ग्रामीण आवास व सड़कों से मिली मनरेगा को रफ्तार
इसमें बैंकों की भी भूमिका अहम है, जिससे लोगों को दीनदयाल अंत्योदय राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन से जोड़ा गया है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारों को रोजगार मुहैया कराने वाली महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना को रफ्तार मिल गई है। गांवों में कच्चे काम की जगह अब पक्के व स्थाई काम भी कराये जाने लगे हैं। गांवों में सबको मकान देने वाली प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना और गांवों को जोड़ने वाली ग्रामीण सड़कों के निर्माण में गति आने से अकुशल के साथ कुशल मजदूरों को भी काम मिलने लगा है। ग्रामीण विकास के बजट में पिछले कुछ सालों में दोगुना तक की वृद्धि दर्ज की है।
ग्रामीण विकास मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक 14वें वित्त आयोग की सिफारिशों के चलते पंचायतों को तीन गुना अधिक वित्तीय मदद मिलने लगी है। इससे ग्रामीण बुनियादी ढांचे को मजबूत बनाने में काफी तेजी आई है। ग्रामीण गरीबों के आवास बनाने की योजना के चलते 51 लाख मकान निर्माणाधीन हैं। इन मकानों के निर्माण से ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रफ्तार तेज हुई है। हर घर में शौचालय बनाने की योजना भी तेजी से चल रही है। इससे स्थानीय लोगों को रोजगार मिला मिला है।
प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (पीएमजीएसवाई) के तहत एक लाख किमी लंबाई की सड़कें मंजूर हो चुकी है, जो जगहृ-जगह निर्माणाधीन हैं। इसमें भी लोगों को रोजगार मिलने की संभावनाएं बहुत बढ़ी हैं। इन सारी योजनाओं में महात्मा गांधी नरेगा के मजदूरों को काम देने का प्रावधान किया गया है, जिसका सीधा लाभ स्थानीय लोगों को ही मिल रहा है। इससे अलग मनरेगा में कृषि और उससे जुड़े उद्यम पर ज्यादा जोर दिया जा रहा है।
ग्रामीण क्षेत्रों से जुड़े उद्यम को सरकारी स्तर पर प्रोत्साहित किया जा रहा है। इसमें बैंकों की भी भूमिका अहम है, जिससे लोगों को दीनदयाल अंत्योदय राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन से जोड़ा गया है। एक आंकड़े के मुताबिक इन योजनाओं में महिला स्वयं सहायता समूहों को 47 हजार करोड़ रुपये बैंक खातों में भेजे गये। इसमें ग्रामीण परिवहन, कृषि, पशुधन, डेयरी, बागवानी, हथकरघा, हस्तशिल्प और खुदरा कारोबार के लिए धन मुहैया कराया गया।
मनरेगा के तहत सरकार चालू साल में 40 हजार करोड़ रुपये राज्यों को जारी कर चुकी है। सूखा प्रभावित राज्यों को विशेष आवंटन किया गया है। मनरेगा में होने वाली अनियमितताओं पर काबू पाते हुए 85 फीसद मजदूरी निर्धारित 15 दिनों में होने लगी है। सरकार की पूरी कोशिश है कि मजदूरों का सारा भुगतान बैंक अथवा डाकघर से ही किये जाएं।
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