'चयन समिति में न्यायिक सदस्य की मौजूदगी से नहीं आती चुनाव आयोग की स्वतंत्रता', केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में रखा अपना पक्ष
Election Commission Appointments केंद्र सरकार की ओर से बुधवार को दाखिल जवाबी हलफनामे में कानून पर अंतरिम रोक लगाने की मांग का विरोध किया गया है। केंद्र सरकार ने याचिकाकर्ताओं की इस दलील का भी विरोध किया है कि कोर्ट में मामला सुनवाई पर होने के कारण दो चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति 14 मार्च को जल्दबाजी में की गई।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि चुनाव आयोग की स्वतंत्रता चयन समिति में न्यायिक सदस्य की मौजूदगी से नहीं आती। इसी तरह वरिष्ठ सरकारी पदाधिकारियों की उपस्थिति चयन समिति को स्वत: पक्षपाती मानने का आधार नहीं हो सकती। सरकार का कहना है कि यह माना जाना चाहिए कि उच्च संवैधानिक पदाधिकारी जनहित में अच्छे इरादे से और निष्पक्षता से काम करते हैं। याचिकाकर्ताओं का यह मानना गलत है कि चयन समिति में न्यायिक सदस्य नहीं होने से पक्षपात होगा।
केंद्र सरकार ने यह बात चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति पर अंतरिम रोक लगाने की मांग का विरोध करते हुए सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को दाखिल हलफनामे में कही। सुप्रीम कोर्ट मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति और सेवा शर्त कानून 2023 पर रोक लगाने की मांग पर गुरुवार को सुनवाई करेगा। कांग्रेस नेता जया ठाकुर ने अर्जी दाखिल कर मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की चयन समिति से प्रधान न्यायाधीश को बाहर रखे जाने को चुनौती दी है। कहा है कि यह चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के बारे में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लंघन है।
गैर सरकारी संगठन एडीआर (एसोसिएशन आफ डेमोक्रेटिक रिफार्म्स) ने भी नए कानून के तहत नियुक्ति करने पर रोक लगाने की मांग की है। अर्जी में कहा है कि मुख्य कानून को चुनौती देने वाली याचिका पर अंतिम फैसला आने तक नियुक्तियां सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक की जाएं। मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय चयन समिति की बात कही गई थी। इसमें प्रधानमंत्री के अलावा नेता विपक्ष और सीजेआइ को रखने की बात थी।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद केंद्र सरकार ने नया कानून बनाया। इसके तहत तीन सदस्यीय चयन समिति में प्रधानमंत्री, लोकसभा में नेता विपक्ष या सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता और प्रधानमंत्री द्वारा नामित कैबिनेट मंत्री होता है। नए कानून में सीजेआइ को चयन समिति से बाहर कर दिया गया है। अर्जी पर कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था।
केंद्र सरकार की ओर से बुधवार को दाखिल जवाबी हलफनामे में कानून पर अंतरिम रोक लगाने की मांग का विरोध किया गया है। केंद्र सरकार ने याचिकाकर्ताओं की इस दलील का भी विरोध किया है कि कोर्ट में मामला सुनवाई पर होने के कारण दो चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति 14 मार्च को जल्दबाजी में की गई। सरकार ने चुनाव आयुक्तों के पद रिक्त होने और उसे भरने के लिए अपनाई गई प्रक्रिया की टाइम लाइन दी है।
सरकार ने कहा है कि लोकसभा चुनाव और चार विधानसभाओं के चुनावों को देखते हुए चुनाव आयुक्तों के खाली पड़े पदों को जल्द भरना जरूरी था। मुख्य चुनाव आयुक्त के लिए अकेले काम करना संभव नहीं था। साथ ही कहा कि चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति में कानून में तय प्रक्रिया का पूरी तरह पालन किया गया है। सरकार ने कहा है कि संविधान विशेष रूप से संसद को चुनाव आयुक्त की नियुक्तियों पर फैसला लेने की शक्ति प्रदान करता है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले में शून्यता को भरने के लिए एक समय सीमित तंत्र दिया गया था और वह व्यवस्था केवल तब तक के लिए थी जब तक कि संसद इस विषय पर कानून नहीं बनाती। अब कानून बन गया है और लागू है। इस कानून को कोर्ट द्वारा तय व्यवस्था के आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती।
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