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'भगवान कृष्ण ने लगाई थी पहली लोक अदालत', सुप्रीम कोर्ट के कार्यक्रम में बोले कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल

केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने शनिवार को सुप्रीम कोर्ट द्वारा आयोजित कार्यक्रम को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि भगवान श्री कृष्ण ने पहली बार लोक अदालत कौरवों और पांडवों का विवाद निपटाने के लिए लगाई थी। उन्होंने कहा कि जिसे टूटे को बनाना आता है वही दुनिया का सबसे सफल इंसान है। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में पांच दिन लोग अदालतें लगाई गई।

By Jagran News Edited By: Ajay Kumar Updated: Sat, 03 Aug 2024 10:28 PM (IST)
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केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल। (फोटो- @arjunrammeghwal)

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने सौहार्दपूर्ण ढंग से मध्यस्थता के जरिए विवाद निपटाने में लोक अदालतों के महत्व का उल्लेख करते हुए शनिवार को कहा कि कई बार लोग अदालती प्रक्रिया से इतना त्रस्त हो जाते हैं कि किसी भी तरह समझौता करना चाहते हैं ताकि उन्हें अदालत न आना पड़े। कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने भी कार्यक्रम को संबोधित किया।

भगवान कृष्ण ने लगाई थी पहली लोक अदालत

कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने पांच दिन तक विशेष लोक अदालत लगा कर मामलों को सौहार्द पूर्ण ढंग से निपटारा करने की सुप्रीम कोर्ट की पहल की प्रशंसा की। कहा कि पहली लोक अदालत भगवान कृष्ण ने कौरवों-पांडवों का विवाद निपटाने के लिए लगाई थी। इस संदर्भ में उन्होंने दिनकर की पंक्तियों का भी उल्लेख किया।

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विवेक को मरने नहीं देना

कानून मंत्री ने कहा कि दुनिया में सबसे सफल इंसान वही होता है जिसे टूटे को बनाना आता है और रूठे को मनाना आता है। मेघवाल ने कहा कि मनुष्य को विवेक को नहीं मरने देना चाहिए। अगर ऐसा होता है तो लोक अदालतें उसे जगाने का काम करती हैं। उन्होंने लोक अदालत में वैवाहिक विवाद, दीवानी विवाद, चेक बाउंस केस, जमीन अधिग्रहण आदि के मामले निपटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट की सराहना की।

पांच दिन लगीं लोक अदालतें

मेघवाल ने कहा कि इस विशेष लोक अदालत में करीब 1000 मामले निपटाए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 75वीं वर्षगांठ के अवसर पर 29 जुलाई से दो अगस्त तक लोक अदालत लगाई थी। शनिवार को इसका स्मरणोत्सव समारोह था। इस मौके पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि लोक अदालत का उद्देश्य लोगों के दरवाजे न्याय पहुंचाना और सुनिश्चित करना है कि हम उनके साथ हैं।

थकाऊ न्यायिक प्रक्रिया पर जताई चिंता

चीफ जस्टिस ने जटिल और थकाऊ न्यायिक प्रक्रिया में निहित समस्याओं पर प्रकाश डाला जिसके कारण अक्सर पक्षकार अपने कानूनी अधिकारों से कम राशि पर समझौते को स्वीकार करने को तैयार हो जाते हैं। उन्होंने इसे चिंता का विषय बताया।

चीफ जस्टिस ने देश भर से आए अधिकारियों के सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री में काम करने और लोक अदालत के आयोजन में उनके सहयोग की सराहना करते हुए कहा कि वे ये बात इसलिए कह रहे हैं क्योंकि सुप्रीम कोर्ट भले ही दिल्ली में स्थित हो लेकिन यह सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया है। यानी पूरे देश का है।

लोक अदालतों को संस्थागत रूप देने पर जोर

चीफ जस्टिस ने लोक अदालत में आये कुछ मामलों में कम राशि पर समझौते को तैयार वादियों के मामलों का उदाहरण भी दिया और बताया कि कैसे न्यायाधीश ने उसे समझौते के जरिये ही बढ़ी राशि दिलवाई। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में लोक अदालत के आयोजन को संस्थागत रूप देने की भी बात कही।

सुप्रीम कोर्ट में पांच दिनों तक चीफ जस्टिस की अदालत सहित सात अदालतें रोजाना दोपहर के बाद लोक अदालत में सुनवाई के लिए सूचीबद्ध मामलों का निपटारा करती थीं। इससे पहले सुबह से भोजनावकाश तक नियमित मुकदमों की सुनवाई होती थी।

समझौता करने पर तैयार हो जाता वादी

सीजेआई ने कहा कि प्रक्रिया के दंड बन जाने के कारण वादी कम राशि पर समझौता करने को तैयार हो जाता है जबकि कई बार वह ज्यादा का हकदार होता है। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि एक न्यायाधीश के तौर पर यह स्थिति हमारे लिए चिंता का विषय है। मुख्य न्यायाधीश ने सुप्रीम कोर्ट की 75वीं वर्षगांठ पर आयोजित पांच दिवसीय विशेष अदालत की उपलब्धियां और संस्मरण साझा करते हुए शनिवार को आयोजित समारोह में यह बात कही। 

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