'हाशिये पर पड़े लोग शीर्ष पदों पर पहुंच रहे', जस्टिस गवई ने संविधान की सकारात्मक कार्रवाई को दिया इसका श्रेय
सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस बीआर गवई ने कहा है कि संविधान की सकारात्मक कार्रवाई के कारण हाशिये पर रहने वाले समुदायों के सदस्य शीर्ष सरकारी पदों तक पहुंचने में सक्षम हुए हैं। उन्होंने इस बात का भी जिक्र किया कि शीर्ष अदालत में उनकी पदोन्नति दो साल पहले की गई थी क्योंकि वहां अनुसूचित जाति से कोई न्यायाधीश नहीं था।
पीटीआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस बीआर गवई ने कहा है कि संविधान की 'सकारात्मक कार्रवाई' के कारण हाशिये पर रहने वाले समुदायों के सदस्य शीर्ष सरकारी पदों तक पहुंचने में सक्षम हुए हैं। उन्होंने इस बात का भी जिक्र किया कि शीर्ष अदालत में उनकी पदोन्नति दो साल पहले की गई थी, क्योंकि वहां अनुसूचित जाति से कोई न्यायाधीश नहीं था।
इसलिए हुई थी सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति
न्यूयार्क सिटी बार एसोसिएशन द्वारा आयोजित एक अंतर-सांस्कृतिक परिचर्चा को संबोधित करते हुए जस्टिस गवई ने कहा कि जब उन्हें 2003 में बांबे हाई कोर्ट में जज नियुक्त किया गया था, उस समय वह एक वरिष्ठ वकील थे। उस समय हाई कोर्ट में अनुसूचित जाति से कोई न्यायाधीश नहीं था।
जस्टिस गवई ने कहा कि 2019 में सुप्रीम कोर्ट में उनकी नियुक्ति पूरी तरह से अनुसूचित जाति को प्रतिनिधित्व देने के लिए की गई थी, क्योंकि शीर्ष अदालत में लगभग एक दशक से इस समुदाय का कोई न्यायाधीश नहीं था।
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प्रधान न्यायाधीश बनने की कतार में शामिल हैं जस्टिस गवई
उन्होंने कहा कि केवल भारतीय संविधान और इसकी सकारात्मक कार्रवाई के कारण वह सर्वोच्च न्यायिक कार्यालय में सेवा देने में सक्षम हुए। जस्टिस गवई मई 2025 में भारत के प्रधान न्यायाधीश बनने की कतार में शामिल हैं।अपनी पृष्ठभूमि के बारे में जस्टिस गवई ने क्या कहा?
उन्होंने कहा कि यदि अनुसूचित जाति को प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया होता, तो शायद दो साल बाद मेरी पदोन्नति होती। अपनी पृष्ठभूमि के बारे में पूछे जाने पर जस्टिस गवई ने झुग्गी इलाके में पलने-बढ़ने, नगरपालिका के स्कूल में जाने, फिर कानूनी पेशा अपनाने और उसके बाद जज के रूप में पदोन्नत होने के बारे में बताया।
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