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'मिलावटी खाना या पेय पदार्थ बेचने पर हो छह महीने की जेल' संसदीय समिति की सिफारिश

संसदीय समिति ने खाने-पीने की चीजों में मिलानट करने वालों के लिए 6 महीने की सजा की सिफारिश की है। दोषियों पर 25 हजार रुपये का जुर्माना लगाने को भी कहा गया है। समिति ने कहा कि इस अपराध में बड़े पैमाने पर जनता के स्वास्थ्य को प्रभावित करने की क्षमता है और अपराध के प्रविधानों के तहत दी जाने वाली सजा बहुत कम है।

By AgencyEdited By: Manish NegiUpdated: Tue, 14 Nov 2023 07:49 PM (IST)
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संसदीय समिति ने 6 महीने जेल की सिफारिश की है (प्रतीकात्मक तस्वीर)
एजेंसी, नई दिल्ली। खाने-पीने की सामग्री में मिलावट जनता के लिए जानलेवा साबित हो सकती है और स्वास्थ्य के लिए तो हानिकारक है ही। इसलिए एक संसदीय समिति ने मिलावटी भोजन या पेय बेचने पर कम से कम छह महीने की कैद दिए जाने की सिफारिश की है। साथ ही ऐसे दोषियों पर 25 हजार रुपये का न्यूनतम जुर्माना लगाने को कहा है।

6 महीने सजा और 25 हजार जुर्माने की सिफारिश

गृह मंत्रालय की स्थायी समिति की अध्यक्षता कर रहे भाजपा सांसद बृजलाल ने कहा कि स्वास्थ्य संबंधी गंभीर मामले प्राय: मिलावटी भोजन या पेय का भी नतीजा होते हैं, लेकिन इनके दोषियों को मौजूदा समय में दी जाने वाली सजा अपर्याप्त है। इसलिए समिति ने तय प्रविधान के तहत न्यूनतम सजा छह माह और न्यूनतम जुर्माना 25 हजार रुपये करने की सिफारिश की है।

हानिकारक भोजन या पेय की बिक्री का हवाला देते हुए समिति ने कहा कि इस अपराध में बड़े पैमाने पर जनता के स्वास्थ्य को प्रभावित करने की क्षमता है और अपराध के प्रविधानों के तहत दी जाने वाली सजा बहुत कम है। इसलिए समिति ने कैद की सजा और जुर्माने को बढ़ाने की सिफारिश की है। मौजूदा समय में यह कैद अधिकतम छह महीने तक की और जुर्माना हजार रुपये का है।

सामुदायिक सेवा को सराहा

संसदीय समिति ने भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) के दंड के प्रविधानों में सामुदायिक सेवा को शुरू करने के प्रस्ताव को भी सराहा है और कहा कि इस सराहनीय प्रयास से आरोपितों के प्रति सुधारात्मक रवैया स्थापित किया जाएगा। इससे जेल के बुनियादी ढांचे पर भी साथी कैदियों का दबाव कम होगा। इससे देश की जेलों का प्रबंधन सुधरेगा। समिति का कहना है कि सामुदायिक सेवा आरोपितों को जेल भेजने के बजाय उनसे बिना वेतन के काम कराना है। इसलिए समिति का कहना है कि इसके तहत कराए जाने वाले कार्यों और तौर-तरीकों को परिभाषित और स्पष्ट किया जाना चाहिए। दरअसल, प्रस्तावित विधेयक में सामुदायिक सेवा की शर्तों और नियमों का अब तक कोई उल्लेख नहीं किया गया है।

बीएनएस में टाइपिंग की गलतियां

स्थाई समिति ने भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) का विस्तृत परीक्षण किया और पाया कि इसके मसौदे में टाइपिंग और व्याकरण की कुछ गलतियां हैं। समिति का कहना है कि टाइपिंग की एक भी गलती या व्याकरण की गलती से संहिता का गलत विश्लेषण हो सकता है। इसलिए मंत्रालय को इन्हें जल्द से जल्द सुधारना चाहिए। संसदीय समिति की इस रिपोर्ट को पिछले शुक्रवार को राज्यसभा में पेश किया जा चुका है। यह रिपोर्ट तीन लोकसभा में पेश हो चुके तीन प्रस्तावित कानूनों भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता विधेयक, भारतीय न्याय संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम विधेयक पर है।