भगवान गणेश 10 दिन के लिए आते हैं पृथ्वी पर, ऐसे शुरू हुई गणेशोत्सव को सार्वजनिक रूप से मनाने की रीत
वर्ष 1893 में बाल गंगाधर तिलक ने इस पारिवारिक उत्सव को पूरी तरह से सार्वजनिक आयोजन में परिवर्तित करने का कार्य किया था। पारिवारिक रीति-नीति से निकल किसी उत्सव का लोक पर्व बन जाना समाज को बांधने और साधने का अनुष्ठान ही है।
By TilakrajEdited By: Updated: Fri, 02 Sep 2022 10:58 AM (IST)
नई दिल्ली, डा. मोनिका शर्मा। हर वर्ष गणेश चतुर्थी से लेकर अनंत चतुर्दशी तक गणेश उत्सव मनाया जाता है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक, गणेश चतुर्थी के दिन प्रथम पूज्य गजानन का जन्म हुआ था। लोक मान्यता यह भी है कि दस दिन के लिए भगवान गणेश पृथ्वी पर आते हैं। गणेश पूजन की परंपरा का इतिहास केवल आस्था से ही नहीं, आजादी के आंदोलन से भी जुड़ा है। देश की स्वाधीनता की जंग के समय स्वतंत्रता सेनानी और समाज सुधारक बाल गंगाधर तिलक ने समाज में समरसता बढ़ाने के लिए गणेश उत्सव को सार्वजनिक रूप से मनाने की यह रीत शुरू की थी, ताकि आम लोगों की इस उत्सव के साथ ही स्वतंत्रता आंदोलन में भी भागीदारी हो सके।
वर्ष 1893 में बाल गंगाधर तिलक ने इस पारिवारिक उत्सव को पूरी तरह से सार्वजनिक आयोजन में परिवर्तित करने का कार्य किया था। उनका यह कदम से बहुत से सामाजिक सुधार और सकारात्मक सोच को विस्तार देने वाला भी रहा। कभी परिवार तक सीमित रही गणपति पूजा को सार्वजनिक महोत्सव के रूप में स्वीकार्यता दिलाने से यह पर्व न केवल धार्मिक कर्मकांड से दूर हुआ, बल्कि राष्ट्रीय एकता, छुआछूत से मुक्ति, संगठित-सजग समाज के निर्माण और आमजन को देश में बन रहे हालातों के प्रति जागरूक करने का आयोजन बन गया। आजादी के आंदोलन को भी गति मिली। तभी से यह उत्सव समाज को जोडने वाली एक कड़ी बना हुआ है।
दरअसल पारिवारिक रीति-नीति से निकलकर किसी उत्सव का लोक पर्व बन जाना, समाज को बांधने और साधने का अनुष्ठान बन ही जाता है। यही वजह है कि भारत की सांस्कृतिक पहचान को कायम रखने में गणेशोत्सव जैसे पर्वों की अहम भूमिका रही है। हमारी सांस्कृतिक विविधता और पर्व-त्योहार पूरी दुनिया देश को अनूठी पहचान देने वाले हैं। यूनेस्को भी भारत के इन पर्वों और मेलों को अमूर्त धरोहर की संवर्ग सूची में शामिल करता रहा है।
गौरतलब है कि यूनेस्को ने 2008 से भारत की अमूर्त सांस्कृतिक विरासतों को वैश्विक संरक्षण देने के लिए अपनी इंटैंजिबल लिस्ट में सूचीबद्ध करने की शुरुआत की थी। अब तक हमारे 14 त्योहारों, मेलों, क्षेत्रीय नृत्यों और परंपराओं को इस सूची में जोड़ा जा चुका है। गणेशोत्सव के समान ही उत्साह भरने वाले दुर्गा पूजा के नौ दिन चलने वाले उत्सव के साथ ही रामलीला, राजस्थान की कालबेलिया नृत्य संगीत परंपरा, कुंभ मेला, गढ़वाली पर्व रम्मन, छऊ नृत्य और वैदिक मंत्रोच्चारण की परंपरा को यूनेस्को भारत की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहरों में शामिल कर चुका है। वैश्विक स्तर पर इनकी चर्चा और संरक्षण की बात वाकई रेखांकित करने योग्य है।(लेखिका सामाजिक मामलों की जानकार हैं)