Stray Dog: आवारा कुत्तों की नसबंदी में भी कई प्रकार की पाबंदी, उम्र का अंदाजा लगाने वाला कोई सिस्टम नहीं
भारतीय पशु कल्याण बोर्ड के एक अधिकारी ने बताया कि आवारा कुत्तों को पकड़ने परिवहन आश्रय नसबंदी टीकाकरण एवं वापस छोड़ने तक के नियमों की अवहेलना पर स्थानीय अधिकारी जिम्मेदार होंगे। नियमों के तहत सिर्फ उन्हीं कुत्तों को मारा जा सकता है जो लाइलाज बीमारी से ग्रस्त हैं।
By Jagran NewsEdited By: Anurag GuptaUpdated: Sun, 30 Apr 2023 10:42 PM (IST)
अरविंद शर्मा, नई दिल्ली। पशु जन्म नियंत्रण का नया नियम यह तो कहता है कि आवारा कुत्तों की आबादी को नियंत्रित किया जाना चाहिए, लेकिन उसके लिए सिर्फ नसबंदी एवं टीकाकरण को ही माध्यम बताया गया है। नसबंदी में भी कई तरह की पाबंदियां लगा दी गई हैं, जिससे यह काम अधिक जटिल हो गया है।
नए नियम का उद्देश्य भी आवारा पशुओं की संख्या सीमित करना है, लेकिन इससे इंसान की सुरक्षा में कोई मदद मिलती नहीं दिखती है। प्रतिदिन कहीं न कहीं कुत्तों के हमले में किसी न किसी की मौत होती है। फिर भी नियमों में बंधे इंसान के पास हमलावर कुत्तों से निपटने का कोई सहज रास्ता नहीं दिखता।
2023 का नियम रेजीडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन को आवारा कुत्तों की देखभाल करने और बच्चों-बुजुर्गों से उनसे दूर रखने का निर्देश देता है। इससे पशु-इंसान संघर्ष के मामले बढ़ सकते हैं। इस नियम से आवारा कुत्तों की नसबंदी के प्रति स्थानीय निकायों की उदासीनता को भी बढ़ावा मिलता है।
''कुत्तों की उम्र का अंदाजा लगाने वाला कोई सिस्टम नहीं''
भारतीय पशु कल्याण बोर्ड के एक अधिकारी ने बताया कि आवारा कुत्तों को पकड़ने, परिवहन, आश्रय, नसबंदी, टीकाकरण एवं वापस छोड़ने तक के नियमों की अवहेलना पर स्थानीय अधिकारी जिम्मेदार होंगे। स्पष्ट है कि पैसे, प्रशिक्षित कर्मचारियों की कमी, बुनियादी ढांचे एवं समन्वय में खामी का ठीकरा भी उन्हीं पर फूटेगा। नियमों के तहत सिर्फ उन्हीं कुत्तों को मारा जा सकता है, जो लाइलाज बीमारी से ग्रस्त हैं। नसबंदी भी उन्हीं की हो सकती है, जो छह महीने से ज्यादा उम्र के हैं। कुत्तों की उम्र का अंदाजा कैसे लगाया जा सकता है, इसका कोई सिस्टम नहीं है।
रास्ता दिखा सकता है जर्मनी का कानून
कुत्तों की बढ़ती संख्या से फजीहत झेल रहे भारतीय पशु कल्याण बोर्ड एवं स्थानीय निकायों के लिए नीदरलैंड और जर्मनी का कानून मार्गदर्शक का काम कर सकता है, जहां के मोहल्लों में एक भी आवारा कुत्ता नहीं है। उदाहरण तो अपने देश में भी है। मणिपुर, दादरा नगर हवेली एवं लक्षद्वीप ने कुत्तों की बढ़ती आबादी को नियंत्रित करने में सफलता पाई है।पशुगणना की रिपोर्ट बताती है कि उक्त राज्यों में एक भी आवारा कुत्ता नहीं है, जबकि 2012 की गणना में दादरा नगर हवेली में दो हजार 173 एवं मणिपुर में 23 आवारा कुत्ते थे। कुत्तों के आतंक का ऐसा सफाया नसबंदी अभियान की सघनता और प्रशासन की सजगता के चलते हो पाया।
नीदरलैंड का प्रयास भी काफी अच्छा है। वहां सीएनवीआर फार्मूला लागू है यानी कलेक्ट, न्यूटर, वैक्सीनेट और रिटर्न। मतलब आवारा कुत्तों को मोहल्लों से उठाया, नसबंदी की, टीका लगाए फिर वापस छोड़ दिया। विश्व पशु संरक्षण एजेंसी ने इसे सबसे अच्छा तरीका माना है। वहां आश्रय गृहों से कुत्तों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। खरीदारी पर टैक्स लगता है।