आपका कान देखकर लगाया जा सकता है दिल समेत कई बीमारियों का पता, जानें कैसे
दिल से जुड़ी बीमारी का पता महज आपका कान देखकर ही लगाया जा सकता है। यह सुनने में भले ही मजाक लगे लेकिन यह एक हकीकत के रूप में सामने आया है।
By Kamal VermaEdited By: Updated: Mon, 17 Sep 2018 10:46 AM (IST)
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। आपको यह जानकर हैरत होगी कि भारत में हर वर्ष 17 लाख से ज्यादा लोगों की मौत की वजह दिल की बीमारी होती है। वहीं दूसरी तरफ एक सच्चाई ये भी है कि भारत में दिल की बीमारी को लेकर इलाज की तो सहुलियतें हैं लेकिन अक्सर हम इसमें देर कर देते हैं। दूसरी तरफ इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि इसकी जांच की प्रक्रिया भी कुछ कम लंबी नहीं है। लेकिन अब आपको एक और हैरान करने वाली बात बता देते हैं। वो ये है कि दिल से जुड़ी बीमारी का पता महज आपका कान देखकर ही लगाया जा सकता है। यह सुनने में भले ही मजाक लगे लेकिन यह एक हकीकत के रूप में सामने आया है।
इस बाबत शोध
महाराष्ट्र के डॉक्टर हिम्मतराव बावास्कर ने इस बाबत शोध किया है और यह निष्कर्ष निकाला है कि डायागनल इयरलोब क्रीज (कान के निचले हिस्से पर तिरछी लकीर या सिकुड़न) बीमार दिल की बहुत बड़ी पहचान होती है। दरअसल, वह इस निष्कर्ष पर 888 मरीजों की केस स्टडी के बाद पहुंचे हैं। यह मरीज उनके पास डायबीटीज और हायपरटेंशन जैसी समस्याएं लेकर आए थे। इस दौरान उन्होंने पाया कि 95 फीसदी इयर क्रीज वाले लोगों को इस्कीमिक हार्ट डिजीज थी। गौरतलब है कि इयर-क्रीज थ्योरी पहली बार 1970 में सामने आई थी। अमेरिकन डॉक्टर सैंडर्स टी फ्रैंक ने कान और दिल के बीच इस बड़े संबंध को तलाशा था। इस तरह की लकीर ज्यादातर 60 साल से अधिक आयु के लोगों में दिखाई देती है। सांप और बिच्छुओं पर किया काफी काम
आपको बता दें कि डॉक्टर हिम्मतराव बावास्कर मुंबई से करीब 160 किमी दूर अपनी प्रैक्टिस करते हैं। उन्होंने सांप और बिच्छुओं के काटने और इसके इलाज पर काफी काम किया है जिसको अंतररार्ष्टीय तौर पर मान्यता भी मिली है। उनके मुताबिक संसाधनों की कमी वाली जगहों पर डॉक्टर कान को देखकर दिल की बीमारी के बारे में बता सकता है। उनके शोध की रिपोर्ट बताती है 95 फीसदी लोग जिनके कान में गंदगी भरी होती है, यानी जिन्हें कान की बीमारी होती है, वो हृदय रोग से भी पीड़ित होते हैं। हालांकि रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 60 वर्ष की उम्र से अधिक के लोगों के कान में गंदगी का होना एक आम बात होती है और उनमें हृदय रोग का खतरा भी ज्यादा होता है। दरअसल, कान की नसें शरीर की कई नसों से जुड़ी होती हैं, दिल की नसें भी उन्ही में से एक हैं। कान के इयर लोब पर झुर्रियां या सिलवटें पड़ने का सीधा संकेत दिल की बामारी से हो सकता है।
महाराष्ट्र के डॉक्टर हिम्मतराव बावास्कर ने इस बाबत शोध किया है और यह निष्कर्ष निकाला है कि डायागनल इयरलोब क्रीज (कान के निचले हिस्से पर तिरछी लकीर या सिकुड़न) बीमार दिल की बहुत बड़ी पहचान होती है। दरअसल, वह इस निष्कर्ष पर 888 मरीजों की केस स्टडी के बाद पहुंचे हैं। यह मरीज उनके पास डायबीटीज और हायपरटेंशन जैसी समस्याएं लेकर आए थे। इस दौरान उन्होंने पाया कि 95 फीसदी इयर क्रीज वाले लोगों को इस्कीमिक हार्ट डिजीज थी। गौरतलब है कि इयर-क्रीज थ्योरी पहली बार 1970 में सामने आई थी। अमेरिकन डॉक्टर सैंडर्स टी फ्रैंक ने कान और दिल के बीच इस बड़े संबंध को तलाशा था। इस तरह की लकीर ज्यादातर 60 साल से अधिक आयु के लोगों में दिखाई देती है। सांप और बिच्छुओं पर किया काफी काम
आपको बता दें कि डॉक्टर हिम्मतराव बावास्कर मुंबई से करीब 160 किमी दूर अपनी प्रैक्टिस करते हैं। उन्होंने सांप और बिच्छुओं के काटने और इसके इलाज पर काफी काम किया है जिसको अंतररार्ष्टीय तौर पर मान्यता भी मिली है। उनके मुताबिक संसाधनों की कमी वाली जगहों पर डॉक्टर कान को देखकर दिल की बीमारी के बारे में बता सकता है। उनके शोध की रिपोर्ट बताती है 95 फीसदी लोग जिनके कान में गंदगी भरी होती है, यानी जिन्हें कान की बीमारी होती है, वो हृदय रोग से भी पीड़ित होते हैं। हालांकि रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 60 वर्ष की उम्र से अधिक के लोगों के कान में गंदगी का होना एक आम बात होती है और उनमें हृदय रोग का खतरा भी ज्यादा होता है। दरअसल, कान की नसें शरीर की कई नसों से जुड़ी होती हैं, दिल की नसें भी उन्ही में से एक हैं। कान के इयर लोब पर झुर्रियां या सिलवटें पड़ने का सीधा संकेत दिल की बामारी से हो सकता है।
हृदय रोग के लक्षण और कारण
सीने में दर्द का होना या एक या दोनों हाथों, कमर, गर्दन, जबड़े या फिर पेट में दर्द और बेचैनी महसूस होना इसका लक्षण हो सकता है। लगातार सांस टूटने की अत्यधिक तीव्र तकलीफ दिल के दौरे की चेतावनी है। लेकिन हो सकता है यह अन्य हृदय की समस्याओं का संकेत भी हो। हृदय रोग के कई कारण हो सकते हैं, जिसमें कोलेस्ट्रॉल बढ़ना, ध्रूमपान, शराब पीना, तनाव, आनुवांशिकता, मोटापा और उच्च रक्तचाप शामिल है। और क्या बताता है हमारा कान
डायबिटीज की भी पहचान कान के माध्यम से की जा सकती है। आपने कई बार लोगों को अपना कान साफ करते हुए और इसकी वजह कम सुनाई देना कहते हुए देखा और सुना होगा। लेकिन कम जानकारी होने की वजह से ये लोग इस बात को नहीं जान पाते हैं कि इसके पीछे डायबिटीज एक वजह हो सकती है। दरअसल, डायबटीज के कारण भी सुनने में प्रॉब्लम हो सकती है। डायबटीज के मरीजों का ब्लड सर्कुलेशन बिगड़ जाने पर ब्लड उचित मात्रा में कान तक नही पहुंचता, जिससे कान ठीक से काम नहीं करता और कम सुनाई देने लगता है। इसी तरह से कान में होने वाले दर्द मुंह से जुड़ी समस्याओं के कारण भी हो सकता है। कान की निचे वाली हड्डी जबड़े के आखिरी सिरे से जुड़ी होती है। जिससे मुहं में होने वाले छालों, मसूड़ों की सूजन और दांतो में दर्द का असर कानों पर होता है। इतना ही नहीं शरीर पर किसी भी तरह की एलर्जी होने का सीधा असर नाक और कान पर पड़ता है।
सीने में दर्द का होना या एक या दोनों हाथों, कमर, गर्दन, जबड़े या फिर पेट में दर्द और बेचैनी महसूस होना इसका लक्षण हो सकता है। लगातार सांस टूटने की अत्यधिक तीव्र तकलीफ दिल के दौरे की चेतावनी है। लेकिन हो सकता है यह अन्य हृदय की समस्याओं का संकेत भी हो। हृदय रोग के कई कारण हो सकते हैं, जिसमें कोलेस्ट्रॉल बढ़ना, ध्रूमपान, शराब पीना, तनाव, आनुवांशिकता, मोटापा और उच्च रक्तचाप शामिल है। और क्या बताता है हमारा कान
डायबिटीज की भी पहचान कान के माध्यम से की जा सकती है। आपने कई बार लोगों को अपना कान साफ करते हुए और इसकी वजह कम सुनाई देना कहते हुए देखा और सुना होगा। लेकिन कम जानकारी होने की वजह से ये लोग इस बात को नहीं जान पाते हैं कि इसके पीछे डायबिटीज एक वजह हो सकती है। दरअसल, डायबटीज के कारण भी सुनने में प्रॉब्लम हो सकती है। डायबटीज के मरीजों का ब्लड सर्कुलेशन बिगड़ जाने पर ब्लड उचित मात्रा में कान तक नही पहुंचता, जिससे कान ठीक से काम नहीं करता और कम सुनाई देने लगता है। इसी तरह से कान में होने वाले दर्द मुंह से जुड़ी समस्याओं के कारण भी हो सकता है। कान की निचे वाली हड्डी जबड़े के आखिरी सिरे से जुड़ी होती है। जिससे मुहं में होने वाले छालों, मसूड़ों की सूजन और दांतो में दर्द का असर कानों पर होता है। इतना ही नहीं शरीर पर किसी भी तरह की एलर्जी होने का सीधा असर नाक और कान पर पड़ता है।
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