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'16 साल की उम्र वाले शारीरिक संबंध को लेकर फैसला करने में सक्षम', पॉक्सो केस पर मेघालय HC की टिप्पणी

16 साल की उम्र वाले लड़के या लड़की शारीरिक संबंध फैसला लेने में सक्षम हैं। मेघालय हाई कोर्ट (Meghalaya HC) ने प्रेम प्रसंग से जुड़े एक मामले की सुनवाई करते हुए टिप्पणी की है।साथ ही हाई कोर्ट ने किशोरी के प्रेमी पर लगे पॉक्सो के मामले को भी रद्द कर दिया है।हाई कोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद फैसला सुनाया की यह यौन उत्पीड़न का मामला नहीं है।

By AgencyEdited By: Nidhi AvinashUpdated: Sun, 25 Jun 2023 01:34 PM (IST)
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'16 साल की उम्र वाले शारीरिक संबंध को लेकर फैसला करने में सक्षम', पॉक्सो केस पर मेघालय HC की टिप्पणी
शिलांग, एजेंसी। '16 साल की उम्र वाले लड़के या लड़की शारीरिक संबंध फैसला लेने में सक्षम हैं।' 2012 के यौन उत्पीड़न मामले की सुनवाई करते हुए मेघालय हाई कोर्ट ने यह टिप्पणी की है। हाई कोर्ट ने कहा कि 16 साल की किशोरी शारीरिक संबंध को लेकर फैसला लेने में सक्षम है। साथ ही हाई कोर्ट ने किशोरी के प्रेमी पर लगे पॉक्सो के मामले को भी रद्द कर दिया है।

क्या है मामला?

मेघालय हाई कोर्ट ने प्रेम प्रसंग से जुड़े एक मामले की सुनवाई की। याचिकाकर्ता कई घरों में काम करता था और इसमें पीड़िता किशोरी का घर भी शामिल था। यही से दोनों के बीच बातचीत बढ़ी और धीरे-धीरे दोस्ती प्यार में तब्दील हो गई। इस बीच दोनों ने शारीरिक संबंध भी बनाए। जब इस बात की खबर लड़की की मां को लगी, तो वह काफी गुस्सा हुई। मां ने IPC की धारा 363 और पॉक्सो एक्ट की धारा 3 और 4 के तहत एफआइआर दर्ज कराई। जब निचली अदालत से लड़के को राहत नहीं मिली तो उसने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

आपसी सहमति से बनाया था संबंध

याचिकाकर्ता ने हाई कोर्ट में सफाई दी कि दोनों ने आपसी सहमति के बाद ही शारीरिक संबंध बनाने का फैसला लिया था और इसलिए यह मामला यौन उत्पीड़न की श्रेणी में नहीं आता। पीड़िता ने भी यह बात कबूली की वह उसकी प्रेमिका है और दोनों के सहमति के बाद ही शारीरिक संबंध बनाए गए थे।

यह मामला यौन उत्पीड़न का नहीं

हाई कोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद फैसला सुनाया की यह यौन उत्पीड़न का मामला नहीं है। कोर्ट ने कहा, लड़की 16 साल की है और इस उम्र में मानसिक और शारीरिक विकास हो जाता है। वह शारीरिक संबंध से सबंधित फैसले लेने में बिल्कुल सक्षम है। इस उम्र के लड़के-लड़कियों में समझ होती है कि वे इस बात का फैसला ले सकें कि शारीरिक संबंध बनाने के लिए क्या सही और क्या गलत है।

मर्जी से किया गया शारीरिक संबंध आरोप का हिस्सा नहीं

हाई कोर्ट ने कहा कि कानून में आवश्यक बदलाव लाने की जरुरत है। लड़के की वकील ने तर्क दिया था कि यह यौन उत्पीड़न का मामला नहीं है। बल्कि पूरी तरह से सहमति से किया गया कृत्य है। पीड़िता ने खुद अपने बयान में यह बात कबूली है कि इसमें किसी भी तरह की जबरदस्ती नहीं की गई थी।