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पुरी में मिले लुप्त हो चुकी शारदा नदी के निशान

आइआइटी खड़गपुर के वैज्ञानिकों ने का दावा, ऐसे प्रयासों से पीने के पानी की समस्या का हल मिलना संभव

By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Fri, 10 Aug 2018 12:26 PM (IST)
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पुरी में मिले लुप्त हो चुकी शारदा नदी के निशान

नई दिल्ली [आइएसडब्ल्यू]। भारतीय वैज्ञानिकों के ताजा अध्ययन में ओडिशा के पुरी में पानी के एक पुराने प्रवाह मार्ग के निशान मिले हैं। इसके बारे में शोधकर्ताओं का मानना है कि ये निशान लुप्त हो चुकी शारदा नदी के हो सकते हैं, जिसका उल्लेख ऐतिहासिक ग्रंथों में मिलता है। उपग्रह चित्रों, भूगर्भशास्त्र, ग्राउंड पेनिट्रेटिंग रडार (जीपीआर) के उपयोग से किए गए अध्ययन में वैज्ञानिकों को पानी के घटकों का अस्तित्व होने के संकेत मिलते हैं। इन संकेतों में वनस्पति पट्टी, लहरों से जुड़े चिह्न और ऐसी स्थलाकृति शामिल हैं।

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी), खड़गपुर के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए इस अध्ययन में शामिल प्रमुख शोधकर्ता डॉ. विलियम कुमार मोहंती ने बताया कि लुप्त हो चुके जलप्रवाह मार्ग में जहां पानी उपलब्ध होता है, वहां वनस्पतियों के बढ़ने की प्रवृत्ति होती है, जो इस अध्ययन में देखने को मिली है। इसी तरह विखंडित जल निकाय, जलीय वनस्पतियों से ढकी दलदली भूमि, कम उम्र की वर्तमान तलछट के नीचे दबी नदी घाटी और स्थलीय अवसाद या गड्ढों का भी पता चला है। समय के साथ नदी घाटी तलछट से भर जाती है, लेकिन पूरा प्रवाह मार्ग तलछट से भर नहीं पाता और कहीं- कहीं स्थलीय अवसाद या गड्ढे छूट जाते हैं। ये सभी विशेषताएं किसी पुराने जलप्रवाह मार्ग की मौजूदगी का संकेत करती हैं।

इन तमाम तथ्यों को एकीकृत रूप में देखा जाए तो जगन्नाथ और गुड़िचा मंदिरों के बीच में लुप्त हो चुकी नदी के अस्तित्व का पता चलता है। इस तरह के पुराने जलप्रवाह तंत्रों का अध्ययन शिथिल तलछटों के भीतर ताजे पानी के क्षेत्रों का पता लगाने में मददगार हो सकता है। शहरी क्षेत्रों में बरसात के दौरान पानी के जमाव से निजात पाने के लिए भी इन पुराने जलप्रवाह मार्गों का उपयोग जल निकासी के लिए हो सकता है।

साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम्स रिवर्स एंड पीपल्स के संयोजक हिमांशु ठक्कर के मुताबिक पुराने जलप्रवाह मार्गों का वैज्ञानिक अध्ययन कई मायनों में उपयोगी हो सकता है। इससे नदियों के विकास तथा नदियों पर आश्रित सभ्यताओं के विकास से संबंधित जानकारियों के अलावा कई महत्वपूर्ण सबक सीखने को मिल सकते हैं। नदियों के विलुप्त होने के पीछे कुछ विशिष्ट कारण या बदलाव जिम्मेदार रहे होंगे। लेकिन, उन कारणों और बदलावों को समझे बिना और उन्हें पलटे बिना नदियों को पुनर्जीवित करने के प्रयासों से समय और संसाधनों की बर्बादी ही होगी।

आइआइटी, इंदौर से जुड़े एक अन्य वैज्ञानिक डॉ. मनीष गोयल, जो अध्ययन में शामिल नहीं थे, ने बताया कि इस अध्ययन में लुप्त हो चुकी नदियों को खोजने के वैज्ञानिक तरीकों की आवश्यकता को रेखांकित किया गया है। ऐसे प्रयास पानी की समस्या को हल करने में मददगार हो सकते हैं। पुराने जलप्रवाह मार्ग की पहचान के जरिये संस्कृति के पौराणिक पहलू के संरक्षण के लिहाज से भी इस अध्ययन को महत्वपूर्ण माना जा सकता है। शोधकर्ताओं की टीम में डॉ. मोहंती के अलावा शुभमॉय जेना, सैबल गुप्ता, चिराश्री श्रबणी रथ और प्रियदर्शी पटनायक शामिल थे। अध्ययन के नतीजे जर्नल करंट साइंस में प्रकाशित किए गए हैं।