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चीन सीमा पर स्थित देश का अंतिम गांव बनेगा 'हेरिटेज विलेज', आते हैं देशी-विदेशी पर्यटक

जोशीमठ के उपजिलाधिकारी अनिल कुमार चन्याल बताते हैं कि इसके लिए सीमांत क्षेत्र विकास निधि और स्पेशल कंपोनेंट प्लान के तहत चार करोड़ की धनराशि स्वीकृत हुई है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Fri, 09 Aug 2019 02:41 PM (IST)
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चीन सीमा पर स्थित देश का अंतिम गांव बनेगा 'हेरिटेज विलेज', आते हैं देशी-विदेशी पर्यटक

जोशीमठ (चमोली), [रणजीत सिंह रावत] चमोली जिले में बदरीनाथ धाम से तीन किमी दूर चीन सीमा पर स्थित देश के अंतिम गांव माणा को 'हेरिटेज विलेज' बनाने की कवायद शुरू हो गई है। जोशीमठ के उपजिलाधिकारी अनिल कुमार चन्याल बताते हैं कि इसके लिए सीमांत क्षेत्र विकास निधि और स्पेशल कंपोनेंट प्लान के तहत चार करोड़ की धनराशि स्वीकृत हुई है। इस धनराशि से माणा गांव में ऑडिटोरियम, म्यूजियम, एंपीथियेटर और पार्किंग का निर्माण होना है। साथ ही भीमपुल, व्यास गुफा, गणेश गुफा व आसपास के क्षेत्रों का सुंदरीकरण भी प्रस्तावित है। हांलाकि, इसके लिए पहले स्थानीय लोगों से रायशुमारी की जाएगी।

समुद्र तल से 3118 मीटर (10227 फीट) की ऊंचाई पर स्थित माणा गांव वर्ष 1962 के भारत-चीन युद्ध से पूर्व तिब्बत से व्यापार का प्रमुख केंद्र हुआ करता था। युद्ध के बाद यहां से तिब्बत की आवाजाही पर रोक लगा दी गई, लेकिन माणा का महत्व फिर भी बना रहा। आज भी हर साल लाखों की संख्या में देशी-विदेशी पर्यटक और श्रद्धालु माणा की ऐतिहासिक, धार्मिक, सांस्कृतिक व पौराणिक विरासत को देखने के लिए माणा गांव पहुंचते हैं। बदरीनाथ धाम की परंपराओं से माणा गांव सीधा जुड़ा हुआ है। यहां के लोग बदरीनाथ धाम के हक-हकूकधारी हैं। मंदिर के कपाट बंद होने पर भगवान बदरी नारायण को पहनाया जाने वाला घृत कंबल भी माणा गांव की महिलाएं ही तैयार करती हैं।

माणा में भोटिया जनजाति के लोग रहते हैं, जो तीर्थाटन एवं पर्यटन से अपनी आजीविका चलाते हैं। पर्यटक व श्रद्धालु यहां से हाथों से बने ऊनी वस्त्र, गलीचे, कालीन, दन, शॉल, पंखी सहित अन्य पारंपरिक वस्तुएं खरीदकर ले जाते हैं। माणा गांव निवासी पीतांबर मोल्फा कहते हैं कि माणा के हेरिटेज विलेज बनने से गांव में न केवल पर्यटन सुविधाओं का विकास होगा, बल्कि स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के साधन भी विकसित होंगे। जिला पर्यटन अधिकारी विजेंद्र पांडेय बताते हैं कि माणा गांव को होम स्टे के तहत लाभान्वित करने की योजना है। फिलहाल पांच लोग यहां पर होम स्टे का लाभ ले रहे है। आगे योजना के तहत जो-जो कार्य होने होने हैं उनकी डीपीआर तैयार कर ली गई है।

यहीं रची गई थी श्रीमद् भागवत महापुराण
'स्कंद पुराण' के 'केदारखंड' में मणिभद्रपुर नाम से माणा गांव का उल्लेख हुआ है। कथा है कि देवताओं के खजांची कुबेर के अतिप्रिय सेवक मणिभद्र यक्ष के नाम पर गांव का 'मणिभद्रपुर' नाम पड़ा, जिसे कालांतर में माणा कहा जाने लगा।

इतिहासकार भजन सिंह ने अपनी पुस्तक 'आर्यों का मूल स्थान
मध्य हिमालय' में मनु के नौका पर प्रलय-जल-संतरण को माणा गांव के पास कहकर इस भूमि की दिव्यता बताई है। कहते हैं कि यहीं पर कृष्णद्वैपायन वेदव्यास ने भगवान गणेश की मदद से श्रीमद् भागवत महापुराण सहित अन्य ग्रंथों की रचना की थी। यहीं केशव प्रयाग में देवताल सरोवर से निकलने वाली सरस्वती नदी अलकनंदा से एकाकार होती है। पास ही विशालकाय भीम शिला है। कहते हैं कि स्वर्गारोहिणी यात्रा के दौरान द्रोपदी को सरस्वती नदी पार कराने के लिए भीम ने नदी के ऊपर इस शिला को रखा था।

दर्शनीय स्थल
माणा गांव से लगे कई ऐतिहासिक दर्शनीय स्थल हैं। गांव से कुछ ऊपर चढ़ाई पर चढ़ें तो पहले नज़र आती है गणेश गुफा और उसके बाद व्यास गुफा। व्यास गुफा के बारे में कहा जाता है कि यहीं पर वेदव्यास ने पुराणों की रचना की थी और वेदों को चार भागों में बाँटा था। व्यास गुफा और गणेश गुफा यहाँ होने से इस पौराणिक कथा को सिद्ध करते हैं कि महाभारत और पुराणों का लेखन करते समय व्यासजी ने बोला और गणेशजी ने लिखा था। व्यास गुफा, गणेश गुफा से बड़ी है। गुफा में प्रवेश करते ही किसी की भी नज़र एक छोटी सी शिला पर पड़ती है। इस शिला पर प्राकृत भाषा में वेदों का अर्थ लिखा गया है।

इसके पास ही है भीमपुल। पांडव इसी मार्ग से होते हुए अलकापुरी गए थे।कहते हैं कि अब भी कुछ लोग इस स्थान को स्वर्ग जाने का रास्ता मानकर चुपके से चले जाते हैं। प्राकृतिक सौन्दर्य के साथ-साथ भीम पुल से एक रोचक लोक मान्यता भी जुड़ी हुई है। जब पांडव इस मार्ग से गुजरे थे। तब वहाँ दो पहाड़ियों के बीच गहरी खाई थी, जिसे पार करना आसान नहीं था। तब कुंतीपुत्र भीम ने एक भारी-भरकम चट्टान उठाकर फेंकी और खाई को पाटकर पुल के रूप में परिवर्तित कर दिया। बगल में स्थानीय लोगों ने भीम का मंदिर भी बना रखा है।

वसुधारा- इसी रास्ते से आगे बढ़ें तो पाँच किमी. का पैदल सफर तय कर पर्यटक पहुँचते हैं वसुधारा. लगभग 400 फीट ऊँचाई से गिरता इस जल-प्रपात का पानी मोतियों की बौछार करता हुआ-सा प्रतीत होता है। ऐसा कहा जाता है कि इस पानी की बूँदें पापियों के तन पर नहीं पड़तीं। यह झरना इतना ऊँचा है कि पर्वत के मूल से पर्वत शिखर तक पूरा प्रपात एक नज़र में नहीं देखा जा सकता।

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