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मिलिए, दक्षिण सूडान में तैनात मेजर बिंदेश्‍वरी से, मुश्किल परिस्थिति में भी 'ड्यूटी फर्स्‍ट'

यूएन की शांति सेना में भारतीय जवानों की सबसे बड़ी संख्‍या है। ये जवान मुश्किल परिस्थितियों में अपनी ड्यूटी करते हैं। इनकी जगह अधिकतर खतरों से भरी होती हैं। ऐसे ही एक मिशन पर मेजर बिंदेश्‍वरी तवंर भी हैं।

By Kamal VermaEdited By: Updated: Thu, 04 Mar 2021 03:53 PM (IST)
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एक फौजी परिवार से ताल्‍लुक रखती हैं मेजर बिंदेश्‍वरी
नई दिल्‍ली (ऑनलाइन डेस्‍क)। भारतीय सेना के जवान देश हों या विदेश की धरती सभी जगहों पर अपने देश का मान सम्‍मान सर्वथा ऊंचा बनाए रखते हैं। यही वजह है कि हजारों सैनिकों में भी कोई भारतीय सैनिक अलग दिखाई देता है। संयुक्‍त राष्‍ट्र के शांति मिशन पर जाने वालों में यदि किसी देश के जवानों की सबसे अधिक चर्चा होती है जो वो भारतीय ही हैं। ऐसा इसलिए क्‍योंकि यूएन के शांति दल में सबसे बड़ी संख्‍या इन्‍हीं भारतीय जवानों की होती है। इस शांति मिशन के तहत ये जवान बेहद मुश्किल परिस्थितियों में न सिर्फ अपने काम को अंजाम देते हैं बल्कि जहां पर ये तैनात होते हैं वहां के स्‍थानीय लोगों की भी हर मुश्किल घड़ी में मदद करते हैं। इस तरह के शांति मिशन में जाने वालों में पुरुष या महिला में भेद नहीं किया जाता है। आज हम यहां पर ऐसे ही एक मिशन का हिस्‍सा बनकर दक्षिण सूडान में सेवाएं देने वाली भारतीय सेना की मेजर बिंदेश्‍वरी तंवर के बारे में बता रहे हैं। इनका इंटरव्‍यू हाल ही में यूएन की तरफ से किया गया था।

बिंदेश्‍वरी एक फौजी परिवार से संबंध रखती हैं। उनके पिता भारतीय सेना से जुड़े हुए थे इसलिए उन्‍होंने इसकी मुश्किलों, इसकी चुनौतियों और इसकी बारीकियों को भी करीब से देखा और जाना है। बिंदेश्‍वरी के कई अलग-अलग किरदार हैं। वो एक महिला फौजी अधिकारी भी हैं तो एक पत्‍नी भी हैं और एक बेटे की मां भी हैं। उनके पति भी एक फौजी ही हैं। अपने इंटरव्‍यू में उन्होंने कहा कि यूएन के शांति रक्षक के तौर पर दक्षिण सूडान में तैनात होना उनके लिए काफी अहमियत रखता है। वो इस यहां पर बिताए गए हर पल का बांहें फैलाकर स्‍वागत करती हैं।

उन्‍होंने बताया कि क्‍योंकि उनके इर्दगिर्द सभी कुछ फौजियों से ही जुड़ा था इसलिए ही उनके मन में भी इससे अलग कोई दूसरा ख्‍याल नहीं आता था। उन्‍होंने बताया कि उनके परिवार समेत दोस्‍त भी उनके फौज में जाने के फैसले से पूरी तरह से सहमत थे। वो खुद को भाग्‍यशाली मानती हैं कि उनका जन्‍म एक फौजी के यहां पर हुआ। अपने इस करियर के दौरान वो कई ऐसी महिलाओं से मिली जिन्‍हें अपने परिवार को इस बात का विश्‍वास दिलाना पड़ा कि वो इसके काबिल हैं। पहली बार यूएन मिशन का हिस्‍सा बनी बिंदेश्‍वरी के मुताबिक यूएन मिशन पर भेजे जाने वाले जवानों की चयन प्रक्रिया काफी मुश्किल होती है। सारी मुश्किलों को पार कर वो यहां तक पहुंची हैं। उन्‍होंने कहा कि अपने देश का प्रतिनिधित्‍व यूएन मिशन में करने से बड़ा गौरव उनके लिए कोई दूसरा नहीं हो सकता है।

यूएन मिशन में वो एक मूवमेंट कंट्रोल विंग में स्टाफ ऑफिसर हैं। उनका काम जूबा से मिशन के एयर मिशन की निगरानी करना है। ये काम कोई आसान नहीं है। इसके तहत उन्‍हें मिशन में शामिल जवानों और अन्‍य कर्मियों और आने-जाने वाले मालवाहक वाहनों पर कड़ी नजर रखनी होती है। इसके अलावा हवाई सुरक्षा भी सुनिश्चित करना इनके ही जिम्‍मे है। वैश्विक महामारी कोविड-19 में ये और चुनौतीपूर्ण हो जाता है। इसमें लास्‍ट मूमेंट पर भी बदलाव होता रहता है। उनके मुताबिक यहां पर बारिश के दिनों में सड़कों पर काफी पानी भर जाता है। ऐसे में स्‍थानीय लोगों की मदद कर पाना काफी चुनौतीपूर्ण होता है। लेकिन इसके बाद भी जवान इसको पूरा करते हैं और जरूरतमंदों की मदद करते हैं।

बिंदेश्‍वरी ने बताया कि उनका दिन सुबह छह बजे शुरू होता है और यूएन मिशन की आखिरी उड़ान के बाद ही खत्‍म होता है। उन्‍हें इस मिशन में दो वर्ष का समय हो चुका है। अपने परिवार और बच्‍चे से दूर होना उनके लिए एक भावनात्‍मक परेशानी जरूरत बनता है, लेकिन बावजूद इसके उनका काम उनकी प्राथमिकता में बना रहता है।उनका कहना है कि उनका परिवार इस बात को भलीभांति जानता है। उन्‍होंने इंटरव्‍यू में बताया कि उन्‍हें यहां पर आने के बाद जो अनुभव मिला है वो पहले कभी कहीं नहीं मिला। यहां पर उन्होंने काफी कुछ सीखा है। यहां पर स्‍थानीय लोग उन्‍हें देखते ही अपनी परेशानी भूलकर उनका स्‍वागत करते हैं। वो महिला होने के नाते दूसरी महिलाओं की परेशानियों को समझती हैं। यही वजह है कि वो बेहिचक उनसे बात करती हैं।