MIG-21: 1971 से कारगिल युद्ध तक, 60 साल के सफर में सेना की जीत का 'नायक' रहा मिग-21; कैसे बना 'फ्लाइंग कॉफिन'
MIG-21 मिग-21 लड़ाकू जेट ने साल 1955 में अपनी पहली उड़ान भरी थी। मिग-21 पिछले कुछ सालों में हादसों का शिकार हुआ है। आइये जानते हैं मिग 21 लड़ाकू जेट के बारे में जिसने कई मौकों पर भारतीय सेना को जीत दिलाने में भी अहम भूमिका निभाई।
By Mohd FaisalEdited By: Mohd FaisalUpdated: Mon, 08 May 2023 02:49 PM (IST)
नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। MIG-21: बीते कुछ साल में भारतीय वायु सेना ने जितनी तरक्की की है, उसकी झलक किसी न किसी मौके पर दिख जाती है। भारतीय वायु सेना की ताकत का एहसास आसमान में भी दिखाई देता है। हालांकि, कई बार ऐसे हादसे हो जाते हैं, जिससे भारतीय वायु सेना के बेड़े में शामिल लड़ाकू विमानों की खामियां उजागर करते हैं। मिग-21 उनमें से ही एक लड़ाकू जेट है, जो पिछले कुछ सालों से हादसों का शिकार होता रहा है। आइये जानते हैं मिग 21 लड़ाकू जेट के बारे में, जो कई बार दुर्घटना का शिकार तो हुआ, लेकिन कई मौकों पर भारतीय सेना को जीत दिलाने में भी अहम भूमिका निभाई।
क्या है मिग-21 का इतिहास
दरअसल, मिकोयान-गुरेविच मिग-21 एक सुपरसोनिक लड़ाकू जेट विमान है, जिसका निर्माण सोवियत संघ के मिकोयान-गुरेविच डिजाइन ब्यूरो ने किया है। इसे 'बलालैका' के नाम से भी बुलाया जाता था, क्योंकि यह रुसी संगीत वाद्य ऑलोवेक की तरह दिखता है। इसे भारतीय वायु सेना में 60 के दशक में शामिल किया गया था। हाल ही में मिग-21 जेट ने भारतीय वायु सेना में में 60 साल भी पूरे किए हैं।
रूस में बनाया जाता था मिग-21
जब मिग-21 लड़ाकू जेट को भारतीय वायु सेना में शामिल किया गया, तब इसे रूस में बनाया जाता था। हालांकि, बाद में इसे भारत में बनाया जाने लगा। भारत ने इस विमान को असेम्बल करने का अधिकार और तकनीक भी हासिल कर ली थी। हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) ने मिग-21 लड़ाकू विमान का प्रोडक्शन शुरू किया था, लेकिन रूस ने 1985 के बाद इस लड़ाकू जेट को बनाना बंद कर दिया। हालांकि, भारत इसके अपग्रेडेड वर्जन का इस्तेमाल कर रहा।
'फ्लाइंग कॉफिन' पड़ा मिग-21 लड़ाकू जेट का नाम
- मिग-21 लड़ाकू जेट ने साल 1955 में अपनी पहली उड़ान भरी थी। इसके बाद साल 1959 में इसे आधिकारिक रूप से सेना में शामिल किया गया था। हालांकि, उस दौर में ये विमान काफी उन्नत किस्म का था।
- भारत ने उस दौरान कुल 874 मिग-21 जेट को अपने बेड़े में शामिल किया था।
- बाद में ये लड़ाकू विमान कई बार हादसों का शिकार हुआ, जिस वजह से इसे 'फ्लाइंग कॉफिन' यानी उड़ता हुआ ताबूत के नाम से जाना जाने लगा।
- 1960 के दशक की शुरुआत में भारतीय वायुसेना के बेड़े में शामिल होने के बाद से मिग-21 लड़ाकू विमान अब तक 200 से अधिक बार हादसे का शिकार हो चुका है।
- मिग-21 एक इकलौता ऐसा लड़ाकू विमान है, जिसका इस्तेमाल दुनियाभर के करीब 60 देशों ने किया है।
जेट ने युद्ध में पेश किया अपनी कामयाबी का सबूत
बता दें कि मिग-21 अब तक कई बार हादसे का शिकार हो चुका है, लेकिन 1960 के बाद से हुए कई युद्ध में इस लड़ाकू जेट ने भारतीय सेना की जीत में अहम भूमिका निभाई है। चाहे करगिल युद्ध हो या फिर 1971 की जंग हर मोर्चे पर इस विमान ने भारत को जीत का स्वाद चखाया है। 1971 की जंग में मिग-21 लड़ाकू जेट ने भारत के पूर्व और पश्चिम के मोर्चों पर जमकर कहर बरपाया था। इस जंग में मिग-21 ने पाकिस्तानी सेना के 13 फाइटर विमानों को तबाह कर दिया था। वहीं, कारगिल युद्ध में भी मिग-21 ने अहम भूमिका अदा की थी। मिग-21 और उसके अपग्रेडेट वर्जन ने पाकिस्तान को काफी नुकसान पहुंचाया था और भारत की जीत में अहम रोल अदा किया था।मिग-21 जेट की खूब व खामियां
- बता दें कि भारतीय वायुसेना के पास मिग-21 विमानों के 4 स्क्वाड्रन हैं। एक स्क्वाड्रन में लड़ाकू विमानों की संख्या 16 से 18 के बीच होती है। जानकारी के मुताबिक, वायुसेना के पास 64 मिग-21 उपलब्ध है।
- बालाकोट स्ट्राइक के वक्त विंग कमांडर अभिनंदन मिग-21 को उड़ा रहे थे और उन्होंने इससे पाकिस्तानी वायुसेना के एफ-16 विमान को मार गिराया था।
- हालांकि, भारतीय वायु सेना इसके सबसे उन्नत किस्म मिग-21 बाइसन का इस्तेमाल करती है।
- मिग-21 लड़ाकू जेट के इंजन की तकनीक अब काफी पुरानी हो गई है।
- इस विमान को रूस ने 1985 में ही रिटायर कर दिया था।
- मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, इस लड़ाकू विमान के सभी स्क्वाड्रन साल 2025 तक रिटायर कर दिए जाएंगे।