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'शरीयत काउंसिल नहीं, तलाक चाहिए तो आना होगा कोर्ट', मुस्लिम डॉक्टर जोड़े की याचिका पर मद्रास HC का फैसला

Madras HC decision मुस्लिम जोड़े को अगर तलाक चाहिए तो पति को कोर्ट से कानूनी मुहर लगवानी ही होगी। ये फैसला मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै पीठ ने एक मुस्लिम डॉक्टर जोड़े के ट्रिपल तलाक के संबंध में दिया है। 2010 में शादी करने वाले एक मुस्लिम डॉक्टर जोड़े के ट्रिपल तलाक के संबंध में एक नागरिक पुनरीक्षण याचिका पर सुनवाई करते हुए ये फैसला सुनाया गया।

By Agency Edited By: Mahen Khanna Updated: Wed, 30 Oct 2024 10:17 AM (IST)
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Madras HC decision मद्रास हाईकोर्ट का बड़ा फैसला।
एजेंसी, मदुरै। Madras HC decision शरीयत काउंसिल कोई अदालत नहीं है, अगर तलाक चाहिए तो पति को कोर्ट से कानूनी मुहर लगवानी ही होगी। ये फैसला मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै पीठ ने एक मुस्लिम डॉक्टर जोड़े के ट्रिपल तलाक के संबंध में दिया है। दरअसल, 2010 में शादी करने वाले एक मुस्लिम डॉक्टर जोड़े के ट्रिपल तलाक के संबंध में एक नागरिक पुनरीक्षण याचिका पर सुनवाई करते हुए ये फैसला सुनाया गया।

शरीयत काउंसिल ने किया था प्रमाणपत्र जारी

केस का मुख्य मुद्दा तमिलनाडु तौहीद जमात, शरीयत काउंसिल को लेकर था, जिसने 2017 में पति को तलाक का प्रमाण पत्र जारी किया। कोर्ट ने कहा कि यह पारिवारिक और वित्तीय मुद्दों को सुलझाने में मदद कर सकता है, लेकिन यह तलाक के प्रमाण पत्र जारी नहीं कर सकता है या दंड लागू नहीं कर सकता है। न्यायमूर्ति जी आर स्वामीनाथन ने तलाक के प्रमाण पत्र की आलोचना की और इसे चौंकाने वाला बताया। 

अदालत ही दे सकती है प्रमाणपत्र

पति की पुनरीक्षण याचिका को खारिज करते हुए न्यायाधीश ने दोहराया कि परिषद ने ट्रिपल तलाक के लिए पति की याचिका को स्वीकार कर लिया था और मध्यस्थता का प्रयास किया था शरीयत काउंसिल एक निजी संस्था है न कि अदालत। जब तक क्षेत्राधिकार वाली अदालत से ऐसा प्रमाणपत्र प्राप्त नहीं किया जाता है, तब तक विवाह कायम माना जाता है। 

क्या है मामला?

  • बता दें कि 2018 में पत्नी ने तलाक पर विवाद किया और तिरुनेलवेली न्यायिक मजिस्ट्रेट अदालत के समक्ष घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम के तहत एक याचिका दायर की।
  • महिला ने कहा कि उसे तीन तलाक नहीं दिया गया है, यानी विवाह अभी भी वैध था। पति ने उस साल दूसरी शादी की।
  • इसके बाद 2021 में मजिस्ट्रेट ने पहली पत्नी के पक्ष में फैसला सुनाया, जिसमें पति को घरेलू हिंसा के मुआवजे के रूप में 5 लाख रुपये और अपने नाबालिग बच्चे के भरण-पोषण के लिए 25,000 रुपये प्रति माह देने का निर्देश दिया।
  • बाद में, एक सत्र न्यायालय ने इस निर्णय के खिलाफ पति की अपील को खारिज कर दिया, जिसके बाद उसे उच्च न्यायालय के समक्ष वर्तमान पुनरीक्षण याचिका दायर करनी पड़ी। 

HC ने क्या कहा?

सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति स्वामीनाथन ने कहा कि पति ने तीन तलाक देने की बात कही है, लेकिन पत्नी ने इस पर विवाद किया है, तो सवाल यही है कि क्या वैध रूप से तलाक दिया गया है। न्यायाधीश ने कहा कि जब तक अधिकार क्षेत्र वाली अदालत से ऐसा प्रमाणपत्र घोषणा प्राप्त नहीं की जाती है, तब तक विवाह को कायम माना जाता है। उच्च न्यायालय ने कहा कि पति को अदालत में जाकर प्रमाणपत्र प्राप्त करना चाहिए।