मजहबी शिक्षा नहीं दे सकते सरकारी मदरसे : कोर्ट
मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वशर्मा ने 2020 में शिक्षा मंत्री के रूप में असम रिपील एक्ट पेश किया था। इस बिल को 30 दिसंबर 2020 को पारित किया गया था। इसके जरिये असम मदरसा शिक्षा अधिनियम 1995 को रद कर दिया गया था।
By Monika MinalEdited By: Updated: Sat, 05 Feb 2022 02:56 AM (IST)
गुवाहाटी, प्रेट्र। गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने असम सरकार के उस फैसले को सही ठहराया है जिसके तहत राज्य के सभी मदरसों (सरकार द्वारा वित्त पोषित) को सामान्य स्कूलों में बदलने का आदेश दिया गया था। राज्य सरकार ने यह आदेश असम रिपीलिंग एक्ट-2020 के तहत दिया था, जिसे उच्च न्यायालय ने सही ठहराया है।
मुख्य न्यायाधीश सुधांशु धूलिया और जस्टिस सौमित्र सैकिया की पीठ ने अपने निर्णय में कहा है कि जो विधायिका और कार्यपालिका की ओर से जो बदलवा किया गया है वह केवल सरकारी सहायता प्राप्त मदरसों के लिए है, न कि निजी अथवा सामुदायिक मदरसों के लिए। इस निर्णय के साथ हाई कोर्ट ने एक्ट की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया। याचिका पिछले साल 13 व्यक्तियों की ओर से दाखिल की गई थी। उच्च न्यायालय ने 27 जनवरी को मामले पर सुनवाई पूरी करते हुए अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
मजहबी शिक्षा नहीं दे सकते मदरसे
न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि पूरी तरह राज्य द्वारा संचालित मदरसे मजहबी शिक्षा नहीं दे सकते। यह संविधान के अनुच्छेद 28(1) के अनुकूल नहीं है। प्रांतीय मदरसों के शिक्षकों की नौकरी नहीं जाएगी। अगर आवश्यक हुआ तो उन्हें दूसरे विषय पढ़ाने के लिए प्रशिक्षित किया जाएगा। इसके साथ उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार के फैसले से संबंधित सभी आदेशों को सही ठहराया।
राज्य सरकार के फैसले को कोर्ट ने ठहराया सही
गुवाहाटी हाई कोर्ट ने सरकारी मदरसों को सामान्य स्कूलों में परिवर्तित करने के असम सरकार के फैसले को सही ठहराया और कहा कि सरकारी मदरसे मजहबी शिक्षा नहीं दे सकते हैं। मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वशर्मा ने 2020 में शिक्षा मंत्री के रूप में असम रिपील एक्ट पेश किया था। उन्होंने उच्च न्यायालय के फैसले के बाद ट्वीट किया-यह ऐतिहासिक फैसला है। इस बिल को 30 दिसंबर 2020 को पारित किया गया था। इसके जरिये असम मदरसा शिक्षा अधिनियम, 1995 को रद कर दिया गया था।