जरा ध्यान दें! घर में लगी LED से आपकी आंखों का रेटिना हो सकता है हमेशा के लिए खराब
घरों में इस्तेमाल की जाने वाली एलईडी आपकी आंखों से रोशनी तक छीन सकती है। यह आखों के लिए बेहद खतरनाक साबित हो सकती है। नुकसान पहुंचने के बाद इसको ठीक भी नहीं किया जा सकता है।
By Kamal VermaEdited By: Updated: Tue, 21 May 2019 11:31 AM (IST)
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। तकनीक जहां हमें फायदा पहुंचा रही है वहीं हमें नुकसान भी पहुंचा रही है। बात चाहे मोबाइल की हो या ऊर्जा और बिल की बचत के लिए हमारे घरों में लगाई गई एलईडी की हो, ये सभी चीजें हमारी आंखों के लिए बेहद खतरनाक साबित हो सकती हैं। फ्रांस की सरकारी स्वास्थ्य निगरानी संस्थान (French Agency for Food, Environmental and Occupational Health and Safety (ANSES)) की हालिया रिपोर्ट में साफतौर पर इसका
नहीं हो सकेगी नुकसान की भरपाई
जिक्र किया गया है कि घरों में इस्तेमाल की जाने वाली लाइट एमिटिंग डायोड (LED) की रोशनी हमारी आंखों के रेटीना (Retina Cells) को नुकसान पहुंचा सकती है। ANSES की 400 पेज की रिपोर्ट में एलईडी से होने वाले नुकसान की तरफ इशारा किया गया है। हालांकि आपको यहां पर ये भी बता दें कि एलईडी से होने वाले नुकसान को लेकर कई देशों ने पहले ही आशंका जाहिर कर दी थी। लेकिन ताजा रिपोर्ट में इसको विस्तार दिया गया है। इस रिपोर्ट के मुताबिक एलईडी लाइट की नीली रोशनी से आंख के रेटिना को इतना नुकसान पहुंचा सकती है कि इलाज से भी वह ठीक नहीं की जा सकती हैं। इसके साथ ही नीली रोशनी वाली एलईडी प्राकृतिक रूप से आने वाली नींद पर भी खराब असर डाल रही है। भारत के लिए यह रिपोर्ट है बेहद खास
भारत के लिए यह रिपोर्ट इस लिहाज से भी बेहद खास है क्योंकि इस वर्ष भारत दुनिया में एलईडी का सबसे अधिक उपयोग करने वाला देश बन जाएगा। आपको यहां पर ये भी बताना जरूरी होगा कि भारत सरकार ने घरों में एलईडी के इस्तेमाल और इनकी बिक्री को लेकर पूरा खाका तैयार किया है। इसके तहत देशभर के 54,500 पेट्रोल पंपों पर भी इसकी बिक्री की जाएगी। सरकार का कहना है कि एलईडी के इस्तेमाल से 40 हजार करोड़ रुपये की बचत होगी।
जिक्र किया गया है कि घरों में इस्तेमाल की जाने वाली लाइट एमिटिंग डायोड (LED) की रोशनी हमारी आंखों के रेटीना (Retina Cells) को नुकसान पहुंचा सकती है। ANSES की 400 पेज की रिपोर्ट में एलईडी से होने वाले नुकसान की तरफ इशारा किया गया है। हालांकि आपको यहां पर ये भी बता दें कि एलईडी से होने वाले नुकसान को लेकर कई देशों ने पहले ही आशंका जाहिर कर दी थी। लेकिन ताजा रिपोर्ट में इसको विस्तार दिया गया है। इस रिपोर्ट के मुताबिक एलईडी लाइट की नीली रोशनी से आंख के रेटिना को इतना नुकसान पहुंचा सकती है कि इलाज से भी वह ठीक नहीं की जा सकती हैं। इसके साथ ही नीली रोशनी वाली एलईडी प्राकृतिक रूप से आने वाली नींद पर भी खराब असर डाल रही है। भारत के लिए यह रिपोर्ट है बेहद खास
भारत के लिए यह रिपोर्ट इस लिहाज से भी बेहद खास है क्योंकि इस वर्ष भारत दुनिया में एलईडी का सबसे अधिक उपयोग करने वाला देश बन जाएगा। आपको यहां पर ये भी बताना जरूरी होगा कि भारत सरकार ने घरों में एलईडी के इस्तेमाल और इनकी बिक्री को लेकर पूरा खाका तैयार किया है। इसके तहत देशभर के 54,500 पेट्रोल पंपों पर भी इसकी बिक्री की जाएगी। सरकार का कहना है कि एलईडी के इस्तेमाल से 40 हजार करोड़ रुपये की बचत होगी।
क्यों नुकसानदेह है एलईडी
दरअसल, एलईडी से सात रंग की लाइट निकलती हैं। इसमें लाल और हरे रंग की वेब लेंथ ज्यादा होती है। इससे फोटोन की एनर्जी कम निकलती है। वहीं, नीली रोशनी वाली एलईडी की वेब लेंथ सबसे कम होती है। इस वजह से फोटोन की एनर्जी ज्यादा निकलती है। यही हमारी आंखों की रेटिना में कोशिकाओं (Retina Cells) को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाती हैं। ANSES की रिपोर्ट में कहा गया है कि शक्तिशाली LED की रोशनी 'फोटो-टॉक्सिक' होता है जो आंखों की तीक्ष्णता को भी कम कर सकता है। कहां-कहां है एलईडी का इस्तेमाल
आपको बता दें कि आपकी आंखों के अंदर मौजूद रेटिना को नुकसान सिर्फ रोशनी के लिए घरों में लगाई गई एलईडी से ही नहीं हो रहा है, बल्कि एलईडी टीवी, मोबाइल, लैपटॉप से भी इसी तरह का नुकसान आपकी आंखों को पहुंच रहा है। इसकी वजह है कि इन सभी में वही एलईडी का इस्तेमाल होता है। दूसरी बात ये भी है कि काम करते हुए या देखते हुए हमारी आंखों का पूरा फोकस भी इन्हीं चीजों पर होता है। जानकारोंं की मानें तो एक 60 वाट का साधारण बल्ब के 17 घंटे जलने पर एक किलोवाट बिजली की खपत होती है। वहीं, करीब तीन वाट का एलईडी बल्ब एक किलोवाट बिजली से 333 घंटे जलाया जा सकता है। यही वजह है कि एलईडी की डिमांड देश-दुनिया में तेजी से बढ़ी है। हालांकि रिपोर्ट के मुताबिक, एलईडी से निकलने वाली नीली रोशनी करीब 20 मिनट बाद से अपना असर दिखाना शुरू कर देती है।
दरअसल, एलईडी से सात रंग की लाइट निकलती हैं। इसमें लाल और हरे रंग की वेब लेंथ ज्यादा होती है। इससे फोटोन की एनर्जी कम निकलती है। वहीं, नीली रोशनी वाली एलईडी की वेब लेंथ सबसे कम होती है। इस वजह से फोटोन की एनर्जी ज्यादा निकलती है। यही हमारी आंखों की रेटिना में कोशिकाओं (Retina Cells) को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाती हैं। ANSES की रिपोर्ट में कहा गया है कि शक्तिशाली LED की रोशनी 'फोटो-टॉक्सिक' होता है जो आंखों की तीक्ष्णता को भी कम कर सकता है। कहां-कहां है एलईडी का इस्तेमाल
आपको बता दें कि आपकी आंखों के अंदर मौजूद रेटिना को नुकसान सिर्फ रोशनी के लिए घरों में लगाई गई एलईडी से ही नहीं हो रहा है, बल्कि एलईडी टीवी, मोबाइल, लैपटॉप से भी इसी तरह का नुकसान आपकी आंखों को पहुंच रहा है। इसकी वजह है कि इन सभी में वही एलईडी का इस्तेमाल होता है। दूसरी बात ये भी है कि काम करते हुए या देखते हुए हमारी आंखों का पूरा फोकस भी इन्हीं चीजों पर होता है। जानकारोंं की मानें तो एक 60 वाट का साधारण बल्ब के 17 घंटे जलने पर एक किलोवाट बिजली की खपत होती है। वहीं, करीब तीन वाट का एलईडी बल्ब एक किलोवाट बिजली से 333 घंटे जलाया जा सकता है। यही वजह है कि एलईडी की डिमांड देश-दुनिया में तेजी से बढ़ी है। हालांकि रिपोर्ट के मुताबिक, एलईडी से निकलने वाली नीली रोशनी करीब 20 मिनट बाद से अपना असर दिखाना शुरू कर देती है।
बन सकती है महामारी
रिपोर्ट की मानें तो जिस तेजी से एलईडी का इस्तेमाल व्यापकतौर पर पूरे देश और दुनिया में हो रहा है उस हिसाब से भविष्य में रेटिना से जुड़ी समस्या महामारी का रूप ले सकती है। विशेषज्ञों का कहना है कि नीली रोशनी की चमक को कम करने के लिए उपकरणों में फिल्टर लगाए जाने की जरूरत है। मैड्रिड के कम्पल्यूटेंस यूनिवर्सिटी की शोधकर्ता डा. सेलिया सांचेज रामोस की मानें तो इंसानों की आंखें साल में करीब छह हजार घंटे खुली रहती हैं और अधिकतर समय वे कृत्रिम प्रकाश का सामना करती हैं। ऐसे में एलईडी से होने वाले नुकसान को रोकने का सबसे बेहतर उपाय यही है कि कुछ समय बाद अपनी आंखों को बंद कर उन्हें आराम दें। ईरान पर अमेरिकी दबाव बढ़ाने के पीछे आखिर क्या है ट्रंप का मकसद, आप भी जान लें!
बदहाली की मार झेल रहे पाकिस्तान के पानी में बह गए करोड़ों डॉलर, कुछ नहीं आया हाथ! लोकसभा चुनाव और क्रिकेट से संबंधित अपडेट पाने के लिए डाउनलोड करें जागरण एप
रिपोर्ट की मानें तो जिस तेजी से एलईडी का इस्तेमाल व्यापकतौर पर पूरे देश और दुनिया में हो रहा है उस हिसाब से भविष्य में रेटिना से जुड़ी समस्या महामारी का रूप ले सकती है। विशेषज्ञों का कहना है कि नीली रोशनी की चमक को कम करने के लिए उपकरणों में फिल्टर लगाए जाने की जरूरत है। मैड्रिड के कम्पल्यूटेंस यूनिवर्सिटी की शोधकर्ता डा. सेलिया सांचेज रामोस की मानें तो इंसानों की आंखें साल में करीब छह हजार घंटे खुली रहती हैं और अधिकतर समय वे कृत्रिम प्रकाश का सामना करती हैं। ऐसे में एलईडी से होने वाले नुकसान को रोकने का सबसे बेहतर उपाय यही है कि कुछ समय बाद अपनी आंखों को बंद कर उन्हें आराम दें। ईरान पर अमेरिकी दबाव बढ़ाने के पीछे आखिर क्या है ट्रंप का मकसद, आप भी जान लें!
बदहाली की मार झेल रहे पाकिस्तान के पानी में बह गए करोड़ों डॉलर, कुछ नहीं आया हाथ! लोकसभा चुनाव और क्रिकेट से संबंधित अपडेट पाने के लिए डाउनलोड करें जागरण एप