी दी जाएगी।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने डॉक्टरों की सुरक्षा के लिए केंद्रीय कानून बनाने और इसके लिए अध्यादेश जारी करने की मांग को औचित्यहीन करार दिया है। स्वास्थ्य मंत्रालय के शीर्ष अधिकारियों के अनुसार स्वास्थ्य पूरी तरह से राज्यों का विषय है और 26 राज्यों ने अस्पतालों में स्वास्थ्य कर्मियों की सुरक्षा के लिए कानून बना रखा है। राज्य का विषय होने के कारण केंद्र राज्यों को सिर्फ एडवाइजरी भेज सकता है।
वहीं रेजिडेंट डॉक्टर एसोसिएशन की मांग को मानते हुए स्वास्थ्य मंत्रालय ने सभी केंद्रीय अस्पतालों व मेडिकल कालेजों में तैनात सुरक्षा कर्मियों की संख्या में 25 फीसद तक बढ़ोतरी की मंजूरी दे दी है। स्वास्थ्य मंत्रालय के शीर्ष अधिकारी ने कहा कि कई रेजिडेंट डॉक्टर एसोसिएशन के साथ सोमवार को हुई चर्चा भी बेनतीजा रही।
स्वास्थ्य कर्मियों की सुरक्षा
डॉक्टर एसोसिएशन स्वास्थ्य कर्मियों की सुरक्षा के लिए केंद्रीय कानून बनाने और तत्काल प्रभाव से इसे लागू करने के लिए अध्यादेश जारी करने पर अड़े हुए हैं। शीर्ष अधिकारी ने कहा कि डॉक्टर एसोसिएशन ने दो दिन पहले यह नई मांग जोड़ दी है, जिसे पूरा करना केंद्र सरकार के लिए संभव नहीं है।केंद्रीय कानून बनाने की मांग
उन्होंने कहा कि आरजी कर मेडिकल कालेज में हुई हृदयविदारक घटना को देखते हुए डॉक्टर एसोसिएशन की केंद्रीय कानून बनाने की मांग कर रहे हैं। लेकिन कोलकाता में हुई घटना इस तरह के किसी कानून से कवर नहीं हो सकता है। वह केवल भारतीय न्याय संहिता के तहत ही कवर हो सकता है, जिसके तहत कार्रवाई हो भी रही है।
कानून बनाने की मांग खारिज
शीर्ष अधिकारी के अनुसार इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट एक जुलाई को स्वास्थ्य कर्मियों की सुरक्षा के लिए नए कानून बनाने की मांग को खारिज कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट का भी मानना था कि स्वास्थ्य कर्मियों की सुरक्षा के लिए राज्यों में पर्याप्त कानून हैं और केवल उन्हें अमल में लाने की जरूरत है। राज्यों ने स्वास्थ्य कर्मियों के साथ हिंसा के कानून में गैर जमानती धाराएं जोड़ रखी हैं और कड़ी सजा भी प्रविधान कर रखा है।मांगों को स्वीकार कर लिया गया
उन्होंने कहा कि इन कानूनों को अमल में लाने की जिम्मेदारी राज्य सरकारों की है, केंद्र की इसमें कोई भूमिका नहीं है। स्वास्थ्य मंत्रालय के शीर्ष अधिकारी के अनुसार डॉक्टर एसोसिएशन की वाजिब मांगों को स्वीकार कर लिया गया है।