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Maharaja Ranjit Singh की सेना से झलकता था उनका रुआब, सिख–हिंदू–मुस्लिम समेत यूरोपीय देशों के सैनिक भी थे शामिल

Maharaja Ranjit Singhशेर-ए-पंजाब (पंजाब का शेर)के नाम से प्रसिद्ध महाराजा रणजीत सिंह अपने पीछे एक विरासत छोड़ गए हैं जिन्होंने विविधता और समानता के आदर्शों के आधार पर अपनी प्रजा पर शासन किया। उनके उदय से पहले पंजाब क्षेत्र में कई युद्धरत मिसलें (संघ)थीं। रणजीत सिंह के अधीन सेना सिर्फ सिख समुदाय तक ही सीमित नहीं थी। उनके सैन्य अधिकारियों में सभी धर्मों और वर्गों का प्रतिनिधित्व होता था ।

By Babli KumariEdited By: Babli KumariUpdated: Tue, 27 Jun 2023 01:19 PM (IST)
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Sher-e-Punjab Maharaja Ranjit Singh Death Anniversary (Photo-Jagran Graphics)

नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। महाराजा रणजीत सिंह का जन्म पंजाब के गुजरांवाला (अब पाकिस्तान) में 13 नवंबर 1780 को हुआ था। पंजाब के शेर या शेर-ए-पंजाब के नाम से प्रसिद्ध महाराजा रणजीत सिंह महान शासक और महान योद्धा पंजाब के सिख साम्राज्य के संस्थापक थे। राजा रणजीत सिंह का राज्य उत्तर-पश्चिम में खैबर दर्रे से लेकर पूर्व में सतलुज नदी तक और भारतीय उपमहाद्वीप के सबसे उत्तरी क्षेत्र कश्मीर से लेकर दक्षिण में थार (महान भारतीय) रेगिस्तान तक फैली हुई थी। पंजाब राज्य एकमात्र ऐसा राज्य है जिसने अफगानिस्तान को हराया है।

छोटी सी उम्र में चेचक की वजह से महाराजा रणजीत सिंह की एक आंख की रोशनी चली गयी थी। जब वे 12 साल के थे, तभी उनके पिता चल बसे और राजपाट का सारा बोझ उन्हीं के कंधों पर आ गया। उस समय पंजाब प्रशासनिक तौर पर टुकड़े-टुकड़े में बंटा था। इनको मिस्ल कहा जाता था और इन मिस्ल पर सिख सरदारों की हुकूमत चलती थी।

रणजीत सिंह के पिता महा सिंह सुकरचकिया मिस्ल के कमांडर थे, जिसका मुख्यालय गुजरांवाला में था। महाराजा रणजीत सिंह के विवाह के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने कई शादियां की।

बचपन में ही रणजीत सिंह चेचक बीमारी से ग्रसित हो गए थे, जिसकी वजह से उनकी बायीं आंख की रोश्नी कम हो गई थी। महाराजा रणजीत सिंह ने अपने जीवन के शुरुआती दिनों में काफी संघर्षों को झेला था। जब वे 12 साल के थे, उस दौरान उनके पिता की मृत्यु हो गई थी, जिसके कुछ दिनों बाद वे सुकरचकिया मिशेल के मिसलदार बने।

विभिन्न धर्मों के रईसों से भरा रहता था दरबार

रणजीत सिंह एक चतुर और कूटनीतिक नेता, उनका दरबार विभिन्न धर्मों के रईसों से भरा रहता था। महाराजा रणजीत सिंह राज्य के भीतर और बाहर मौजूद विविधता से अवगत थे और उन्होंने महसूस किया कि केवल विजय और विस्तार ही उन्हें पूर्ण नेता नहीं बना देगा, उन्हें लोगों को साथ लेकर चलने की भी आवश्यकता होगी।

यहां यह बताना जरूरी है कि रणजीत सिंह प्रसिद्ध कोहिनूर हीरा और तैमूर रूबी भी हासिल करने में सक्षम थे। महाराजा रणजीत सिंह की विरासत का एक बड़ा हिस्सा कश्मीर, हजारा, पेशावर और खैबर पख्तूनख्वा पर उनकी विजय और उसके बाद उत्तर-पश्चिमी सीमा का सुदृढ़ीकरण है। उन्होंने 1819 में कश्मीर, 1820 में हजारा और 1834 में पेशावर और खैबर पख्तूनख्वा पर विजय प्राप्त की।

महाराजा रणजीत सिंह का निधन 27 जून, 1839 को लाहौर किले में हुआ था। उनकी राख को पाकिस्तान के लाहौर में प्रसिद्ध बादशाही मस्जिद के बगल में 'महाराजा रणजीत सिंह की समाधि' नामक स्मारक में रखा गया है। उनकी मृत्यु के बाद, सिख साम्राज्य और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी प्रथम आंग्ल-सिख युद्ध में शामिल हो गए, जिसके कारण ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की हार हुई। युद्ध का एक बड़ा परिणाम यह हुआ कि सिख साम्राज्य ने कश्मीर को अंग्रेजों के हाथों खो दिया, जिन्होंने इसे एक अलग रियासत बना दिया।

सेना में था सभी धर्मों और वर्गों का प्रतिनिधित्व

रणजीत सिंह के अधीन सेना सिख समुदाय तक ही सीमित नहीं थी। सैनिकों और सैन्य अधिकारियों में सिख शामिल थे, लेकिन हिंदू, मुस्लिम और यूरोपीय भी शामिल थे। हिंदू ब्राह्मण और सभी पंथों और जातियों के लोगों ने उनकी सेना की सेवा की, जबकि उनकी सरकार की संरचना में धार्मिक विविधता भी झलकती थी। उनकी सेना में पोलिश, रूसी, स्पेनिश, प्रशिया और फ्रांसीसी अधिकारी शामिल थे। 1835 में, जब अंग्रेजों के साथ उनके संबंध मधुर हो गए, तो उन्होंने फाउलकेस नामक एक ब्रिटिश अधिकारी को काम पर रखा।

राजा रणजीत सिंह के राज्य का विस्तार (The expansion of his kingdom)

अहमद शाह दुर्रानी के पोते शाह ज़मान के अपने पूर्ववर्ती की तरह भारत से पीछे हटने के बाद भंगी मिसल ने लाहौर पर फिर से कब्ज़ा कर लिया। कई प्रशासनिक विफलताओं के परिणामस्वरूप आंतरिक संघर्षों के कारण शहर और इसके निवासियों ने खुद को असुरक्षित महसूस किया। लाहौर के लोगों ने रणजीत सिंह को एक याचिका लिखी क्योंकि उन्होंने उनकी महिमा और राजत्व के बारे में सुना था। सिंह ने जवाब दिया और 16 जुलाई 1799 को लाहौर पर कब्ज़ा कर लिया।

  • महाराजा रणजीत सिंह ने सिर्फ 10 साल की उम्र में अपना पहला युद्ध लड़ा था। 
  • रणजीत सिंह की छोटी सी उम्र में चेचक के कारण इनकी एक आंख की रोशनी चली गयी थी।
  • जब वह 12 साल के हुए तो रणजीत के पिता का निधन हो गया और राजपाट का सारा बोझ उनके कंधों पर आ गया।
  • महाराजा रणजीत सिंह ने अन्य सभी मिस्लों के सरदारों को हराकर अपने सैन्य अभियान का आरंभ किया था।
  • साल 1799 के 7 जुलाई को रणजीत सिंह ने अपनी पहली जीत हासिल की थी। उन्होंने चेत सिंह की सेना को धुल चटाकर लाहौर पर कब्जा कर लिया था।
  • साल 1801 के 12 अप्रैल महीने में रणजीत सिंह की पंजाब के महाराज के तौर पर उनकी ताजपोशी की गयी। केवल 20 साल की उम्र में उन्होंने यह उपलब्धि हासिल कर ली थी।
  • रणजीत सिंह ने अपनी सेना के साथ आक्रमण कर साल 1818 में मुल्तान और 1819 में कश्मीर को हासिल कर लिया था। 
  • महाराजा रणजीत सिंह ने अफगानों के विरुद्ध भी कई लड़ाइयां लड़ीं थीं। इन लड़ाइयों के बाद ही उन्हें पश्चिमी पंजाब की ओर खदेड़ दिया गया था। 
  • रणजीत सिंह सभी धर्मों का सामान रूप से सम्मान किया करते थे। उनका मानना था कि सभी धर्म समान हैं इसी कारण उन्होंने कभी भी किसी को सिख धर्म अपनाने के लिए मजबूर नहीं किया। वह कहा करते थे कि भगवान ने मुझे एक ही आंख दी है, इसलिए उससे दिखने वाले सभी मुझे एक बराबर दिखाई देते हैं।