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अंतरिक्ष में 30 हजार किलो वजन पहुंचाने में सक्षम होगा भारत, ISRO और RRCAT के बीच करार

इसरो व राजा रमन्ना प्रगति प्रौद्योगिकी केंद्र (आरआरकैट) इंदौर के बीच एक अनुबंध हुआ है। इसके तहत भविष्य में अंतरिक्ष में भारत 30 हजार किलोग्राम वजन पहुंचाने में सक्षम हो सकेगा। बता दें कि वर्ष 2040 तक अंतरिक्ष में मनुष्यों को भेजने की तैयारी है। ऐसे में यह तकनीक काफी कारगर साबित हो सकती है। इसके लिए लॉन्च व्हीकल तैयार किया जा रहा है।

By Jagran News Edited By: Manish Negi Updated: Wed, 04 Sep 2024 09:01 PM (IST)
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अंतरिक्ष में भारत भेजेगा हजारों किलो वजन (प्रतीकात्मक तस्वीर)
इंदौर, नईदुनिया प्रतिनिधि। अभी चंद्रयान व अन्य स्पेस मिशन में कम वजन की सामग्री ही ले जाई जा सकती है। चंद्रयान-3 का कुल वजन ही 3900 किलोग्राम था। भविष्य में अंतरिक्ष में भारत 30 हजार किलोग्राम वजन पहुंचाने में सक्षम हो सकेगा। इस तकनीक को विकसित करने के लिए इसरो व राजा रमन्ना प्रगति प्रौद्योगिकी केंद्र (आरआरकैट) इंदौर के बीच बुधवार को अनुबंध हुआ।

अंतरिक्ष में मनुष्यों को भेजने की तैयारी

गौरतलब है कि वर्ष 2040 तक अंतरिक्ष में मनुष्यों को भेजने की तैयारी है। ऐसे में यह तकनीक काफी कारगर साबित हो सकती है। इसरो के लिक्विड प्रोपल्शन सिस्टम सेंटर (एलपीएससी) के निदेशक डॉ. वी नारायण ने कहा कि सूर्या नाम से नई जनरेशन का लॉन्च व्हीकल बनाया जा रहा है। यह लिक्विड ऑक्सीजन और मिथेन प्रोपेल्शन पर आधारित होगा। इसके इंजन की तकनीक को विकसित करने के लिए 18 से 24 महीने की समयावधि रखी गई है।

कैट में तकनीक विकसित की जाएगी। इसके बाद इंजन का उत्पादन शुरू किया जाएगा। वर्तमान में इसरो प्रतिवर्ष केवल दो से तीन रॉकेट बनाने में सक्षम है, लेकिन नए लॉन्च व्हीकल में कम से कम 25 रॉकेट इंजन का उपयोग किया जाएगा और भारत को ऐसे इंजन बनाने के लिए क्षमता बढ़ानी होगी।

स्वदेशी होगी तकनीक

खास बात यह है कि यह तकनीक पूर्णत: भारतीय होगी। कैट निदेशक उन्मेष डी. मल्शे ने बताया कि लॉन्च व्हीकल के इंजन निर्माण में लेजर एडिटिव मैन्यूफैक्चरिंग (एलएएम) तकनीक पहली बार इस्तेमाल हो रही है। पहले के लॉन्च व्हीकल की तुलना में यह सात से आठ गुना बड़ा होगा। भौतिक रूप से पूरा इंजन तैयार करने में आठ साल लगेंगे।