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Mao Zedong: चीन को औद्योगिक मुल्क बनाने के लिए इस तानाशाह ने लिया ऐसा फैसला कि अकाल की भेंट चढ़ गए करोड़ों लोग

Mao Zedong 26 दिसंबर 1893 को चीन के हुनान प्रांत के शाओशान में पैदा हुए माओत्से तुंग’ को चीनी इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण शख्सियतों में से एक माना जाता है। उनके जीवन और नेतृत्व का देश पर गहरा प्रभाव पड़ा है और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) और पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की दिशा को आकार मिला लेकिन कैसे यह तानाशाह कहलाया आइए जानते हैं विस्तार से।

By Babli KumariEdited By: Babli KumariUpdated: Thu, 17 Aug 2023 05:29 PM (IST)
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इस तानाशाह का चीन को औद्योगिक मुल्क बनाने का था सपना (जागरण ग्राफिक्स)

नई दिल्ली, जागरण डेस्क। 'राजनीति रक्तपात रहित युद्ध है, जबकि 'युद्ध' रक्तपात वाली राजनीति है।' कुछ ऐसा सोचना था हमारे पड़ोसी देश चीन के तानाशाह का। ऐसा तानाशाह, जो किसानों के लिए लड़ा और जिसे चीन को सबसे शक्तिशाली देशों की लिस्ट में आगे ले जाने का श्रेय जाता है। साथ ही एक ऐसा क्रूर शासक, जो कार्ल मार्क्स और लेनिन का प्रशंसक था। जिसने मार्क्सवादी और लेनिनवादी विचारधारा को सैनिक रणनीति में जोड़कर जिस सिद्धान्त को जन्म दिया उसे 'माओवाद' के नाम से जाना गया।

आज तानाशाहों की कहानी श्रृंखला के चौथे भाग में हम बात करेंगे एक ऐसे हिंसक तानाशाह के बारे में, जिसका नाम 'माओत्से तुंग’ (Mao Zedong) है। अगर ऐसा कहा जाए कि चीन की क्रांति को सफल बनाने के पीछे जिस एक व्‍यक्ति का नाम सामने आता है वो माओ का है, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। 'माओ' चीनी क्रान्तिकारी, राजनैतिक विचारक और साम्यवादी (कम्युनिस्ट) दल के सबसे बड़े नेता माने गए।

चीन के इस तानाशाह के बारे में कहा जाता है कि 'माओ' का दिन रात से शुरु होता था और दिनभर का सारा काम वो रात को शुरू करता। यहां तक कि वह नेताओं से मिलने का कार्यक्रम भी रात को ही रखता था। चीनी कम्युनिस्ट क्रांतिकारी माओत्से तुंग एक राजनीतिज्ञ, सैन्य रणनीतिकार, कवि और कम्युनिस्ट क्रांतिकारी के रूप में विख्यात हुआ। माओ ने 1949 में पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की स्थापना की और 1949 से 1976 तक चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के अध्यक्ष के रूप में इसका नेतृत्व किया। माओ के चीन में उस वक्त उद्योग व धंधे नहीं थे। चीन उस वक्त एक खेतिहर मुल्क था। ऐसे में माओ की कम्युनिस्ट क्रांति का आधार वहां के किसान बने।

माओ की विरासत एक बहस का विषय है। कई लोग उसे आधुनिक चीन के संस्थापक और राष्ट्रीय एकता के प्रतीक के रूप में पूजते हैं, तो अन्य लोग मानवाधिकारों के हनन और चीनी लोगों पर उसके विनाशकारी परिणामों के लिए उसकी नीतियों की आलोचना करते हैं। बहरहाल, चीनी समाज और राजनीति पर उनके प्रभाव को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। तो आइए जानते हैं, एक कवि जैसे संवेदनशील हृदय वाले ऐसे तानाशाह के बारे में जिसको विरोधी पसंद नहीं थे। जो उसका विरोध करता वो उसको मौत के घाट उतार देता...

कौन था माओत्से तुंग?

माओ का जन्म 26 दिसंबर 1893 को हुनान के शाओशान गांव में एक किसान परिवार में हुआ था और उसका पालन-पोषण एक ग्रामीण कृषक समुदाय में हुआ। माओ के पिता, माओ यिचांग एक गरीब किसान थे जो बाद में शाओशान के सबसे धनी किसानों में से एक बन गए थे। ग्रामीण हुनान में पले-बढ़े माओ ने अपने पिता को एक कठोर अनुशासक बताया जो उन्हें और उनके तीन भाई-बहनों को पीटते थे।

अपनी साधारण पृष्ठभूमि के बावजूद, उसने छोटी उम्र से ही असाधारण बुद्धिमत्ता का परिचय दिया। माओ ने पारंपरिक चीनी शिक्षा प्राप्त की, लेकिन वह पश्चिमी विचारधाराओं और दर्शन, विशेष रूप से मार्क्सवाद से काफी प्रभावित था जिसका ज्ञान उसे कॉलेज के दौरान हुआ था। माओत्से तुंग अपने जीवन के आरंभ में चीनी राष्ट्रवाद का समर्थन किया था और साम्राज्यवाद-विरोधी दृष्टिकोण रखता था।

प्राथमिक शिक्षा समाप्त करने के बाद, माओ ने 17 वर्षीय लुओ यिक्सिउ से शादी की, जिससे उसके भूमि-स्वामी परिवार एकजुट हो गए। माओ अरेंज मैरिज के कट्टर आलोचक बन गया और अपनी पत्नी से दूर रहने लगा और उसे अपनी पत्नी के रूप में पहचानने से इनकार कर दिया। 1910 में 21 वर्ष की आयु में लुओ की मृत्यु हो गई।

20वीं सदी का सबसे प्रभावशाली व्यक्तियों में शामिल

माओत्से तुंग के बारे में कहा जाता है कि वह 20वीं सदी के 100 सबसे प्रभावशाली व्यक्तियों में शामिल था। चीन के नागरिक उसे एक महान शासक मानते। जानकार ऐसा कहते हैं कि माओत्से के कारण ही चीन अपनी नीति और कार्यक्रमों के माध्यम से आर्थिक, तकनीकी और सांस्कृतिक विकास के साथ दुनिया का एक प्रमुख शक्तिशाली देश बनकर उभरा। माओ को उन्नत साक्षरता, महिलाओं के अधिकार, बुनियादी स्वास्थ्य देखभाल, प्राथमिक शिक्षा के साथ चीन एक अग्रणी विश्व शक्ति बन गया और जिसका श्रेय माओ को दिया जाता है।

माओ ने ग्रेट लीप फॉरवर्ड किया लॉन्च 

माओत्से तुंग ने चीन में भूमि और फसलों को लेकर कई योजनाएं लाया। साल 1958 में माओ ने एक मुहिम शुरू की। माओ ने ग्रेट लीप फॉरवर्ड लॉन्च किया, जिसका उद्देश्य चीन की अर्थव्यवस्था को तेजी से कृषि से औद्योगिक में बदलना था, जिसके कारण इतिहास में सबसे घातक अकाल पड़ा और 1958 और 1962 के बीच एक करोड़ से अधिक लोगों की मृत्यु हुई।

माओत्से का विरोध करने की नहीं थी हिम्‍मत

माओत्से इतना ताकतवर था कि किसी की भी उसके विरुद्ध जाने की हिम्मत नहीं हुई। उसका विरोध करने की हिम्मत जो भी करता माओ उसे आजीवन कारावास में डाल देता। माओ ने ही मीडिया पर ऐसा शिकंजा कसा जो आज तक देखने को मिलता है। मीडिया पर यह शिकंजा समय के साथ इस कदर बढ़ा कि माओ की 1976 में मृत्‍यु के बाद जब देंग शियाओ पिंग ने सत्‍ता संभाली तो किसी को कानोकान पता भी नहीं चल सका। 

नोट- अगला तानाशाह कौन होगा और क्या होगी उसकी कहानी जानने के लिए पढ़ते रहें दैनिक जागरण।

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