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हड़प्पा सभ्यता अब सिंधु-सरस्वती, भेदभाव का उल्लेख भी नहीं, NCERT की नई पाठ्यपुस्तक में और क्या-क्या बदला?

राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) ने कक्षा छह की सामाजिक विज्ञान की पुस्तक में कई बदलाव किए हैं। अब पुस्तक में जाति आधारित भेदभाव का उल्लेख नहीं है। पाठ्यपुस्तक में कई जगह सरस्वती नदी का जिक्र है। नई पुस्तक में सांची स्तूप महाबलीपुरम के मंदिरों और अजंता की गुफाओं में चित्रों का उल्लेख भी हटा दिया गया है।

By Jagran News Edited By: Ajay Kumar Updated: Sun, 21 Jul 2024 08:04 PM (IST)
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एनसीईआरटी की कक्षा छह की पुस्तक में कई बदलाव।

पीटीआई, नई दिल्ली। कक्षा छह की सामाजिक विज्ञान की एनसीईआरटी की नई पाठ्यपुस्तक के अनुसार ग्रीनविच मध्याह्न रेखा से बहुत पहले भारत की अपनी एक प्रधान मध्याह्न रेखा थी जिसे ''मध्य रेखा'' कहा जाता था। यह मध्य प्रदेश के उज्जैन से होकर गुजरती थी। नई पाठ्यपुस्तक में जाति-आधारित भेदभाव का उल्लेख नहीं है और हड़प्पा सभ्यता को ''सिंधु-सरस्वती'' के रूप में संदर्भित किया गया है।

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खगोल विज्ञान का केंद्र था उज्जैन

पाठ्यपुस्तक के अनुसार, ''उज्जैन कई शताब्दियों तक खगोल विज्ञान का प्रतिष्ठित केंद्र था। प्रसिद्ध खगोल शास्त्री वराहमिहिर लगभग 1,500 वर्ष पहले वहां रहते और काम करते थे। भारतीय खगोल शास्त्री अक्षांश और देशांतर रेखाओं की अवधारणा से अवगत थे, जिसमें शून्य या प्रधान मध्याह्न रेखा की आवश्यकता शामिल थी। उज्जैन की मध्याह्न रेखा सभी भारतीय खगोलीय ग्रंथों में गणनाओं के लिए संदर्भ बन गई थी।

हड़प्पा को मिली सिंधु-सरस्वती सभ्यता की पहचान

''पाठ्यपुस्तक में भारतीय सभ्यता की शुरुआत से संबंधित अध्याय में ''सरस्वती'' नदी का कई बार उल्लेख है। इसमें हड़प्पा सभ्यता को ''सिंधु-सरस्वती'' सभ्यता के रूप में संदर्भित किया गया है। इसमें कहा गया है कि सरस्वती बेसिन में राखीगढ़ी और गंवरीवाला जैसे सभ्यता के प्रमुख शहरों के साथ-साथ छोटे शहर और कस्बे शामिल थे।

जाति व्यवस्था का उल्लेघ नहीं

नई पाठ्यपुस्तक के अनुसार, सरस्वती नदी आज भारत में घग्गर और पाकिस्तान में हकरा के नाम से जानी जाती है (इसलिए इसका नाम घग्गर-हकरा नदी है) और अब मौसमी नदी है। ''भारत और उससे परे समाज की खोज'' वाले अध्याय में जाति व्यवस्था का उल्लेख किए बिना वेदों का विवरण दिया गया है और कहा गया है कि महिलाओं और शूद्रों को इन ग्रंथों के अध्ययन की अनुमति नहीं थी।

पिछले पाठ्यक्रम में क्या था?

नई पुस्तक के अनुसार, ''वैदिक ग्रंथों में कई व्यवसायों का उल्लेख किया गया है जैसे- कृषक, बुनकर, कुम्हार, भवन निर्माता, बढ़ई, चिकित्सक, नर्तक, नाई, पुजारी आदि।'' पिछली पाठ्यपुस्तक में कहा गया था, ''कुछ पुजारियों ने लोगों को चार समूहों में विभाजित कर दिया था जिन्हें वर्ण कहा जाता था। शूद्र कोई अनुष्ठान नहीं कर सकते थे। अक्सर महिलाओं को शूद्रों के समूह में रखा जाता था। महिलाओं और शूद्रों दोनों को वेदों के अध्ययन की अनुमति नहीं थी।

''पुरानी किताब में कहा गया था, ''पुजारियों ने यह भी कहा कि ये समूह जन्म के आधार पर तय किए गए थे। उदाहरण के लिए यदि किसी के माता-पिता ब्राह्मण हैं, तो वह स्वत: ही ब्राह्मण बन जाएगा।'' कोविड-19 से जुड़े संदर्भों को भी बदल दिया गया था, जिसे पहले एनसीईआरटी ने बोझ कम करने के लिए अस्थायी कहा था।

निदेशक दिनेश सकलानी ने क्या कहा?

नई पाठ्यपुस्तक के परिचय में एनसीईआरटी के निदेशक दिनेश सकलानी ने लिखा है, ''हमने बड़े विचारों पर ध्यान केंद्रित करके पाठों को न्यूनतम रखने की कोशिश की है। इससे हम कई विषयों (इतिहास, भूगोल, राजनीति विज्ञान या अर्थशास्त्र) से एक ही विषय में इनपुट को संयोजित करने में सक्षम हुए हैं।

नई किताब से हटाए गए चार अध्याय

''प्राचीन भारत के राज्यों की विस्तृत खोज को काफी हद तक हटा दिया गया है। पुरानी पुस्तक के चार अध्यायों को नई पुस्तक से हटा दिया गया है। इनमें अशोक एवं चंद्रगुप्त मौर्य के राज्यों के विवरण और चाणक्य व उनके अर्थशास्त्र के साथ-साथ गुप्त, पल्लव और चालुक्य राजवंशों व कालिदास के कार्यों की भूमिका शामिल है। पूरी पुस्तक में सम्राट अशोक का एकमात्र उल्लेख चौथे अध्याय की टाइमलाइन में है।

लौह स्तंभ का संदर्भ हटाया

औजार, सिक्के, सिंचाई, शिल्प और व्यापार के बारे में पुरानी पुस्तक के अध्याय ''गांव, शहर और व्यापार'' को छोटा कर दिया गया है। दिल्ली में कुतुब मीनार स्थल पर प्रसिद्ध लौह स्तंभ के संदर्भ को हटा दिया गया है। साथ ही सांची स्तूप, महाबलीपुरम के मंदिरों और अजंता की गुफाओं में चित्रों का उल्लेख भी हटा दिया गया है।

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